शक्ति (ऊर्जा) संसाधन
⇒शक्ति/ऊर्जा विकास की कुंजी है। शक्ति के साधनों का वास्तविक
विकास 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रान्ति के साथ शुरू हुआ। ऊर्जा के
स्रोत ही विकास एवं औधोगीकरण के आधार है।
➤कोयले का उपयोग कर वाष्प-शक्ति का विकास
इंग्लैंड में हुआ।
*वाणिज्यिक ऊर्जा स्रोत :-कोयला ,पेट्रोलियम ,प्राकृतिक गैस ,जल विधुत एवं आणविक ऊर्जा स्रोतों को वाणिज्यिक ऊर्जा स्रोत
कहा जाता है।
शक्ति संसाधन के प्रकार :-
⇒शक्ति संसाधन के वर्गीकरण के विविध आधार हो सकते है।
1.उपयोग स्तर के आधार पर शक्ति दो प्रकार है :-
(i)सतत्त शक्ति :-भूमिगत
ऊष्मा ,सौर किरणें ,पवन ,प्रवाहित जल आदि सतत्त शक्ति स्रोत है।
(ii)समापनीय शक्ति :-कोयला
,पेट्रोलियम ,प्राकृतिक गैस एवं विखंडनीय तत्व समापनीय शक्ति स्रोत है।
2.उपयोगिता के आधार पर ऊर्जा को दो भागों में विभक्त किया जाता
है।
(i)प्राथमिक ऊर्जा :-कोयला
,पेट्रोलियम ,प्राकृतिक गैस तथा रेडियोधर्मी खनिज आदि है।
(ii)गौण ऊर्जा :-विधुत
आदि।
3.स्रोत की स्थिति के आधार पर शक्ति संसाधन को दो भागों में
वर्गीकृत किया जाता है।
(i)क्षयशील शक्ति संसाधन :-कोयला ,प्राकृतिक गैस ,पेट्रोलियम तथा आणविक खनिज आदि।
(ii)अक्षयशील शक्ति संसाधन :-पवन ,सौर सहक्ति ,प्रवाही जल ,लहरें आदि।
4.सरंचनात्मक गुणों के आधार पर ऊर्जा के दो स्रोत है :-
(i)जैविक ऊर्जा :-मानव
एवं प्राणी शक्ति को जैविक शक्ति के अंतर्गत रखा जाता है।
(ii)अजैविक ऊर्जा :-जल
शक्ति ,पवन शक्ति ,सौर शक्ति तथा ईंधन शक्ति आदि को अजैविक ऊर्जा के अंतर्गत रखा
जाता है।
5.समय के आधार पर शक्ति संसाधन को दो रूप में वर्गीकृत किया जाता
है :-
(i)पारम्परिक शक्ति :-
कोयला
,पेट्र्रोलीयम तथा प्राकृतिक गैस पारम्परिक शक्ति के उदहारण है।
➤कोयला ,पेट्रोलियम ,प्राकृतिक गैस जैसे खनिज ईंधन जो जीवाश्म ईंधन के नाम से भी
जाने जाते है ,ये पारम्परिक शक्ति संसाधन है तथा ये समाप्य संसाधन है।
(ii)गैर पारम्परिक शक्ति :-सूर्य ,पवन ,ज्वार ,परमाणु ऊर्जा तथा गर्म झरने आदि गैर पारम्परिक शक्ति के उदहारण है।
कोयला
(Coal)
⇒कोयला शक्ति और ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत है।
➤2007-2008 में कोयले का कुल उत्पादन 456.373
मिलियन टन था।
⇒भूगर्भिक दृष्टि से भारत के समस्त कोयला भंडार को दो मुख्य भागों
में बांटा जा सकता है :-
1.गोंडवान समूह :-इस
समूह में भरता के 96 प्रतिशत कोयले का भंडार है। यहाँ के कोयले का निर्माण लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले हुआ
था।
⇒गोंडवान कोयला क्षेत्र मुख्यतः चार नदी -घाटियों में पाये जाते
है :-
(i)दामोदर घाटी
(ii)सोन घाटी
(iii)महानदी घाटी
(iv)वार्घा-गोदावरी घाटी
2.टर्शियरी समूह :-गोंडवान
समूह के बाद टर्शियरी समूह के कोयले का निर्माण हुआ।
➤यह 5.5
करोड़ वर्ष पुराना है।
➤टर्शियरी कोयला मुख्यतः असम ,अरुणाचल प्रदेश ,मेघालय और नागालैंड
