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Ex:-5 अर्थ-व्यवस्था और आजीविका(Economy and Livelihoods)

 Class10th History Notes In Hindi

अर्थ-व्यवस्था और आजीविका(Economy and Livelihoods)

अर्थ-व्यवस्था और आजीविका

किसी भी राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था का मूल आधार कृषि एवं उद्योग होता है ,जिस पर लोगों की आजीविका निर्भर करती है।

*औद्योगीकरण :- औद्योगीकरण उस क्रांति की देन है जिसमें वस्तुओं का उत्पादन मानव श्रम के द्वारा न होकर मशीनों के द्वारा होता है। इसमें उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है ,जिसकी खपत के लिए बड़े बाजार की आवश्यकता होती है। नये-नये मशीनों का आविष्कार एवं तकनीकी विकास पर ही औद्योगीकरण निर्भर करता है। इसके प्रेरक तत्व के रूप में मशीनों का आलावा पूंजी निवेश एवं श्रम का भी महत्वपूर्ण स्थान है। साधारणतः औद्योगीकरण को समाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था का यांत्रिकीकरण कह सकते है।

औद्योगीकरण की,सर्वप्रथम शुरुआत इंग्लैंड से हुई और धीरे-धीरे विश्व के अन्य देशों में फैलने लगी।

1750 तक ब्रिटेन मुख्य रूप से कृषि प्रधान देश था। जहाँ देश की 80% जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी।

ब्रिटेन विश्व का पहला देश बना ,जहाँ कृषि एवं उद्योग क्षेत्र में मशीनीकरण प्रारंभ हुआ।

*औद्योगीकरण के कारण

i.आवश्यकता आविष्कार की जननी

ii.नये-नये मशीनों का आविष्कार

iii.कोयले एवं लोहे की प्रचुरता

iv.फैक्ट्री प्रणाली की शुरुआत

v.सस्ते श्रम की उपलब्धता

vi,अधिशेष कृषि उत्पादन

vii.यातायात की सुविधा

viii.विशाल औपनिवेशिक स्थिति

1769 में बॉल्टन निवासी रिचर्ड आर्कराइट ने सूत कातने की स्पिनिंग फ्रेम(Spinning Frame) नामक एक मशीन बनाई जो जलशक्ति से चलती थी।

1769 में जेम्स वाट ने 'वाष्प इंजन' का अविष्कार किया।

1770 में स्टैंडहील निवासी जेम्स हारग्रीब्ज ने सूत काटने की एक अलग मशीन 'स्पिनिंग जेनी'(Spinning Jenny) बनाई। इसकी सहायता से आठ सूत एक साथ काता जा सकता था।

1773 में लंकाशायर के जॉन के ने 'फ्लाइंग शट्ल'(Flying Shuttle) का आविष्कार किया।

1779 में सैम्यूल क्राम्पटन ने 'स्पिनिंग म्यूल'(Spinning Mule) बनाया। जिससे बारीक सूत काता जा सकता था।

1785 में एडमंड कार्टराइट ने वाष्प से चलने वाला 'पावरलुम'नामक करघा तैयार किया और इसी समय बेनर नामक व्यक्ति के कपड़ा छापने का यंत्र बनाया।

टॉमस बेल ने 'बेलनाकार छपाई'(Cylindrical Printing) का आविष्कार किया

1815 में हम्फ्रीडेवी ने खानों में काम करने के लिए एक 'सेफ्टी लैम्प'(Safety-Lamp) का आविष्कार किया।

1815 में ही हेनरी बेसेमर ने एक शक्तिशाली भट्ठी विकसित करके लौह उद्योग को बढ़ावा दिया।

*बाड़ाबन्दी प्रथा :- अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बाड़ाबन्दी प्रथा की शुरुआत हुई ,जिसमें जमींदारों ने छोटे-छोटे खेतों को खरीद कर बड़े-बड़े कृषि फार्म में परिवर्तित किया एवं उसकी घेराबंदी की।

*उपनिवेशवाद(Colonialism) :- आर्थिक हितों की प्राप्ति के लिए राजनीतिक ,सामाजिक एवं सांस्कृतिक आधिपत्य स्थापित करने की प्रक्रिया उपनिवेशवाद है।

1813 में ब्रिटिश संसद ने 'चार्टर एक्ट' पारित किया,जिसके तहत ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया और स्वतंत्र व्यापार की नीति का मार्ग प्रशस्त किया गया।

