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Ex:-4 भारत में राष्ट्रवाद(Nationalism in india)

 Class10th History Chapter 4 Notes In Hindi

भारत में राष्ट्रवाद

राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ होता है -"राष्ट्रीय चेतना उदय"।

*राष्ट्रवाद :- राष्ट्रवाद आधुनिक विश्व में राजनितिक जागृति प्रतिफल है। यह एक ऐसी भावना है जो किसी भौगोलिक सांस्कृतिक या समाजिक परिवेश में रहने वाले लोगों में एकता एवं परस्पर प्रेम की वाहक बनती है।

*राष्ट्रवाद के उदय के कारण :

भारत में राष्ट्रवाद का उदय विविध शक्तियों और कारणों के संयोग का परिणाम था।

1. राजनितिक कारण :- भारत की राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में विभिन्न कारणों का योगदान रहा ,लेकिन किसी न किसी रूप में ब्रिटिश सरकार की प्रशासनिक नीतियों से संबंधित थे।

1878 में तत्कालीन वायसराय लार्ड लिटन ने 'वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट' पारित कर प्रेस पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया।

1879 में 'आर्म्स एक्ट' के द्वारा भारतीयों के लिए अस्त्र-शस्त्र रखना गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।

1899 में लार्ड कर्जन ने 'कलकत्ता कॉरपोरेशन' एक्ट पारित किया जिससे नगर पालिका में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में कमी और गैर निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि की गयी।

1904 में विश्वविद्यालय अधिनियम द्वारा विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया गया।

1905 में बंगाल का विभाजन कर्जन ने साम्प्रदायिकता के आधार पर किया।

2. आर्थिक कारण :- भारत में अंग्रेजों ने जो आर्थिक नीतियाँ अपनायी इसके परिणामस्वरूप भारतीय कृषि और कुटीर उद्योगों को काफी धक्का लगा। ब्रिटिश आर्थिक नीतियों के परिणामस्वरूप किसानों ,कामगारों और अन्य वर्गों की स्थिति बिगड़ती चली गयी।

सरकार द्वारा 1882 में सूती वस्त्रों पर से आयात कर हटा लिया गया था।

3. सामाजिक कारण :- राष्ट्रवाद के उदय में ब्रिटिश सरकार की प्रजाति भेद की निति भी महत्वपूर्ण कारक थी। अंग्रेज अपने को श्रेष्ठ एवं भारतियों को हेय दृष्टि से देखते थे।

जैसे:-रेलगाड़ियों में ,क्लबों में ,सड़को पर और होटलो में अंग्रेज भारतीयों के साथ दुर्व्यहार करते थे।

4. धार्मिक कारण :- विश्व के किसी भी देश में राष्ट्रवाद उत्पन्न करने में धर्म सुधार आंदोलन ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया है। 19वीं शताब्दी में अनेक महापुरषों ने सामाजिक और धार्मिक कुरीतियों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की।

1885 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन किया गया था।

एनी बेसेन्ट और बाल गंगाधर तिलक ने आयरलैंड से प्रेरित होकर भारत में होमरूल लीग आन्दोलन आरंभ किया।

लाला हरदयाल के प्रयास से 1913 में गदर पार्टी को स्थापित किया गया।

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*रौलेट एक्ट :- रौलेट एक्ट को 1919 में पारित किया गया ,जिसमे किसी भारतीय को बिना अदालत में मुकदमा चलाए जेल में बंद किया जा सकता था।

इसी कानून के विरोध 13 अप्रैल 1919 को प्रसिद्ध जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ।

1916 में लखनऊ समझौता (लीग कांग्रेस समझौता) हुई।

महात्मा गाँधी ने रचनात्मक कार्यो के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की।

जलियांवाला बाग नरसंहार के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने "नाइट" की उपाधि त्याग दी ,और गाँधी जी ने कैसर-ए-हिन्द जी उपाधि त्याग दी।

*खिलाफत आन्दोलन

प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के खिलाफ तुर्की की पराजय के फलस्वरूप ऑटोमन साम्राज्य को विघटित कर दिया गया। तुर्की के सुल्तान को अपने शेष प्रदेशों में भी अपनी सत्ता के प्रयोग से वंचित कर दिया गया ऑटोमन साम्राज्य का शासक तुर्की के सुल्तान इस्लामिक संसार का खलीफा हुआ करता था। अतः भारत के मुसलमानों ने तुर्की के साथ किये जाने वाले दुर्व्यवहार के कारण "खिलाफत आंदोलन" की शुरुआत हुई।

भारत में खिलाफत आन्दोलन 1920 में शुरू हुआ।

सितम्बर, 1920 में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता में 'कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन' का आयोजन किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता लाला लाजपत राय ने की। इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार भारत में विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्यवाही करने, विधान परिषदों का बहिष्कार करने तथा असहयोग आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निर्णय लिया।

