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नाभिक(Nucles)


*परमाणु संरचना(Structure Of An Atom)

कोई परमाणु एक धन आवेशित नाभिक से बना होता है ,जिसके अंदर प्रोट्रॉन एवं न्यूट्रॉन होते है। प्रोट्रॉन तथा न्यूट्रॉन को एक साथ न्यूक्लिऑन कहा जाता है। ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृतीय पथ पर गतिशील होता है ,जिसे कक्षा कहा जाता है।

परमाणु का नाभिक =

जहाँ ,

Z-परमाणु संख्या =प्रोट्रॉन की संख्या

A -द्रव्यमान संख्या =प्रोट्रॉन की संख्या + न्यूट्रॉन  की संख्या

[न्यूट्रॉन की संख्या = A - Z]

Note:-द्र्वयमान संख्या =A

परमाणु द्रव्यमान =A × 1.67 × 10-27kg

*नाभिक की आकृति आकार (Shape and Size Of a Nucleus)

नाभिक लगभग गोलीय आकृति का होता है और इसकी त्रिज्या रदरफोर्ड के अनुसार-

[R=RoA1/3]

जहाँ,

Ro=1.1fm=1.1 × 10-15m

A -द्रव्यमान संख्या ,R-त्रिज्या

*नाभिक का घनत्व(Density Of A Nucleus)

इकाई आयतन में उपस्थित द्रव्यमान की मात्रा को घनत्व कहा जाता है।

नाभिक का घनत्व द्रव्यमान संख्या से स्वतंत्र होता है।

*द्रव्यमान ऊर्जा समतुल्यता(Mass Energy Eqivqlence)

आइस्टीन के अनुसार जब Δm द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित होता ही तो उस ऊर्जा का मान -

E = Δmc2

E-ऊर्जा ,Δm-द्रव्यमान में परिवर्तन ,c-प्रकाश का वेग(3 × 108m/s)

Note:-नाभिक तथा परमाणु में द्रव्यमान को प्रायः amu(atomic mass unit) में मापा जाता है।

[1amu = 1.67 × 10-27kg]

*द्रव्यमान क्षय एवं बंधन ऊर्जा (Mass Defeat And Binding Energy)

किसी नाभिक के सभी न्यूक्लिऑन को पूर्ण रूप से अलग-अलग करने के लिए जो ऊर्जा की आवश्यकता होती है उसे बंधन ऊर्जा कहा जाता है। इसे प्रायः "Eb" से सूचित किया जाता है।

न्यूक्लिऑन का द्रव्यमान स्थाई नाभिक के द्रव्यमान से अधिक होता है और द्रव्यमान के अंदर को द्रव्यमान क्षय कहा जाता है।

इसे प्रायः Δm से सूचित किया जाता है।

माना की एक स्थायी नाभिक  का द्रव्यमान M है।

प्रोट्रॉन की संख्या =Z

न्यूट्रॉन की सांख्य =A - Z

यदि एक प्रोटॉन का द्रव्यमान mp तथा एक न्यूट्रॉन का द्रव्यमान mn है तो ,

[सभी न्यूक्लिऑन का द्रव्यमान = zmp + (A - Z)mn]

[द्रव्यमान क्षय(Δm) =  zmp + (A - Z)mn - m]

बंधन ऊर्जा = Δm.c2

[Eb = zmp + (A - Z)mn] c2

Note:-बंधन ऊर्जा प्रति न्यूक्लिऑन = =

*नाभिकीय बल (Nuclear Force)

वैसा बल जो नाभिक के अंदर सभी न्यूक्लिऑन को एक साथ बाँध कर रखता है,उसे नाभिकीय बल कहा है। यह बहुत ही कम बल का परास होता है। लगभग 1fm(फर्मी) के लिए 1 × 10-15m इसका मान अधिकतम होता है।