में पाया जाता है।
*कोयले का वर्गीकरण
⇒कार्बन की मात्रा के आधार पर कोयला को चार वर्गों में रखा गया
है।
(i)ऐंथ्रासाइट (Anthracite):- यह सर्वोच्च कोटि का कोयला है ,जिसमे कार्बन की मात्रा 90%
से अधिक होती है। यह जलने पर धुआँ नहीं
देता तथा देर तक अत्यधिक ऊष्मा देता है।
➤इसे कोकिंग कोयला भी कहा गया है तथा ये
धातु गलाने में काम आता है।
(ii)बिटुमिनस(Bituminus):-यह 70 से 90 % कार्बन की मात्रा धारण किये हुए रहता है तथा इसे परिष्कृत कर
कोकिंग कोयला बनाया जा सकता है।
➤भारत का अधिकतर कोयला इसी श्रेणी का है।
(iii)लिग्नाइट(Lignite):-यह निम्न कोटि का कोयला माना जाता है। जिसमें कार्बन की मात्रा
30 से 70 %होता है। यह कम ऊष्मा तथा अधिक धुआँ देता है। इसे भूरा-कोयला
भी कहते है।
(iv)पीट(Peat):-इसमें कार्बन की मात्रा 30%
से भी कम पाया जाता है। यह पूर्व के
दलदली भागों में पाया जाता है।
*गोंडवान समूह का कोयला क्षेत्र :-
🌢झारखण्ड
कोयले के भंडार एवं उत्पादन की दृष्टि से देश में पहला स्थान है। यहाँ देश का 30%से भी अधिक कोयला का
सुरक्षित भण्डार है तथा उत्पादन 23% से अधिक है।
➤ बोकार,कर्णपुर ,रामगढ़ ,गिरिडीह ,झरिया प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है।
➤धातु उद्योग में उपयोग किया जाने वाला
कोयला इन्हीं दामोदर घाटी से ही प्राप्त किया जाता है।
➤लोहा-इस्पात कारखाने को अधिकतर कोकिंग
कोल भी इन्हीं क्षेत्रों से प्राप्त होता है।
🌢छत्तीसगढ़
सुरक्षित भंडार की दृष्टि से इस राज्य का स्थान तीसरा है लेकिन उत्पादन में यह
भारत का दूसरा बड़ा राज्य है। यहाँ देश का 15%सुरक्षित भंडार है ,लेकिन उत्पादन 16%
होता है।
➤उत्तरी छत्तीसगढ़ का मुख्य कोयला क्षेत्र
चिरिमिरी ,कुरसिया ,लखनपुर ,सोनहाट आदि है।
🌢उड़ीसा
में देश का एक चौथाई कोयले का भंडार है पर उत्पादन 14.6
प्रतिशत ही होता है। तालचर में कोयले का
विशाल भंडार है पर यह उच्च कोटि के न होने के कारण भाप एवं गैस बनाने के काम में
आता है।
◾महाराष्ट्र में भारत का मात्र 3 प्रतिशत कोयला सुरक्षित है पर उत्पादन
देश का 9 प्रतिशत से भी अधिक होता है।
➤यहाँ अधिकतर कोयला कांपटी ,चाँदा-वर्धा तथा बंदेर से प्राप्त होता
है।
◾मध्य प्रदेश में देश का मात्र 7 प्रतिशत कोयले का भंडार है ,क्योंकि अधिकांश कोयला क्षेत्र
छत्तीसगढ़ में चला गया है।
➤यहाँ प्रमुख कोयला उत्पादन सिंगरौली ,जोहिल्ला ,सोहागपुर तथा उमरिया में होता है।
◾पश्चिम बंगाल सुरक्षित भंडार की दृष्टि से देश का
चौथा एवं उत्पादन में सांतवा स्थान रखता है।
➤रानीगंज सबसे महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र
है,जिसका कुछ क्षेत्र झारखण्ड में है।
*टर्शियरी कोयला क्षेत्र :-
⇨टर्शियरी युग में बना कोयला नया एवं
घटिया किस्म का होता है। यह कोयला मेघालय में दरगिरि ,चेरापूंजी ,लांगरिन आदि क्षेत्रों से निकाला जाता
है।
*लिग्नाइट कोयला क्षेत्र :-