*असहयोग आन्दोलन :- असहयोग आन्दोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया प्रथम जन आन्दोलन था। इस जन आंदोलन के मुख्यतः तीन कारण थे।

i. खिलाफत का मुद्दा

ii. पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना

iii. स्वराज की प्राप्ति करना

इस आंदोलन में दो तरह के कार्यक्रम को अपनाया गया:-

पहला :- अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने एवं नैतिक रूप से पराजित करने के लिए विंध्वसात्मक कार्य ,जिसके अंतर्गत सरकारी तथा गैर सरकारी समारोह का बहिष्कार करना तथा सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना अदि शामिल था।

दूसरा :- रचनात्मक कार्यो के अंतर्गत,न्यायालय के स्थान पर पंचो का फैसला मानना ,राष्ट्रीय विद्यालयों एवं कॉलेजों की स्थापना,स्वदेशी अपनाना ,चरखा खादी को लोकप्रिय बनाना आदि शामिल था।

जनवरी 1921 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई।

आंदोलन के दौरान राष्ट्रीय विद्यालयों,जामिया-मिलिया इस्लामिया ,अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ जैसे शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की गई।

प्रिंस ऑफ़ वेल्स का स्वागत 17 नवम्बर 1921 को मुंबई में राष्ट्रव्यापी हड़ताल के साथ किया गया।

*सविनय अवज्ञा आंदोलन

ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधी जी के नेतृत्व में 1930ई० में शुरू किया गया सविनय अवज्ञा आंदोलन दूसरा ऐसा जन आंदोलन था जिसका सामाजिक आधार काफी व्यापक था। असहयोग आंदोलन की समाप्ति के पश्चात् भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में एक शून्यता की स्थिति पैदा हो गई थी। परन्तु इसी बीच कुछ ऐसे घटनाक्रम की पुनरावृति हुई जिसने मृतप्राय राष्ट्रवाद को एक नया जीवन प्रदान किया।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारणों को निम्नलिखित रूप में देख सकते है :-

1. साइमन कमीशन की नियुक्ति

2. नेहरू रिपोर्ट

3. विश्वव्यापी आर्थिक की मंदी

4. समाजवाद का बढ़ता प्रभाव

5. क्रांतिकारी आंदोलन का उभार

6. पूर्ण स्वराज की मांग

7. गाँधी जी का समझौतावादी रुख

*चौरी-चौरा हत्याकांड :- उत्तरप्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में राजनितिक जुलूस पर पुलिस द्वारा फायरिंग के विरोध में भीड़ ने थाना पर हमला करके 5 फरवरी 1922 को 22 पुलिसकर्मियों की जान ले ली।

*साइमन कमीशन :- नवम्बर 1927 में ब्रिटिश सरकार ने इंडियन स्टेट्यूटरी कमीशन का गठन किया,जिसे आमतौर पर साइमन कमीशन कहा जाता है।

यह आयोग 7 सदस्यीय था ,जिसके सभी सदस्य अंग्रेज थे।

सर जॉन साइमन को साइमन कमीशन का अध्यक्ष बनाया गया था।

*दांडी यात्रा का उद्देश्य

गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत दांडी यात्रा से की। दांडी यात्रा का उद्देश्य समुद्र के पानी से नमक बनाकर कानुन का उल्लंघन करना था। पुरे देश में नमक कानुन का उल्लंघन किया गया।

*गांधी-इरविन पैक्ट /दिल्ली समझौता

सविनय अवज्ञा आंदोलन की व्यापकता ने अंग्रेजी सरकार को समझौता करने के लिए बाध्य किया। सरकार को गाँधी जी के साथ समझौता वार्ता करनी पड़ी ,जिसे 'गाँधी-इरविन पैक्ट' के नाम से जाना जाता है। इसे दिल्ली समझौता के नाम से भी जाना जाता है। जो 5 मार्च 1931 को गाँधी जी एवं लार्ड इरविन के बीच संपन्न हुई।

*बिहार में किसान आंदोलन

बिहार के निल उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। किसानों की मांग को लेकर 1917 में महात्मा गाँधी ने चम्पारण सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत की। ब्रिटिश सरकार को अंततः किसानों की मांग मानना पड़ा। तिनकठिया व्यवस्था समाप्त कर दी गई,जिससे किसान अब अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हो गए थे। बिहार में 1922 -23 ई० में मुंगेर में शाह मुहम्मद जुबेर के नेतृत्व में किसान सभा का गठन हुआ था ,किन्तु इसे अधिक व्यापक एवं शक्तिशाली आधार 1928 में प्राप्त हुआ,जब स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने बिहटा में और पुनः 1929 में सोनपुर में किसान सभा की विधिवत स्थापना की। 11 अप्रैल 1936 को लखनऊ में अखिल भारतीय किसान सभा का गठन हुआ।

