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वन एवं वन्य प्राणी संसाधन

वन एवं वन्य प्राणी संसाधन मानव जीवन के हमसफर है | वन पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच जैसा है| यह पारिस्थैतिक तंत्र के निर्माण में महत्वपूर्ण घटक है |
 भारत में वन संसाधन एक महत्वपूर्ण संसाधन है |
*जैव विविधता :-किसी भी क्षेत्र में पाए जाने वाले जंतुओं और पादपों की विविधता को उस क्षेत्र की जैव विविधता कहते है |
इन जीवो के आकार तथा कार्यो में अलग अलग पाए जाते है |
जैव विविधता के मामले ने भारत एक सम्पन देश है ,विश्व की लगभग 16 लाख प्रजातियों में से लगभग 8% प्रजातियाँ भारत में पाई जाती है |
*वन :-वन उस बड़े भाग को कहते है जो पेड़ पौधे एवं झाड़ियाँ द्वारा आच्छादित होते है |
वन जैव-विविधताओं का आवास होता है |
वन दो प्रकार के होते है |
(i)प्राकृतिक वन :-वे वन जो स्वतः विकसित होते है |
(ii)मानव निर्मित /वानिकी :-जो वन मानव द्वारा विकसित होते है |
*वन और वन्य जीव संसाधनों के प्रकार और वितरण :-
वन विस्तार के नजरिए से भारत विश्व का दसवाँ देश है ,यहाँ करीब 68 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वन का विस्तार है | और रूस में 809 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र है ,जो विश्व में प्रथम है |
F.A.O. (Food and Agriculture Organisation)की वानिकी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1948 में विश्व में 4 अरब हेक्टेयर वन क्षेत्र था ,जो 1990 में घट कर 3. 4 अरब हेक्टेयर हो गया | लेकिन 2005 में इसमें कुछ सुधार आया और फिर कुल वन क्षेत्र 3.952 अरब हेक्टेयर हो गया | यह विश्व के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 30 प्रतिशत है |
2001 में भारत में 19.27 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र पर वन फैले हुए थे ,(वन सर्वेक्षण,FSI) के अनुसार 20.55% भौगोलिक क्षेत्र में वन का विस्तार है |
*वृक्षों के घनत्व के आधार पर वनों को पांच वर्गों में बाँटा गया है |
(1)अत्यंत सघन वन :-भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार 54.6 लाख हेक्टेयर भूमि पर है ,जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.66 प्रतिशत है |
असम और सिक्किम को छोड़कर सभी पूर्वोत्तर राज्य इस वर्ग में आते है ,इन क्षेत्रों में वनों का घनत्व 75 प्रतिशत से अधिक है |
(2)सघन वन :-भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार 73.60 लाख हेक्टेयर भूमि पर है ,जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3 प्रतिशत है |
हिमाचल प्रदेश ,सिक्किम ,मध्य प्रदेश आदि पहाड़ी क्षेत्रों में वनों का घनत्व 62.99 प्रतिशत है |
 (3)खुले वन :-भारत में इस प्रकार के वन का विस्तार 2.59 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर है ,जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7.12 प्रतिशत है |
तमिलनाडु ,केरल ,उड़ीसा के कुछ जिलों एवं असम के 16 आदिवासी जिलों में इस प्रकार के वनो का विस्तार है |
असम के आदिवासी जिलों में वृक्षों का घनत्व 23.89 प्रतिशत है |
(4)झाड़ियां एवं अन्य वन :-राजस्थान का मरुस्थलीय क्षेत्र एवं अर्ध शुष्क क्षेत्र में इस प्रकार के वन पाए जाते है | इसके अंतर्गत 2.459 करोड़ हेक्टेयर भूमि आते है ,जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.68 प्रतिशत है |
(5)तटीय वन(मैंग्रोव) :-विश्व के तटीय वन क्षेत्र का मात्र 5 प्रतिशत (4500km) क्षेत्र ही भारत में है ,जो समुद्र तटीय राज्यों में फैला है | कुल मिलाकर 12 राज्यों केंद्रप्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव वन है|
देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 0.14 प्रतिशत क्षेत्र में मैंग्रोव है |
देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 25.11 % वन क्षेत्र पूर्वोत्तर के सात राज्यों में है |