⇨यह एक निम्न कोटि का कोयला होता है।
इसमें नमी ज्यादा तथा कार्बन कम होता है अतः धुआँ अधिक देता है।
➤लिग्नाइट कोयले का भंडार मुख्य रूप से
तमिलनाडु के लिग्नाइट बेसिन में पाया जाता है। यहाँ देश का 94 प्रतिशत लिग्नाइट कोयले का सुरक्षित
भंडार है।
➤यहाँ नेवेली लिग्नाइट कार्पोरेशन
लिमिटेड कोयले का खनन करती है।
➤यह कोयला राजस्थान ,गुजरात एवं जम्मू एवं कश्मीर में पाया
जाता है।
⇨पेट्रोलियम शक्ति के समस्त साधनों में
सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं अति उपयोगी संसाधन है।
➤पेट्रोलियम शक्ति के साथ-साथ अनेक
उद्योगों का कच्चा माल भी है। इससे विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाये जाते है।
जैसे
:-डीजल ,किरोसिन ,पेट्रोल ,गैसोलीन ,साबुन ,स्नेहक ,प्लास्टिक ,कीटनाशक दवाएँ आदि।
➤भारत में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस
के कुल भंडार 17 अरब टन है।
➤भारत विश्व का मात्र 1 प्रतिशत पेट्रोलियम उत्पादन करता है।
➤भारत में पहली बार 1866 में ऊपरी असम घाटी तेल के कुँए खोदे
गए।
➤1890 में डिगबोई क्षेत्र में तेल मिला था।
➤1959 में खम्भात के तेल क्षेत्र की खोज हुई।
➤1975 में मुम्बई हाई में तेल का पता चल गया।
*तेल क्षेत्रों का वितरण :-
⇨भारत में मुख्यतः पाँच तेल उत्पादक
क्षेत्र है।
1.उत्तरी-पूर्वी प्रदेश :-यह देश का सबसे पुराना तेल उत्पादक
क्षेत्र है ,जहाँ 1866 ई० में तेल के लिए खुदाई शुरू की गई थी। ऊपरी असम घाटी ,अरुणाचल प्रदेश ,नागालैंड आदि विशाल तेल क्षेत्र इसके
अंतर्गत आते है। इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण उत्पादक डिगबोई,मोरान ,रुद्रसागर आदि है।
2.गुजरात क्षेत्र :-यह क्षेत्र खम्भात के बेसिन तथा गुजरात
के मैदान में विस्तृत है। यहाँ पहलीबार 1958
में तेल का पता चला था।
➤इसके प्रमुख उत्पादक अंकलेश्वर ,कलोल ,मेहसाना आदि है।
3. मुम्बई हाई क्षेत्र :-यह क्षेत्र मुम्बई तट से 176 किलोमीटर दूर उत्तर-पश्चिम दिशा में
अरब सागर में स्थित है। यहाँ 1975
में तेल खोजने का कार्य शुरू हुआ।
➤यहाँ 80 करोड़ टन तेल के भंडार का अनुमान है।
*सागर सम्राट :- यह समुद्र में सागर सम्राट नामक मंच बनाया गया है जो एक जलयान है और
पानी के भीतर तेल के कुऍं खोदने का कार्य करता है।
4.पूर्वी तट प्रदेश :-यह कृष्ण-गोदावरी और कावेरी नदियों के
बेसिन तथा मुहाने के समुद्री क्षेत्र में फैला हुआ है। नरिमनम और कोविल्प्तल
कावेरी प्रदेश के मुख्य तेल क्षेत्र है।
5. बाड़मेर बेसिन :-इस बेसिन के मंगला तेल क्षेत्र से
सितम्बर 2009 से उत्पादन शुरू हो गया है।यहाँ
प्रतिदिन 56000 बैरल तेल का उत्पादन हो रहा है।
⇨कुओं से निकाला गया कच्चा तेल
अपरिष्कृत एवं अशुद्ध होता है.जिसे उपयोग के पूर्व उसे तेल शोधक कारखानों में
परिष्कृत किया जाना आवश्यक होता है। इसके बाद ही डीजल ,पेट्रोल ,किरासन तेल आदि प्राप्त होते है।
