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Ex:-7 आनुवंशिकता तथा जैव विकास

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हमलोग इस Notes में Class10th  का Chapter 7 आनुवंशिकता तथा जैव विकास के बारे में अध्यन करेंगे। इस Notes को बहुत ही सरल भाषा हिंदी में बनाया गया है ,जिससे की आप आसानी से समझ सकते है। इस नोट्स में सभी महत्वपूर्ण टॉपिक को शामिल किया गया है जो आप जानना चाहते है।  

आनुवंशिकता तथा जैव विकास

 *गुणसूत्र :-गुणसूत्र का खोज एच डब्ल्यू वाल्डेयर के द्वारा 1888ई० में हुआ था।

कोशिका विभाजन के समय जब क्रोमैटिन छोटे व मोटे धागे के रूप में एकत्रित हो जाता है तब उसे गुणसूत्र कहते है।

जीव      गुणसूत्र (जोड़ा में )

कबूतर      40 

कुत्ता        39

घोडा        32

आलू ,चिम्पांजी ,तम्बाकू  24

मनुष्य      23

गेहूँ         21

चूहा        20

बिल्ली      19

मेढ़क       13

टमाटर      12

मक्का      10

प्याज       8

मटर        7

मक्खी'             6

मच्छर      3

गुणसूत्र जब भी रहता है तो वो हमेशा जोड़े में रहता है ,फुट में नहीं रहता है।

मनुष्य में 22 जोड़ा क्रोमोसोम समान रहता है।

जो क्रोमोसोम समान रहता है उसे आटोसोम कहते है।

मनुष्य में अंतिम जोड़ा क्रोमोसोम भिन्न होता है तो भिन्न क्रोमोसोम को सेक्सक्रोमोसोम कहते है।

नर क्रोमोसोम (XY)

मादा क्रोमोसोम (XX)

*जीन :-जीन का खोज जोहनसन के द्वारा 1909 ई० में किया गया था।

D.N.A के छोटे खण्ड को जीन कहते है।

*D.N.A का प्रतिकृति का प्रजनन में क्या महत्व है ?

D.N.A का अनुवांशिक गुण यह है की यह जनक से संतति पीढ़ी में जाता है और जनन की मूल घटना D.N.A की प्रतिकृति बनाने के लिए कोशिकाएँ विभिन्न रसायनीक क्रियाएँ का उपयोग करती है। जनन कोशिका में D.N.A की दो प्रतिकृतियाँ बनती है। तथा एक-दूसरे से अलग होना आवश्यक है D.N.A की प्रतिकृति बनने के समय दूसरी कोशिकीय संरचना का सृजन करता है। अतः एक कोशिका विभाजित होकर दो कोशिकाएँ बनाती है। इस प्रकार D.N.A का जनन की प्रक्रिया में महत्त्व है।

*अनैच्छिक क्रिया तथा प्रतिवर्ती क्रियाएँ एक-दूसरे से कैसे भिन्न है ?

प्रतिवर्ती क्रियाएँ बाहरी संवेदनों के अंतर में तुरंत और अपने आप हो जाती है। इस पर मस्तिष्क का कोई नियंत्रण नहीं होता है। ये मेरुरज्जु के द्वारा नियंत्रित की जाती है। प्रतिवर्ती क्रियाएँ स्वायत प्रेरक के प्रत्युत्तर में होती है। अनैच्छिक क्रियाएं भी प्राणियों की इच्छा से चालित नहीं होती है,लेकिन इसका संचालन मध्य मस्तिष्क के द्वारा किया जाता है। अतः इस प्रकार यह दोनों एक-दूसरे से भिन्न है।

*कोई वस्तु सजीव है,इसका निर्धारण करने के लिए किस मापदंड का उपयोग करेंगें ?

सभी जीवित वस्तुएं सजीव है। वे रूप,रंग,आकार में भिन्न भी होते है। पशु गति करते है ,बोलते है ,खाते है ,साँस लेते है ,वृद्धि करते है और उत्सर्जन की क्रिया करते है। पौधे भी सजीव है। इनमे भी वृद्धि ,श्वसन ,प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करना एवं ऑक्सीजन का उत्पादन होता है।

अति सूक्ष्म स्तर पर होने वाली इनकी गतियाँ दिखाई नहीं देती है। अतः सजीवों में अंतरणविक गति होती है और जीवद्रव्य मौजूद होते है। इन्ही मापदंडो के आधार पर सजीवों का निर्धारण किया जाता है।

Note:-सजीवों का सबसे प्रमुख लक्षण है अपने समान जिव की उत्पत्ति करना।

*प्लाज्मा क्या है ?