*निरुद्योगीकरण(Deindustrialisatian) :- एक तरफ जहाँ मशीनों के आविष्कार ने उद्योग एवं उत्पादन में वृद्धि कर औद्योगिकी प्रक्रिया की शुरुआत की थी ,वहीं भारत में कुटीर उद्योग बंद होने के कगार पर पहुँच गया था। भारतीय इतिहासकारों ने भारत के उद्योग के लिए इसे निरुद्योगीकरण की संज्ञा दी है।

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*फैक्ट्री प्रणाली

नये-नये मशीनों का आविष्कार ,पूंजी निवेश ,सस्ते श्रम की उपलब्धता फैक्ट्री प्रणाली के विकास का मुख्य कारण थे।

इस प्रणाली के अंतर्गत वृहत पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन मशीनों द्वारा कारखानों में होता है।

*भारत में फैक्ट्रियों की स्थापना

भारत में सर्वप्रथम सूती कपड़ो की मिल की नींव 1851 में बम्बई में डाली गयी।

पारसी कावस-जी-नाना-जी-दाभार ने 1854 में पहला निर्मित किया।

1854 से 1880 तक तीस कारखानों का निर्माण हुआ,जिसमें तेरह पारसियों द्वारा बनाए गए थे।

1895 से 1914 तक के बीच सूती मीलों की संख्या 144 तक पहुँच गयी थी और भारतीय सूती धागे का निर्यात चीन को होने लगा था।

1917 में कलकत्ता में देश की पहली जूट मिल हुकुम चंद ने स्थापित किया।

1907 में जमशेद जी टाटा ने झारखण्ड के साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी(Tisco) की स्थापना की।

1910 में उन्होंने टाटा हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर स्टेशन की स्थापना की।

1955 में भिलाई,राउर केला और दुर्गापुर में इस्पात कारखाना खोलने की सहमति रूस,पश्चिम जर्मनी और ब्रिटेन के समझौतों के आधार पर ली गयी।

भारत में 7 स्टील प्लांट है :-

1.इंडियन-आयरन एण्ड स्टील कम्पनी,हीरापुर

2.टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी,जमशेदपुर

3.राउरकेला स्टील प्लांट,राउरकेला

4.विश्वेश्वरैया आयरन एण्ड स्टील कम्पनी,भद्रावती

5.भिलाई स्टील प्लांट,भिलाई

6.दुर्गापुर स्टील प्लांट,दुर्गापुर

7.बोकारो स्टील प्लांट,बोकारो

भारत में कोयला उद्योग का प्रारंभ 1814 में हुआ।

1921 में सरकार ने एक राजस्व आयोग नियुक्त किया और उस वर्ष उसके प्रधान श्री इब्राहिम रहिमतुल्ला बनाये गए ,इसके तहत 1924 में टीन उद्योग ,कागज उद्योग ,केमिकल उद्योग ,चीनी उद्योग ,आदि की स्थापना हुई।

1930 के दशक में सीमेंट और शीशा उद्योग की भी स्थापना हुई।

भारत में 1895 में पंजाब नेशनल बैंक ,1906 में बैंक ऑफ़ इण्डिया ,1907 में इंडियन बैंक ,1911 में सेंट्रल बैंक ,1913 में द बैंक ऑफ़ मैसूर तथा ज्वाइंट बैंकों की स्थापना हुई।

*औद्योगीकरण का परिणाम :-

1850 से 1950 के बीच भारत में वस्त्र उद्योग ,लौह उद्योग ,सीमेंट उद्योग ,कोयला उद्योग ,जैसे कई उद्योगों का विकास हुआ।

1. नगरों का विकास

2. कुटीर उद्योग का पतन

3. साम्राज्यवाद का विकास

4. समाज में वर्ग विभाजन एवं बुर्जुआ वर्ग का उदय

5. फक्ट्री मजदुर वर्ग  का जन्म 

6. स्लम पद्धति की शुरुआत

*साम्राज्यवाद :- सैन्य एवं अन्य तरीके से विदेशी भू-भाग के प्रदेशों को अपने अधीन कर,अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना साम्राज्यवाद कहलाता है।

औद्योगीकरण के फलस्वरूप ब्रिटिश सहयोग से भारत के उद्योग में पूंजी लगाने वाले उद्योगपति पूंजीपति बन गये। अतः समाज में तीन वर्गों का उदय हुआ :-पूंजीपति वर्ग ,बुर्जुआ वर्ग(माध्यम वर्ग) एवं मजदुर वर्ग।