भारत में 188 आदिवासी जिलों वन क्षेत्र का 60.11% पाया जाता है |
देश में वनाच्छादित क्षेत्र के मामले में मध्यप्रदेश का प्रथम स्थान है,जंहा कुल वन क्षेत्र का 11.22% है |
बिहार विभाजन के बाद बिहार राज्य में वन विस्तार  दैनीय स्थिति में आ गया जो मात्र 6764.14 हेक्टेयर है ,क्योकि बिहार में अधिकतर भूमि कृषि योग्य है |
बिहार के 38 जिलों में से 17 जिलों से वन क्षेत्र समाप्त हो गया है |
*प्रशासकीय दृष्टि से वनो को निम्नांकित वर्गों में रखा गया है |
(1)आरक्षित वन(Reserved Forest):-जिस वन में शिकार और मानव गतिविधियों पर पुरी तरह प्रतिबंध  उसे आरक्षित वन कहते है |
वन एवं वन्य जीवों के लिए आरक्षित वनो को सबसे अधिक मूल्यवान माना जाता है |
देश में आधे से अधिक वन क्षेत्र (लगभग 54%)आरक्षित वन घोषित किए गए है |
(2)रक्षित वन(Protected Forest):-इस वन क्षेत्र में विशेष नियमो के अधीन पशुओं को चराने और सिमित रूप में लकड़ी काटने की सुविधा दी जाती है |
  या,जिस वन में शिकार और मानव गतिविधियों पर प्रतिबंध हो ,लेकिन उस वन पर निर्भर रहने वाले आदिवासियों पर यह प्रतिबंध लागु नहीं होते हो ,रक्षित वन कहलाता है |
वन विभाग के अनुसार कुल वन क्षेत्र का लगभग एक तिहाई हिस्सा(29%) रक्षित वन है |
(3)अवर्गीकृत वन(Unclassified Forest):-शेष सभी प्रकार के वन और बंजर भूमि जो सरकार ,व्यक्तियों ,समुदायों के स्वामित्व में होते है, अवर्गीकृत वन कहलाते है |
इस वनों में लकड़ी काटने और पशुओं को चराने पर सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं होता है,लेकिन सरकार इसके लिए शुल्क लेती है |
कुल वन क्षेत्र का 17% अवर्गीकृत वन है |
आरक्षित एवं रक्षित वन का सबसे अधिक विस्तार मध्यप्रदेश में है ,जंहा कुल वन क्षेत्र का 75% है|
*वन सम्पदा तथा वन्य जीवो का हास्य एवं संरक्षण :-
 
वन सम्पदाओं के हास्य उपनिवेश काल से ही शुरू हो गया था ,भारत मर वनो के हास्य का एक बड़ा कारण कृषिगत भूमि का फैलाव है | 1951 और 1980 के बीच लगभग 26200 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र कृषि में परिवर्तित हो गया |
 विशेष रूप से पूर्वोत्तर और मध्य भारत  जनजातीय क्षेत्र में स्थानान्तरि खेती अथवा स्लैश खेती के चलते वनों का हास्य हुआ है | और बड़ी -बड़ी विकास योजनाओं से भी वनों को बहुत नुकसान हुआ है|
   जैसे :-1952 में नदी परियोजनाओं के कारण 5000 वर्ग किमी० से अधिक वन क्षेत्रो का नुक्सान हुआ है ,औधोगिक विकास ,रेल मार्ग आदि |
*हिमालय यव(Yew):-हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला औषधीय पौधा है |
हिमालय यव(चीड़ के प्रकार का सदाबहार वृक्ष)एक औषधीय पौधा है जो हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रो में पाया जाता है |
चीड़ी की छाल ,पत्तियाँ ,टहनियों और जड़ों से टैकसोल(Taxol)नमक रसायन निकाला जाता है तथा इसे कैंसर रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है|
*वन्य जीवों के अधिवास पर मानवीय प्रभाव के तीन प्रमुख कारण है |
(i)प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण :-वन जीवों के प्राकृतिक आवास जंगल ,मैदानी क्षेत्र ,नदियाँ आदि है ,मनुष्य अपने सुख -सुविधाओं में वृद्धि के लिए वन्य जीवों के प्राकृतिक आवासों का अतिक्रमण कर रहा है |
(ii)प्रदूषण  समस्या :-बढ़ते हुए प्रदुषण ने कई समस्याओं को जन्म दिया है | जिससे जीवों की संख्या में कमी के प्रमुख कारक पराबैगनी किरणें ,अम्लवर्षा और हरित गृहप्रभाव है | जिसके कारण धीरे -धीरे वन्य जीव विलुप्त हो रहे है |
(iii)आर्थिक लाभ :-मनुष्य आर्थिक लाभ के लिए रंग -बिरंगी तितलियों से लेकर मेढ़कों ,पक्षियों और जंगली जानवरों ,कछुआ ,तोता आदि परिंदो का अवैध शिकार कर इन्हे बेचते है |
निम्न तलीय जल जमाव वाले क्षेत्र को वेट लैंड कहा जाता है | स्थानीय तौर पर इसे चौर ,टाल भी कहा जाता है |
*रेड डेटा बुक क्या है ?