➤1901ई० में भारत का प्रथम तेल शोधक कारखाना असम के डिगबोई में स्थापित
हुआ था।
➤1954ई० में दूसरी परिष्करणशाला मुम्बई में स्थापित किया गया।
➤आज देश में 18 तेल परिष्करण केन्द्र कार्य कर रही
है।
प्राकृतिक गैस
⇨प्राकृतिक गैस हमारे वर्तमान जीवन में
बड़ी तेजी से एक महत्वपूर्ण ईंधन बनता जा रहा है। इसका उपयोग विभिन्न उद्योगों में
मशीन को चलाने में ,विधुत उत्पादन में ,खाना पकाने में तथा मोटर गाड़ियाँ चलाने
में किया जा रहा है।
➤भारत में एक अनुमान के अनुसार
प्राकृतिक गैस की संचित राशि 700
अरब घन मीटर है।
➤पेट्रोलियम उत्पादक क्षेत्र से ही
प्राकृतिक गैस भी मिलते है।
➤1984 में प्राकृतिक गैस प्राधिकरण की स्थापना देश के प्राकृतिक गैसों के
परिवहन ,वितरण एवं विपणन हेतु किया गया।
विधुत शक्ति
⇨विधुत शक्ति ऊर्जा का एक महत्वपूर्ण
स्रोत वर्तमान विश्व में विधुत के प्रति-व्यक्ति उपभोग को विकास का एक सूचकांक
माना जाता है।
➤जल स्रोत से उत्पन्न शक्ति को जल विधुत
कहते है।
➤जब विधुत के उत्पादन में कोयला ,पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से
प्राप्त ऊष्मा का उपयोग किया जाता है तो उसे ताप विधुत कहते है।
➤विधुत का उत्पादन आण्विक खनिजों के
विखंडन से भी किया जाता है,जिसे परमाणु विधुत कहा जाता है।
⇨ जल का प्रयोग शक्ति संसाधन के रूप में
किया जाता रहा है। प्रारम्भ में जल से ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया पवन
चक्रियों द्वारा की जाती थी।
➤जल एक अक्षयशील एवं नवीकरणीय संसाधन है
जिससे उत्पन्न शक्ति प्रदुषण मुक्त होती है।
➤भारत में 1987ई० में दार्जलिंग में प्रथम जल विधुत
सयंत्र की स्थापना हुई थी।
➤1930 तक उत्तर प्रदेश ,हिमाचल
प्रदेश ,कर्नाटक आदि राज्यों में कई जल विधुत
संयंत्र स्थापित हो चुके थे।
➤1947 तक भारत में 508
मेगावाट बिजली उत्पादन की जाने लगी।
*वितरण एवं मुख्य जल-विधुत परियोजनाएँ
:-
*बहुधंधी ,बहुमुखी या बहुउद्देशीय परियोजन :-नदियों पर बराज बनाकर ऐसा उपाय करना
जिससे सिंचाई के साथ बिजली उत्पन्न करना ,बाढ़
की रोकथाम करना ,मिट्टी का कटाव रोकना,मछली पालन ,पर्यटन आदि अनेक लाभ एक ही समय साथ-साथ
लिए जा सके तो ऐसी परियोजना को बहुधंधी ,बहुमुखी
या बहुउद्देशीय परियोजन कहते है।
1. भाखड़ा-नांगल परियोजना :-सतलज नदी पर हिमालय क्षेत्र में विश्व
के सर्वोच्य बांधो में एक बाँध की ऊंचाई 225
मीटर है। यह भारत की सबसे बड़ी परियोजना है,जहाँ
चार शक्ति-गृह बनाये गए है। जिसमे एक भाखड़ा में,दो गंगूवाल में और एक कोटला में स्थापित होकर 7 लाख किलोवाट विधुत उत्पादन करता है।
2.दमोदरघाटी परियोजना :-यह परियोजना दामोदर नदी के भयंकर बाढ़
से झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को बचाने के साथ-साथ तिलैया ,मैथन ,कोनार ,और पंचेत पहाड़ी में बांध बनाकर 1300 मेगावाट जल विधुत उत्पन्न करने में
सहायक है।
इसका