उस समय बिहार में बकास्त आंदोलन आरंभ हुआ ,जिसे कांग्रेस द्वारा 1937 के अधिवेशन में मुख्य मांग के रूप में स्वीकार किया गया। इसी के साथ किसानों की समस्याएँ राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा के साथ समाहित हो गई।

*चम्पारण सत्याग्रह

बिहार में निलहों द्वारा निल की खेती के लिए तिनकठिया व्यवस्था लागु की गई थी ,जिसके अनुसार प्रत्येक किसान को अपनी कुल भूमि को 3/20 हिस्से या 15 प्रतिशत भू-भाग पर निल की खेती करनी होती थी। इसी व्यवस्था के खिलाफ 1917 में गाँधी जी ने सत्याग्रह किया जिसे चम्पारण सत्याग्रह कहा जाता है।

गाँधी जी के आगमन एवं उनके प्रयास के बाद किसानों को राहत दी गई। गांधी जी के प्रयास से चम्पारण सत्याग्रह सफल हुआ।

 

*खेड़ा आंदोलन :- यह आंदोलन अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट के लिए किसानों द्वारा किया गया था आंदोलन था।

*मोपला विद्रोह :- केरल राज्य के मालाबार तट पर भी किसानों का एक बड़ा विद्रोह हुआ ,जिसे मोपला विद्रोह कहा जाता है।

*बारदोली सत्याग्रह :- फरवरी 1928 में गुजरात के सूरत जिले में प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी और लगान वृद्धि के खिलाफ किसानों में असंतोष की भावना जागृत हुई। सरकार के निर्णय के विरुद्ध आंदोलन छेड़ा।

इस आन्दोलन की सफलता के बाद वहाँ की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को सरदारकी उपाधि प्रदान की ।

31 अक्टूबर 1920 को कांग्रेस पार्टी ने 'ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस 'की स्थापना की।

मार्च 1929 में कुछ वामपंथियों नेताओं के विरुद्ध 'मेरठ षड़यंत्र' के नाम पर देश द्रोह का मुकदमा चलाया गया।

*खोड़ विद्रोह :- उड़ीसा के सामंतवादी रियासत के दासपल्ला में 1914 में खोड़ विद्रोह हुआ। यह विद्रोह उत्तराधिकार विवाद से आरंभ हुआ परंतु शीघ्र ही इसने अलग रूप अखितयार कर लिया। इस विद्रोह का विस्तार पूर्वी घाट समूह की दुर्गम पर्वत शृंखलाओं काला हांडी और बस्तर तक फ़ैल गया।

1884 में 'भारतीय राष्ट्रीय संघ' की स्थापना की गई।

कॉंग्रेस शब्द उत्तरी अमेरिका के इतिहास से लिया गया है ,जिसका अर्थ लोगों का समूह होता है।

दिसम्बर 1925 में सत्यभक्त नामक व्यक्ति ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की।

लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदुर पति थी,लेकिन भारतीय स्तर पर दिसम्बर 1928 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी।

अक्टूबर 1934 में बम्बई में कॉंग्रेस समाजवादी दल की स्थापना की गयी।

1931 में बिहार समाजवादी दल की स्थापना जयप्रकाश ने कर दिया था।

सर सैयद अहमद खां ने 1877 में ही मोहम्मडन एंग्लो ओरिएन्टल कॉलेज अलीगढ़ में स्थापित किया।

लार्ड हार्डिंग ने 1911 में बंगाल विभाजन वापस ले लिया।

ढाका के नवाब सलीमुल्लाह खां ने ऑल इण्डिया मुस्लिम "कान्फिडेन्सी" नामक संस्था का सुझाव दिया और इसका सम्मेलन ढाका में 30 दिसम्बर 1906 को बुलाया गया जहाँ इसका नाम बदलकर "ऑल इंडिया मुस्लिम लीग" रखा गया।

चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू ने अपने कांग्रेस पद त्याग दिये और स्वराज पार्टी की स्थापना कर डाली और अथक प्रयास के फलस्वरूप मार्च 1923 में स्वराज पार्टी का प्रथम सम्मेलन इलाहाबाद में हुआ।

"राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ"(RSS) की स्थापना 1925 में हुई थी ,जिसकी मुख्य अवधारणा हिन्दू-हिन्दूत्व,हिन्दू राष्ट्र की थी।

1875 में बम्बई में स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना कर 'वेदों की ओर लौटो' का नारा दिया।

बालगंधार के अनुयायी श्री के० बी० हेडगेवार ने 1925 में नागपुर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना की।


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