प्लाज्मा रुधिर में उपस्थित एक तरल माध्यम होता है,जो भोजन एवं नाइट्रोजनी पदार्थ का वहन करता है।

E.C.G:-Electro Cardio Graph

*मेंडल के एक संक्रमणीय नियम क्रॉस नियम :-

मेंडल ने लंबाई का चयन कर दो भिन्न लम्बाई वाले मटर के पौधे का चुनाव किए। जिसमे लंबेपन पौधे को (T,T) द्वारा तथा बौनेपन पौधे को (t,t) द्वारा सूचित किए। तथा इन्हे जनक पीढ़ी द्वारा सूचित किए। अब इस को आपस में कृत्रिम परागण कराए जिसके फलस्वरूप F1 पीढ़ी का निर्माण हुआ। इस F1 पीढ़ी में सारे के सारे पौधे शंकर लम्बे प्राप्त हुए। लंबेपन गुण प्रभावी होने के कारण दिखाई दिया। जबकि बौनेपन गुण अप्रभावी होने के कारण दिखाई नहीं दिया। अब इस F1 पीढ़ी को आपस में स्वपरागण होने दिया गया। जिसके फलस्वरूप F2 पीढ़ी का निर्माण हुआ। इस पीढ़ी में 75% पौधे लंबे तथा 25% पौधे बौना प्राप्त हुआ। जिसमे फिनोटाइप का अनुपात 3 : 1 का अनुपात प्राप्त हुआ। जब मेंडल ने इसका गहनतापूर्वक अध्ययन किए तो 25% पौधा शुद्ध लंबा ,50% पौधा संकट लंबा एवं 25% पौधा शुद्ध नाटा प्राप्त हुआ। जिसमे जिनोटाइप का अनुपात 1 :2 :1 का अनुपात प्राप्त हुआ। मेंडल के प्रथम नियम को पृथ्यकरण नियम कहते है।

*मेंडल के द्विसंक्रणीय क्रॉस नियम :-

मेंडल के द्विसंक्रणीय क्रॉस नियम में मेंडल ने दो चुनाव किए जिसमें पहला जोड़ी गोल तथा पीला बीज जिसे 'RR  YY' द्वारा सूचित किए। जबकि दूसरा जोड़ी झूरीदार तथा हरे बीज लिए जिसे 'rr  yy' द्वारा सूचित किए। तथा इसे प्रथम संतति द्वारा सूचित किए। और इसे आपस में कृत्रिम परागण कराए। जिसके फलस्वरूप F1 पीढ़ी का निर्माण हुआ। इस F1 पीढ़ी में सारे के सारे बीज गोल तथा पीला प्राप्त हुआ। और ये लक्षण प्रभावी होने के कारण दिखाई दिया। जबकि झूरीदार तथा हरे बीज अप्रभावी होने के कारण दिखाई नहीं दिया। अब इस F1 पीढ़ी को आपस में स्वपरागण होने दिया गया। जिसके फलस्वरूप F2 पीढ़ी में चार प्रकार के बीज बने,जो इस प्रकार है।

गोल + पीला बीज :-9

गोल + हरा बीज :-3

झूरीदार + पीला बीज :-3

झूरीदार + हरा बीज :-1

जिसमे फिनोटाइप का अनुपात 9:3:3:1 प्राप्त हुआ ,जबकि जिनोटाइप का अनुपात 1:2:2:4:1:2:1:2:1 प्राप्त हुआ।

मेंडल के दूसरा नियम को स्वतंत्र अपव्यूहन कहा जाता है।

*मनुष्य में लिंग निर्धारण :-

मनुष्य में गुण सुत्रों की संख्या 46 होती है। प्रत्येक संतान को समजात गुणसूत्रों की प्रत्येक जोड़ी का एक गुण सूत्र अंडाणु के द्वारा माता से तथा दूसरा शुक्राणु के द्वारा पिता से प्राप्त होता है। शुक्राणु जनन में अर्द्धसूत्री विभाजन के द्वारा दो प्रकार के शुक्राणु बनते है। आधे वे जिसमें 23वीं जोड़ी का गुणसूत्र (22+x) आता है और आधे वे जिनमे 23वीं जोड़ी का गुणसूत्र (22+y) आता है। नारियों में एक समान प्रकार का गुणसूत्र 22+x तथा 22+x वाले अंडाणु पाए जाते है। निषेचन के समय यदि अंडाणु गुणसूत्र वाले शुक्राणु से मिलता है तो युग्मनज 23 जोड़ी XX और इससे बनने वाली संतान लड़की होगी। इसके विपरीत यदि अंडाणु गुणसूत्र वाले शुक्राणु से निषेचित होगा तो युग्मनज में 23वीं जोड़ी एक XY होगा और इससे वाले संतान लड़का होगा। अतः पुरुष का गुणसूत्र संतान में लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी होता है।