संकटग्रस्त प्रजातियों को सूचीबद्ध करने वाली पुस्तक को रेड डाटा बुक कहते है |
इसमें सामान्य प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे से अवगत किया जाता है |
वर्तमान समय तक कुल 5 रेड डेटा बुक प्रकाशित हो चूका है |
1.प्रथम बुक :-स्तनधारी
2.दूसरी बुक :-पक्षी
3.तीसरी बुक :-मरुस्थलीय उभयचर
4.चौथी बुक:-मछलियां
5.पांचवी बुक:-पौधे -वनस्पति
IUCN -International union for the Conservation of Nature and Natural Resources
IUCN ने संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में कार्य कर रही है |
IUCN को अब विश्व संरक्षण संघ (World Conservation Union)भी कहा जाता है |
इस संस्था ने विभिन्न प्रकार के पौधे और प्राणियों के जातियों को चिन्हित कर निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया है :-
(i)सामान्य जातियाँ :-ये वे जातियाँ है जिनकी संख्या जीवित रहने के लिए सामान्य मानी जाती है |
जैसे :-चीड़ ,पशु इत्यादि
(ii)संकटग्रस्त जातियाँ :-ये वे जातियाँ है जिनके लुप्त होने का खतरा है |
जैसे :-काला हिरण ,मगरमच्छ ,गेंडा इत्यादि
(iii)सुभेद्य जातियाँ :-ये वे जातियाँ है ,जिनकी संख्या लगातार घट रही है | अगर इन पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह संकटग्रस्त जातियों की श्रेणी में आ सकते है |
जैसे :-गंगा का डॉल्फिन , नीली भेड़ इत्यादि
(iv)दुर्लभ जातियाँ :-ये वे जातियाँ है ,जिनकी संख्या बहुत कम है |
जैसे :-एशियाई भैंस ,हिमालय के भूरे भालू इत्यादि
(v)स्थानिक जातियाँ :-प्राकृतिक या भौगोलिक सीमाओं से अलग विशेष क्षेत्रों में पाई जाने वाली जातियाँ |
जैसे :-निकोबारी कबूतर ,अंडमानी जंगली सूअर इत्यादि
(vi)लुप्त जातियाँ :-ये वे जातियाँ है जो इनके रहने के आवासों में खोज करने पर अनुपस्थित पाई गई है |
जैसे :-एशियाई चीता ,डोडो पक्षी इत्यादि
*वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए संरक्षित क्षेत्र :-
(i)राष्ट्रीय उधान :-ऐसे पार्को का उद्देश्य वन्य प्राणियों के प्राकृतिक आवास में वृद्धि एवं प्रजनन की परिस्थितियों को तैयार करना है |
हमारे देश में राष्ट्रीय उद्यान की संख्या 85 है |
(ii)विहार क्षेत्र या अभ्यारणय :-यह एक ऐसा सुरक्षित क्षेत्र होता है जंहा वन्य जीव सुरक्षित ढंग से रहते है |
यह निजी सम्पति हो सकती है |
भारत में इनकी संख्या 448 है |
(iii)जैवमण्डल :-यह वह क्षेत्र है जंहा प्राथमिकता के आधार पर जैव -विविधता के संरक्षण के कार्यक्रम चलाए जाते है |
भारत में इनकी संख्या 14 है |
विश्व के 65 देशों में लगभग 243 सुरक्षित जैवमण्डल क्षेत्र है |
*कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान तथा अभ्यारण्य
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान - मध्य प्रदेश
सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान - मध्य प्रदेश
गाँधी सागर अभ्यारण्य - कर्नाटक
बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान - कर्नाटक
घना राष्ट्रीय उद्यान - राजस्थान
मालापट्टी पक्षी विहार - आंध्र प्रदेश
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान - उत्तराखण्ड
केदारनाथ अभ्यारण्य - उत्तराखण्ड
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान - उत्तर प्रदेश
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान - असम
गिरी राष्ट्रीय उद्यान - गुजरात
सुंदरवन टाइगर रिजर्व - पश्चिम बंगाल

*जैव अपहरण(Bio Piracy)  क्या है ?