*बुर्जुआ वर्ग :- औद्योगीकरण के फलस्वरूप मध्यमवर्गीय बुर्जुआ वर्ग की उत्पत्ति हुई। यह वर्ग आधुनिक शिक्षा प्राप्त था ,जिसने आगे चलकर देश के राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।

*स्लम पद्धति :- औद्योगीकरण के फलस्वरूप औद्योगीक मजदुर वर्ग का उदय हुआ। ये मजदुर शहर में छोटे-छोटे घरों में निवास करने के लिए बाध्य थे,जहाँ कोई बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

*मजदूरों की आजीविका

औद्योगीकरण ने नई फैक्ट्री प्रणाली को जन्म दिया ,जिससे कुटीर उद्योगों के मालिक मजदुर बन गये। ये मजदुर अपनी आजीविका के लिए बड़े-बड़े उद्योगपतियों से प्राप्त वेतन पर निर्भर हो गए। औद्योगीकरणने मजदूरों की आजीविका को इस तरह नष्ट कर दिया था की उनके पास दैनिक उपयोग की वस्तुओं को खरीदने के लिए धन नहीं रह गया था। अतः मजदूरों ने अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए आंदोलन का रुख किया।

1832 में मजदूरों की स्थिति में  सुधार के लिए 'सुधार अधिनियम' पारित किया गया।

लंदन श्रमिक संघ के नेतृत्व में 1838 में मजदूरों ने 'चार्टिस्ट आंदोलन' की शुरुआत की।

1918 में इंग्लैंड के सभी व्यस्क स्री-पुरुष को मताधिकार प्रदान किया गया।

1881 में पहला 'फक्ट्री एक्ट' पारित हुआ। इसके द्वारा 7 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों में कार्य करने पर प्रतिबंध लगाया गया ,12 वर्ष से कम आयु के बच्चों के काम का घंटा तय किया गया तथा महिलाओं के भी काम के घंटे तथा मजदूरी को निश्चित किया गया।

31 अक्टूबर 1920 को 'अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस'(AITUC) की स्थापना की गयी,और लाला लाजपत राय को प्रधान बनाया गया।

1919 में अंतर्राष्टीय श्रम संगठन की स्थापना की गई।

1926 में 'मजदुर संघ अधिनियम'(Trade Union Act) पारित हुआ ,जिसके द्वारा पंजीकृत मजदुर संघों को मान्यता प्रदान की गयी।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मजदुर संगठन तीन भागों में बट गया।

1. इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस(INTUC)

2. हिन्द मजदुर संघ(HMS)

3. यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस(UTUC)

1948 में न्यूनतम मजदूरी कानून पारित किया गया ,जिसके द्वारा उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित की गई।

1962 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय श्रम आयोग स्थापित किया।

*न्यूनतम मजदूरी :- न्यूनतम मजदूरी कानून 1948 में पारित हुआ। इसका उद्देश्य कुछ उद्योगों में मजदूरी की दरें निश्चित करना था। न्यूनतम मजदूरी के सन्दर्भ में कहा गया की मजदूरों की न्यूनतम मजदुरी ऐसा होना चाहिए जिससे मजदुर केवल अपना गुजारा न कर सके,बल्कि इससे कुछ और अधिक हो ताकि वह अपनी कुशलता को भी बनाये रख सके। द्वितीय पंचवर्षीय योजना में यह कहा गया की न्यूनतम मजदूरी ऐसी होनी चाहिए की जिससे मजदूरों की स्थिति उनके अपने गुजर-बसर के स्तर से अधिक हो। तिसरी पंचवर्षीय योजना में मजदुर बोर्ड की स्थापना हुई तथा बोनस देने के लिए बोनस आयोग की नियुक्ति हुई।

*कुटीर उद्योग का महत्व एवं उसकी उपयोगिता

*कुटीर उद्योग :-घरों में काम करने वाले कारीगर अपने हाथ से या हाथ से चलाये जाने वाले यंत्रों के द्वारा वस्तुओं का उत्पादन करते थे। और उत्पादन का यह दौर कुटीर उद्योग के नाम से जाना जाता है।

कुटीर उद्योग का महत्व और विशेषता है की यह बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर ,कौशल में वृद्धि ,उपयुक्त तकनीक का बेहतर प्रयोग ,काम पूंजी निवेश तथा जनसंख्या का बड़े शहरों में प्रवाह को रोकता है।

6 अप्रैल 1948 की औद्योगिक नीति के द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन दिया गया।

1952 -53 में पाँच बोर्ड बनाये गए,जो हथकरघा ,सिल्क,खादी ,नारियल की जाट तथा ग्रामीण उद्योग हेतु थे।


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