*जीवों की उत्पत्ति

इस पृथ्वी पर जीवों के उत्पति के सन्दर्भ में कई सिद्धांत प्रतिपादित किये गए :-

i. वर्तमान जीवों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में जैव विकास को बाद के सिद्धांतों को मान्यता दी जाती है जिसके अनुसार जीवों का विकास क्रमिक रूप से सरल जिव से जटिल जीव की ओर हुआ है।

ii. सर्वप्रथम इस पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति जल में हुई जो एक कोशिकीय एवं स्वपोषी अथवा प्रकाश संश्लेषण कर सकने वाली जीव थे।

iii. ऐसी मान्यता है की नाइट्रोजन एवं मीथेन का संयोग बिजली चमकने से हुआ जिससे जीव द्रव्य का निर्माण हुआ जो जीवन का भौतिक आधार है।


*जैव उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धांत

जैव विकास के पक्ष में तीन सिद्धांत को मान्यता मिली है।

1. लैमार्क वाद

2. डार्विनवाद

3. उत्परिवर्तनवाद

1. लैमार्क वाद :-इस सिद्धांत का प्रतिपादन लैमार्क ने किया था। जिसने 1809 में अपनी पुस्तक 'फिलॉसफिक ऑफ़ जुलॉजिक 'में जीवों की उत्पति के बारे में अपना विचार व्यक्त किया। इसे लामार्कवाद या उपार्जित लक्षणों का वंशागत सिद्धांत कहते है।

इसके सिद्धांत के प्रमुख तथ्य है :-

i. जीवो तथा जीवों के अंगों में निरंतर वृद्धि की असीम क्षमता होती है।

ii. जीवों पर वातावरण का प्रभाव पड़ता है।

iii. वातावरण में हुए परिवर्तन के सन्दर्भ में जीवों के विभिन्न अंग अपने आप को अनुकूलित करते है। यह अनुकूलन इस प्रकार होता है की जिन अंगों का अधिकतम उपयोग होता है इनका विकास अधिक होता है और जिन अंगो का उपयोग कम होते है वह धीरे-धीरे कमजोर होते है और अंततः विलुप्त हो जाते है।

iv. अपने जीवन में उपस्थित विभिन्न लक्षणों को जिव अपनी अगली पीढ़ी में हस्तातंतरित करते है। एक लम्बी अवधि के पश्च्यात इस स्थांतरण के फलस्वरूप एक नये प्रकार के जीवो का विकास होता है।

2. डार्विनवाद :-चार्ल्स डार्विन ने 1831 में जैव विकास के संदर्भ में अपना सिद्धांत प्रस्तुत किये जो 'श्रेष्टतम की उत्तरजीविताके नाम से जाना जाता है। जिसके विशेषताएँ है :-

i. सभी जीवों में संतान उत्पन्न करने की असीम क्षमता होती है।

ii. अधिक संख्या में जीवों के उत्पत्ति के कारण इसमें हवा ,जल,भोजन ,आश्रम जैसी आवश्यकताओं के लिए आपस में संघर्ष होता है।

iii. इस संघर्ष में वे ही जीव जीवित बचते है जिनकी शारीरिक क्षमता वातावरण से ज्यादा अनुकूलित होता है। इस प्रकार श्रेष्ठम जीव ही अपना अस्तित्व बनाये रखने में सक्षम हो जाते है,शेष विलुप्त हो जाते है।

 3. उत्परिवर्तनवाद :-इस सिद्धांत के प्रतिपादक 'ह्युमों-डी-ब्रीजथे। इनके अनुसार सभी जीवों में परिवर्तन की प्रवृति होती है। पीढ़ी दर पीढ़ी परिवर्तनों के जारी रखने से कालांतर में नये जीव की उत्पति होती है।

*जैव विकास वाद के संदर्भ में प्रमाण :-

 वर्तमान में जीवों की उत्पति के सन्दर्भ में जैव विकाशवादी सिद्धांत को मान्यता दी जाती है। इस सिद्धांत को प्रतिपादन करने के लिए अनेकों परिमाण दिए जाते है।

i. समजात अंग :-वे अंग जिसकी उत्पति समान किन्तु कार्य अलग अलग होते है तो उसे समजात अंग कहा जाता है।

जैसे :-मनुष्य का हाथ ,घोड़े का अगला पैर ,चमगादड़ का पंख ,पंक्षी का पंख ,मछली का अगला पंख ये सभी समजात है।

ii. समरूप अंग :-वैसा अंग जिसके कार्य समान,लेकिन उत्पति भिन्न-भिन्न हो तो उसे समरूप अंग कहा जाता है।

जैसे :-चमगादड़ का पंख ,तितलियों का पंख

iii. अवशेषी अंग :-वे अंग जो किसी जीव के आदिम पूर्वजों में काफी विकसित थे किन्तु वर्तमान में अविकसित है और इससे कोई काम नहीं लिया जाता है तो इसे अवशेषी अंग कहते है।

जैसे :-अपेंडिक्स ,आँखों का निक्टेटिंग ,अक्ल दाँत ,

Note:-वर्तमान में मनुष्य में 100 अवशेषी अंग होते है।

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