नाभिकीय बल का गुण या प्रमुख बिंदु :-

i. एक फर्मी के परास में इसका मान अधिकतम होता है। परन्तु 10fm से अधिक दुरी के लिए इसका मान नगण्य हो जाता है।

ii. नाभिकीय बल > विधुत बल > गुरुत्वाकर्षण बल

iii. नाभिकीय बल दो प्रोट्रॉन ,दो न्यूट्रॉन तथा एक प्रोट्रॉन और एक न्यूट्रॉन के बीच लगता है अर्थात सभी न्यूक्लिऑन के बीच कार्य करता है।

iv. नाभिकीय बल का मान द्रव्यमान एवं आवेश से स्वतंत्र होता है। अर्थात,

दो प्रोट्रॉन के बीच नाभिकीय बल = दो न्यूट्रॉन के बीच नाभिकीय बल = एक प्रोट्रॉन और एक न्यूट्रॉन के बीच नाभिकीय बल

v. नाभिकीय बल केंद्रीय बल नहीं है। अतः न्यूक्लिऑन को कोणीय संवेग संरक्षित नहीं रहता है।

vi. 1fm से बहुत कम दुरी होने पर नाभिकीय बल में विकर्षण का गुण आ जाता है।

 

*रेडियो सक्रियता(Radio Activity)

प्राकृति में उपस्थित वैसे पदार्थ जो अदृश्य किरणों (,β,Ύ) को उत्सर्जन करते है उसे रेडियो सक्रिय पदार्थ कहा जाता है और उत्सर्जन की प्रक्रिया को रेडियो सक्रियता कहा जाता है।

1. -क्षय(-Decay):--क्षय में परमाणु की संख्या में 2 की कमी आती है। जबकि द्रव्यमान संख्या में 4 की कमी आती है।

➠∝-किरण के गुण

i. यह धनावेशित किरणों का समूह है।

ii. विधुत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र में -किरण विक्षेपित हो जाता है।

iii. इसकी आयनीकरण क्षमता बहुत ही अधिक होती है।

iv.  इसकी विवेदन क्षमता बहुत ही कम होती है।

2. β-क्षय(β-Decay):-β-क्षय में नाभिक के परमाणु संख्या में एक की वृद्धि होती है और द्रव्यमान संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

β-किरण के गुण :-

i. यह ऋणावेशित किरणों का समूह है।

ii. विधुत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र में विक्षेपित हो जाता है।

iii. इसकी आयनीकरण क्षमता -से अधिक परन्तु Ύ-से कम होती है।

iv. इसकी विवेदन क्षमता -किरण से अधिक परन्तु Ύ-से कम होता है।

3. Ύ-क्षय(Ύ-Decay):-जिस प्रकार परमाणु के इलेक्ट्रॉन अलग-अलग कक्षा में होते है,ठीक उसी प्रकार नाभिक के अंदर न्यूक्लिऑन भी अलग-अलग कक्षा में होते है ,जब न्यूक्लिऑन उच्च ऊर्जा वाली कक्षा से निम्न ऊर्जा वाली कक्षा में आता है तो फोटॉन का उत्सर्जन होता है और इन्ही फोटॉन के समूह को Ύ-किरण कहा जाता है।

Ύ-क्षय में न तो परमाणु संख्या और ना ही द्रव्यमान संख्या पर कोई प्रभाव पड़ता है।

Ύ-किरण का गुण :-

i. यह एक विधुत चुंबकीय तरंग है ,इसका वेग हवा अथवा निर्वात में प्रकाश के वेग के बराबर अर्थात,3 × 108   होता है।

ii. यह विधुत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र में विक्षेपित नहीं होता है।

iii. इसकी आयनीकरण क्षमता बहुत ही कम होती है और इसकी विवेदन क्षमता बहुत ही अधिक होती है।

*रेडियो सक्रिय क्षय के लिए रदरफोर्ड एवं सोढ़ी का नियम

रदरफोर्ड एवं सोढ़ी के नियम के अनुसार रेडियो सक्रिय क्षय की दर रेडियो सक्रिय नाभिक की संख्या के सीधे समानुपाती होता है।

जहाँ,

λ एक नियतांक है जिसे क्षय नियतांक(Decay Constant) कहा जाता है।

इसका S.I मात्रक S-1 तथा विमा T-1 होता है। 

*किसी क्षण t पर रेडियो सक्रिय नाभिक की संख्या :-

*अर्द्धआयु (Half Life)

जिस समय अंतराल में रेडियो सक्रिय नाभिक की संख्या प्रारंभिक संख्या की आधी हो जाती है उसे अर्द्धआयु कहा जाता है।

इसे प्रायः "t1/2" से सूचित किया जाता है।

*औसत आयु (Average Life)