प्रकृतिजनित तथा करोड़ो वर्षो के विकास की क्रिया में स्थापित अनुवांशिक गुणों में हेराफेरी को जैव अपहरण कहते है |
बाघ परियोजना (Project Tiger)
⇒बाघों को विलुप्त होने से बचाने के लिए बाघ परियोजना को 1973 में शुरू किया गया था |
20 वीं सदी की शुरुआत में बाघों की कुल आबादी 55000 थी ,जो 1973 में घटकर 1827 हो गई |
 *बाघ की आबादी घटने के कारण :-
व्यापार के लिए शिकार ,भोजन के लिए आवश्यक जंगली उपजातियों की संख्या कम होना ,सिमटती आवास ,जनसंख्या में वृद्धि आदि |
*बाघ परियोजन की सफलता :-
बाघ परियोजना विश्व की बेहतरीन वन्य जीव परियोजनाओं में से एक है | शुरू में इससे बहुत सफलता प्राप्त हुई क्योकि बाघों की संख्या बढ़कर 1985 में 4002 और 1989 में 4334 हो गयी | लेकिन 1993 में इसकी संख्या घटकर 3600 तक पहुँच गई |
भारत में 37,761 वर्ग किमी० पर फैले हुए 27 बाघ रिजर्व है |
*भारत में महत्वपूर्ण बाघ संरक्षण परियोजना :-
कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान ,सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान,बांधगढ़ राष्ट्रीय उद्यान,मानस बाघ रिजर्व ,पेरियार बाघ रिजर्व ,सारिस्का वन्य जीव पशुविहार




*समुदाय और वन संरक्षण :-
भारत के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय समुदाय सरकारी अधिकारीयों के साथ मिलकर वन्य जीवों के आवास स्थलों के संरक्षण में जुटे है ,क्योकि ये वन और वनस्पतियों से दीर्घकाल से इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है।
कई क्षेत्रों में लोग स्वयं वन्य जीव आवासों  रक्षा कर रहे है।
राजस्थान के अलवर जिलें में 5 गावों के लोगों ने तो 1200 हेक्टेयर वन भूमि 'भैरोंदेव डाकव' 'विहार चोरी'घोषित कर दी जिसके अपने ही नियम कानून हैं ,जो शिकार वर्जित करते है ,तथा बाहरी लोगों की घुसपैठ से यहाँ के वन्य जीवन को बचाते है।
आदिवासी(जनजाति) अपने क्षेत्र में पाये जाने वाले पेड़-पौधे तथा वन्य जीवों से भावनात्मक एवं आत्मीय लगाव होता है। और अपने परिवेश में पाये जाने वाले  संसाधनों के संरक्षण के प्रति ये अत्यंत सक्रिय तथा सचेत होते है।
जंगली पौधों के बीज आदि के अंकुरण के मौसम में वन क्षेत्रों में नहीं जाते हैं ,और पालतू पशुओं को भी जंगल में प्रवेश से रोकते है।
प्रजनन काल में मादा वन पशुओं का शिकार नहीं करते हैं।
वन संसाधनों का उपयोग चक्रीय पद्द्ति से करते है।
   प्रकार से जनजातिय क्षेत्रों के वन को स्वभाविक संरक्षण प्राप्त हो जाता है।
*चिपको आंदोलन(Chipko Movement)
उत्तर प्रदेश के टेहरी-गढ़वाल पर्वतीय जिले में सुन्दर लाल बहुगुणा के नेतृत्व में अनपढ़ जनजातियों द्वारा 1972 में यह आंदोलन प्रारम्भ हुआ था,इस आंदोलन में स्थानीय लोग ठेकेदारों की कुल्हाड़ी से हरे-भरे पौधों को काटते देख ,उसे बचाने के लिए अपने आगोश में पौधा को घेर कर इसकी रक्षा करते थे।
*वन्य जीवों के संरक्षण के लिए क़ानूनी प्रावधान
वन्य जीवों के संरक्षण के लिए नियमों तथा क़ानूनी प्रावधानों को दो वर्गों में बाँट सकते है।
1.राष्ट्रीय कानून(National Laws) :-भारत विश्व के उन देशों में से है जिसमें पर्यावरण तथा वन्य जीवन की रक्षा का प्रावधान सविंधान में किया गया है।
