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वर्ण ( संस्कृत वर्णमाला )

 Sanskrit Grammar 

वर्ण(संस्कृत वर्णमाला)

वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते है,जिसका खंड या टुकड़ा नहीं किया जा सकता है।

जैसे :- क् ,च् ,ट् ,अ इत्यादि

संस्कृत व्याकरण में सम्पूर्ण वर्णो की संख्या 50 होती है ,जो इस प्रकार है:-

,,,,,,,,लृ ,,, ,,कवर्ग(5) ,चवर्ग(5) ,टवर्ग(5) ,तवर्ग(5),पवर्ग(5),,,,,,,,,अयोगवाह(4-अनुस्वार ,विसर्ग ,जिव्हामुलिय ,उपध्मानीय)

इन 50 वर्णों में से चार वर्ण ऋ ,,जिव्हामुलिय ,उपध्मानीय हिंदी भाषा के अंतर्गत नहीं आते है। इसीलिए हिंदी व्याकरण में वर्णो का कुल संख्या 46 होता है।

*वर्ण का भेद :-

संस्कृत व्याकरण में सम्पूर्ण वर्णो के दो भागों में बांटा गया है।

i. स्वर वर्ण

ii. व्यंजन वर्ण

i. स्वर्ण वर्ण :-जिन वर्णो का उच्चारण स्वतः या अपने आप होता है ,उसे स्वर वर्ण कहते है।

इनकी कुल संख्या संस्कृत व्याकरण के अनुसार 13 होती है।

जो इस प्रकार है :- ,,,,,,,,लृ ,,, ,

*स्वर वर्ण के भेद

 स्वर वर्ण के तीन भेद होते है।

1. हस्व स्वर वर्ण :-जिन स्वर वर्णो की उच्चारण करने में एक मात्रा का समय लगता है

इनकी कुल संख्या पांच होती है।

,,,,लृ

2. दीर्घ स्वर वर्ण :-जिन स्वर वर्ण के उच्चारण करने में दो मात्रा का समय लगता हो ,वे दीर्घ स्वर वर्ण कहलाता है।

इनकी कुल संख्या 8 होती है।

,,,,,,,

3. प्लुत स्वर वर्ण :-जिन स्वर वर्ण के उच्चारण करने में तीन मात्रा का समय लगता है ,उसे प्लुत स्वर वर्ण कहते है।

इनकी संख्या निश्चित नहीं होता है ,क्योकि जिस तीन की भी स्वर वर्णो के आगे तीन की संख्या लिख देते है वे प्लुत स्वर वर्ण बन जाते है।

जैसे :- अ उ ,आ ऊ ,इ उ ,ई उ

ii. व्यंजन वर्ण :-वैसे वर्ण जिसका उच्चारण करने में किसी न किसी स्वर वर्ण की सहायता लेना पड़ता है।

अर्थात ,

जिस वर्ण का उच्चारण स्वर की सहायता की बिना संभव नहीं हो।

इसकी संख्या 37 होती है।

जैसे :- कवर्ग ,चवर्ग ,टवर्ग ,तवर्ग ,पवर्ग ,,,,,,,,,अयोगवाह(4-अनुस्वार ,विसर्ग ,जिव्हामुलिय ,उपध्मानीय)

*व्यंजन वर्ण के भेद :-

सम्पूर्ण व्यंजन वर्णो को चार भागों में बांटा गया है।

1. स्पर्श व्यंजन वर्ण :-जिन व्यंजन वर्णो के उच्चारण करने में जिह्वा अपने उच्चारण स्थानों को स्पर्श करता हो अथवा छूता हो ,उसे स्पर्श व्यंजन वर्ण कहते है।

इसकी कुल संख्या 25 होती है ,जो इस प्रकार है।

कवर्ग ,चवर्ग ,टवर्ग ,तवर्ग ,पवर्ग

2. अन्तः स्थः व्यंजन वर्ण :-जिन व्यंजन वर्ण का उच्चारण करने में मुख के गर्म हवा मुख में ही ठहरी हुए प्रतीत होती है ,उसे अन्तः स्थः व्यंजन वर्ण कहते है।

इसकी कुल संख्या चार होती है।

,,,

3. उष्म व्यंजन वर्ण :-जिन व्यंजन वर्णो के उच्चारण करने में मुख की गर्म हवा वर्ण के साथ ही पूर्णतः बाहर निकल जाती है ,वे उष्म व्यंजन वर्ण कहलाते है।

इसकी सांख्या भी चार होती है।

,,,

4. अयोगवाह व्यंजन वर्ण :-अनुस्वार ,विसर्ग ,जिव्हामुलिय तथा उपध्मानीय इन चारों को अयोगवाह व्यंजन वर्ण कहा जाता है।

अयोगवाह का शाब्दिक अर्थ अ + योग +निवाह अथवा जो वर्णो के योग में नहीं आते है ,केवल प्रयोग का निर्वाह करते है।

इन चारों वर्णो को अयोगवाह कहने के पीछे दो कारण है।

i. यह की इन चारों वर्णो का प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं होता है। किसी न किसी स्वर्ण वर्णो के साथ वर्ण के साथ ही होता है। अतः इसे न तो स्वर्ण वर्ण कह सकते है और न ही व्यंजन वर्ण ,इसीलिए इसे अयोगवाह कहते है।

ii. दूसरा कारण यह है की सम्पूर्ण वर्णो की उत्पत्ति भगवान शंकर के डमरू से निकलने वाले 14 माहेश्वरी सूत्र को माना गया है। और यह चारों वर्णो का उस महेश्वर सूत्रों में कही उल्लेख नहीं है।

अतः इस कारण भी इसे वर्णो के योग में न रखकर एक अलग नाम अयोगवाह वर्ण कहा गया है।

*विभिन्न वर्णो के उच्चारण स्थान

सम्पूर्ण वर्णो का उच्चारण मुख के किसी न किसी भाग से अवश्य होता है। अतः जिन वर्णों का उच्चारण मुख के जिस भाग से होता है ,वह भाग उस वर्ण का उच्चारण स्थान कहलाता है। जो संस्कृत व्याकरण में 9 प्रकार के होते है। जिसका सूत्र साहित्य वर्णन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है।

विभिन्न-वर्णो के-उच्चारण-स्थान
विभिन्न वर्णो के उच्चारण स्थान


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