कोई रेडियो सक्रिय नाभिक जितने समय तक सक्रिय रहता है उसे उसका औसत आयु कहा जाता है। इसे प्रायः "Tavg" से सूचित किता जाता है।

औसत आयु = 1/क्षय नियतांक

[Tavg=1 /λ]

*अर्द्धआयु तथा औसत आयु के बीच संबंध :-

*नाभिकीय विखंडन(Nuclear Fission)

जब कोई भारी नाभिक दो या दो से अधिक हल्के नाभिकों में टूटता है तो उसे नाभिकीय विखंडन कहा जाता है। इसमें उच्च मात्रा में ऊर्जा की उत्पत्ति होती है।

जैसे :-

*श्रृंखला अभिक्रिया(Chain Reaction)

वैसी अभिक्रिया जिसमें अभिक्रिया को प्रारंभ करने वाला कण भी उत्पन्न हो जाता है और अभिक्रिया अपने-आप आगे बढ़ने लगती है उसे श्रृंखला अभिक्रिया कहा जाता है।

परमाणु बम इसी क्रिया पर आधारित है।

*नाभिकीय विखंडन एवं रेडियो सक्रियता में अंतर

i. रेडियो सक्रियता एक स्वतः अभिक्रिया है जबकि नाभिकीय विखंडन में न्यूट्रॉन से प्रहार करना पड़ता है।

ii. रेडियो सक्रियता एक मंद अभिक्रिया है जबकि नाभिकीय विखंडन एक तीव्र अभिक्रिया है।

iii. रेडियो सक्रियता में ऊर्जा की मात्रा कम होती है जबकि नाभिकीय विखंडन में अत्यंत ही उच्च मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है।

iv. रेडियो सक्रियता में नाभिक के परमाणु संख्या एवं द्रव्यमान संख्या में बहुत कम का अंतर आता है जबकि नाभिकीय विखंडन में नाभिक लगभग दो बराबर भागों में बंट जाता है।

*नाभिकीय रिएक्टर (Nuclear Reactor)

यह एक ऐसी युक्ति है जिसमें नाभिकीय विखंडन से प्राप्त नाभिकीय ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है ,इसे नियंत्रित विखंडन अभिक्रिया होती है।

*शीतलक(Coolant)

नाभिकीय विखंडन के दौरान उच्च मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसके कारण नाभिकीय रिएक्टर का ताप बढ़ता है। नाभिकीय रिएक्टर के ताप को घटाने के लिए जिस पदार्थ का उपयोग किया जाता है ,उसे शीतलक कहते है।

शीतलक के रूप में प्रायः पानी अथवा CO2 का प्रयोग किया जाता है।

*रिएक्टर कोर(Reactor Core):-यह नाभिकीय रिएक्टर का सबसे प्रमुख भाग है ,इसके अंदर ही नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया कराया जाता है। यूरेनियम (92U235) को नाभिकीय रिएक्टर का ईंधन कहा जाता है।

*मंदक:-वैसा पदार्थ जो नाभिकीय विखंडन में उत्पन्न न्यूट्रॉन के वेग को घटाता है उसे मंदक कहा जाता है। नाभिकीय रिएक्टर में मंदक के रूप में प्रायः भारी जल उपयोग होता है।

*नियंत्रक :-वैसा पदार्थ जिसका गुण न्यूट्रॉन को अवशोषित करने का होता है अर्थात जो नाभिकीय विखंडन के दौरान आवश्यकता से अधिक न्यूट्रॉन को अवशोषित कर लेता है उसे नियंत्रक कहा जाता है।

नाभिकीय रिएक्टर में नियंत्रक के रूप में कैडियम के छड़ का उपयोग किया जाता है।

*नाभिकीय संलयन :-जब दो या दो से अधिक हल्के नाभिक आपस में मिलकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते है ,तो इसे नाभिकीय संलयन कहा जाता है। इसके लिए उच्च ताप एवं उच्च दाब का होना अनिवार्य है।

सूर्य से आने वाली ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य के अंदर होने वाली नाभिकीय संलयन अभिक्रिया है।

Note :-प्रकाश एक अनुप्रस्थ तरंग है जिसका पता प्रकाश के ध्रुवण से चलता है,क्योकि अनुप्रस्थ तरंग का ही ध्रुवण होता है।

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