सविंधान की धारा 21 के अंतर्गत अनुच्छेद 47,48,तथा 51A वन्य जीवों तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के नियम है।
भारतीय वन्य जीव बोर्ड की स्थापना 1952 में की गयी थी।
वन्य जीव सुरक्षा एक्ट 1972,नियमावली 1973 एवं संशोधित एक्ट 1991 के अंतर्गत पक्षियों तथा जानवरों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया है।
जैव विविधता अधिनियम 2002 के अंतर्गत जैव विविधता के संरक्षण के लिए स्थानीय/प्रखंड/जिला/और राज्य स्तर पर कमिटियां गठित करने का प्रावधान किया गया है।
राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जानवर बाघ और राष्ट्रीय पंक्षी मयूर(मोर) घोषित किया गया है।
2.अंतर्राष्ट्रीय कानून(International Laws) :-वन्य जीवों के संरक्षण के लिए दो या दो से अधिक राष्ट्र समूहों के द्वारा नियम तथा क़ानूनी प्रावधान बनाए गए हैं।
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर 1968 में अफ़्रीकी कनवेंशन ,1971 वेटलैंड्स का कनवेंशन तथा विश्व प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण एवं रक्षा अधिनियम 1972 के अंतर्गत बनाये गए अंतर्राष्ट्रीय नियमों के द्वारा वन्य जीवों के संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं ,और इस पर सख्ती से अनुपालन करके वन्य जीवों की रक्षा की जा सकती है।
*वन्यजीव एवं जैव विविधता की उपयोगिता :-
*वन्य जीव(Wild Life) :-प्राकृतिक अधिवासीय वातावरण  विकसित होने वाले पौधों और जंतुओं को वन्य जीव कहते है।
वन्य जीव के दो भाग है।
(i)पादप (Flora)
(ii)जंतु (Fauna)

*पादप(Flora):-

हमारे देश में ,संसार में जितने भी प्रकार की जलवायु है वह सभी जलवायु यहाँ मिलती है ,यही कारण है की हमारे देश में अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती है।
इन्हे मोटे तौर पर आठ वनस्पति क्षेत्र में बाँट सकते हैं।
1.पश्चिमी हिमालय वानस्पतिक क्षेत्र :-इस क्षेत्र का विस्तार कश्मीर से कुमाऊँ तक है। यहाँ चीड़ ,देवदार और कोणधारी वृक्ष का फैलाव है ,ऊंचाई के साथ-साथ वृक्षों की प्रजातियों में भी परिवर्तन देखने को मिलता है ,अधिक ऊँचे क्षेत्रों में अल्पाईन वनों का विस्तार है।
2.पूर्वी हिमालय वनस्पतिक क्षेत्र :-इस क्षेत्र में ओक ,छोटी बेंत तथा फूलों वाले सदाबहार वृक्ष मिलते हैं।
3.असम वानस्पतिक क्षेत्र :-यह ब्रह्मपुत्र और सुरमघाटी के बीच का क्षेत्र है ,यहां मुख्य रूप से सदाबहार वन मिलते है ,सदाबहार वनों के बीच-बीच में घने बांसो एवं लम्बी घासों के झुरमुट मिलते हैं।
4.सिंधु मैदान वानस्पतिक क्षेत्र :-इस क्षेत्र में पंजाब,पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान को शामिल किया गया है। यहाँ बबूल ,नागफनी ,आक आदि के मुख्य पौधे हैं।
5.गंगा की मैदानी वनस्पतिक क्षेत्र :-अरावली से बंगाल और उड़ीसा के बीच के क्षेत्र इसके अंतर्गत रखा गया है। यह कृषि प्रधान क्षेत्र है।
6.दक्षिण का पठारी वनस्पतिक क्षेत्र :-इसमें पूरा दक्षिण का पठारी क्षेत्र सम्मिलित किया गया है। यहाँ पतझड़ वाले वृक्ष पाए जाते है।
7.मालाबार वनस्पतिक क्षेत्र :-इसके अंतर्गत पशिचमी तटीय क्षेत्र को रखा गया है। यहाँ पर गर्म मसाले ,सुपारी ,नारियल ,रबर के साथ-साथ काजू ,चाय एवं कॉफी के वृक्ष पाए  है।
8.अंडमान वनस्पतिक क्षेत्र :-यहाँ पर सदाबहार,अर्ध सदाबहार एवं समुद्रीतटीय जंगलों की प्रमुखता है।
भारतीय वनस्पतिक सर्वेक्षण(BSI) के अनुसार यहाँ 47000 पेड़-पौधों की प्रजातियां है जिसमे 15000 प्रजातियां वाहिनी वनस्पति के अंतर्गत आते है। इनमे 35% प्रजातियां देशी है ,जो विश्व में और कंही नहीं पायी जाती है।

*जंतु(Fauna):-

भारतीय प्राणी सर्वेक्षण,कोलकाता(ZSI) के सर्वेक्षण के अनुसार हमारे यहाँ 89451 जीव-जंतुओं की प्रजातियां पायी जाती है।
जिनको निम्नांकित वर्गों में रखा गया है।
प्रोटिस्टा(एक कोशिकीय जीव) - 2577 प्रजातियां
आर्थोपोडा(किट-इसमें सिर,वक्ष,उदर) - 68389 प्रजातियां
मोलस्का(कोमल शरीर) - 5000 प्रजातियां
अन्य अकशेरुकी(जिसमे मेरुदंड नहीं होता) - 8329 प्रजातियां
प्रोटोकॉर्डेटा(समुद्री जंतु) - 119 प्रजातियां
मछलियां - 2546 प्रजातियां
उभयचर - 209 प्रजातियां
सरीसृप - 456
पक्षी - 1232 प्रजातियां
स्तनपायी - 390 प्रजातियां
प्रथम शताब्दी में आयुर्वेद के जनक चरक(भारत) ने चरक संहिता में 200 प्रकार के पशुओं और 340 प्रकार के पौधों का उल्लेख किया है।
हमारा देश जैविक विविधता में समृद्ध देश है। सबसे समृद्ध जैव-विविधता वाला क्षेत्र पशिचमी घाट और उत्तरी पूर्वी भारत है।
यूनेस्को के सहयोग से भारत में 14 जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की स्थापना की गई है।
जैव विविधता हमारे लिए भोजन ,औषधियाँ ,भैषज्य दवाइयाँ ,रेशों ,रबर और लकड़ियां का साधन है।
जैव विविधता की मुख्य उपयोगिताएँ निम्नलिखित हैं।
(1)आधुनिक कृषि तीन प्रकार से जैव विविधता का उपयोग करता है।
i.नवीन फसल के साधन के रूप में।
ii. अच्छे प्रकार के नसल  के लिए सामग्री के रूप में।
iii.नये जैव विनाश,पीड़ानाशी के रूप में।
एशिया में धान की खेती का चार प्रमुख रोगों से संरक्षण एक अकेला जंगली भारती चाबल प्रजाति ऑर्जिया निवारा(Orzya nivara) से किया जाता है।
जैव विविधता का उपयोग बहुत सारे औषधीय उपयोग में होता है।
जैसे :-
1.मार्फिन का उपयोग दर्द निरोधक में और इसे पापावहर सोनिफेरम से प्राप्त होता है।
2.क्यूनाइन मलेरिया के लिए उपयोगी है ,यह चिनचोना लेड्जेनरियाना से प्राप्त होता है।
3.टेक्सोल कैंसर रोधी औषधि है जो एक प्रकार के सदाबहार वृक्षों के छाल टैक्सस बेक्केटा एवं टी ब्रवहीफोलिया से प्राप्त किया जाता है।
*कुछ महत्वपूर्ण बिंदुएँ :-
विश्व की  लाख कीट पतंगों की जातियों में से 60 हजार जातियां भारत में हैं।
41 सौ मछलियों की प्रजातियों में से भारत में 1693 प्रजातियां हैं।
विश्व की 9 हजार पक्षियों की जातियों में से लगभग 12 सौ भारत में पाई जाती है। इसी प्रकार 4 हजार स्तनपाई जीवों का 10% भारत में हैं।
पादप बहुल देशों में भारत का दसवां स्थान है।
चावल ,गन्ना ,जुट ,आम ,नींबू ,केला  ,ज्वार ,फसलों का उद्भ्व भारत में हुआ।
विश्व में सबसे अधिक जातियां कीड़े-मकोड़े और अतिसूक्ष्म परजीवों की है ,जिन्हे हम खुली आँखों से नहीं देख सकते है।
कम से कम 136 फसल प्रजातियां और 320 वन सम्बन्धी प्रजातियां मूलतः भारतीय है।
हमारे यहाँ बड़ी संख्या में घरेलु प्रजातियां हैं ,इसकी सबसे अच्छी उदाहरण चावल है ,जिसकी 50000 से 60000 किस्में भारत में पायी जाती है।

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