लाभ बिहार ,झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल को प्राप्त
है।
➤इस परियोजना के निगम द्वारा ताप विधुत
का भी उत्पादन किया जाता है।
3.कोशी परियोजना :-उत्तर बिहार का अभिशाप कोशी नदी पर
हनुमान नगर(नेपाल)में बांध बनाकर 20000
किलोवाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है,जिसकी आधी बिजली नेपाल को तथा शेष
बिहार को प्राप्त होती है।
4.रिहन्द परियोजना :-सोन की सहायक नदी रिहन्द पर उत्तर
प्रदेश में 934 मीटर लम्बा बाँध और कृत्रिम झील 'गोविन्द बल्लभ पंत सागर' का निर्माण कर बिजली उत्पादित की जाती
है। इस योजना के अंतर्गत 30 लाख किलोवाट विधुत उत्पन्न करने की
क्षमता है।
5.हीराकुंड परियोजना :-महानदी पर उड़ीशा में विश्व का सबसे
लम्बा बाँध (4801 मीटर)बनाकर 2.7 लाख किलोवाट बिजली उत्पादन किया जाता
है।
6.चंबल घाटी परियोजना :-चंबल नदी पर राजस्थान में तीन बाँध
गाँधी सागर ,राणाप्रताप सागर और कोटा में स्थापित
कर तीन शक्ति गृहों की स्थापना कर 2
लाख मेगावाट बिजली उत्पादन किया जा रहा है।
7.तुंगभद्रा परियोजना :-यह कृष्णा नदी की सहायक नदी तुंगभद्रा
पर कर्नाटक में अवस्थित दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी-घाटी परियोजना है जो कर्नाटक
एवं आंध्र प्रदेश के सहयोग से तैयार हुआ
है। इसकी बिजली उत्पादन क्षमता 1
लाख किलोवाट है।
8.शारवती नदी परियोजना :-कर्नाटक में पश्चिम घाट की शारवती नदी
पर जोग प्रपात के पास 2160 मीटर लम्बा एवं 62 मीटर ऊँचा बाँध बनाकर बिजली उत्पन्न
किया जाता है।
ताप शक्ति
⇒ताप शक्ति सयंत्रों में तापीय विधुत
उत्पादन करने के लिए कोयला ,पेट्रोलियम
,एवं प्राकृतिक गैस का उपयोग होता है।
ये जीवाश्म ईंधन भी कहे जाते है।
➤राष्ट्रीय ताप विधुत निगम (NTPC) द्वारा देश का अधिकतर ताप विधुत /शक्ति
उत्पादन का कार्य होता है।
परमाणु शक्ति
⇒जब उच्च अणुभार वाले परमाणु विखंडित
होते है तो ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।
➤इल्मेनाइट ,वैनेडियम ,एंटिमनी ,ग्रेफाइट ,यूरेनियम ,मोनाजाइट आदि आण्विक खनिज है।
➤भारत में मोनाजाइट केरल राज्य में
प्रचुरता से पाया जाता है।
➤यूरेनियम परमाणु ऊर्जा का कच्चा माल है
जो विभिन्न प्रकार की प्राचीन शैलों से प्राप्त किया जाता है।
➤भारत में यूरेनियम का विशाल भंडार
झारखण्ड का जादूगोड़ा में है,जहाँ
यह 97 किलो मीटर लम्बी पट्टी में फैला है।
➤भारत में 1955 में प्रथम आण्विक रियेक्टर मुम्बई के
निकट तारापुर में स्थापित किया गया था,जिसका
मुख्य उद्देश्य उद्योग एवं कृषि को बिजली प्रदान करना था।
➠देश में अभी तक छः परमाणु विधुतगृह
स्थापित है।
1.तारापुर परमाणु विधुत गृह :-यह एशिया का सबसे बड़ा परमाणु विधुत गृह
है। यहाँ जल उबालने वाली दो परमाणु भट्टियाँ है ,जिसमें प्रत्येक की उत्पादन क्षमता 200 मेगावाट से अधिक है।
2.राणाप्रताप सागर परमाणु विधुत गृह :-यह राजस्थान के कोटा में स्थापित है।
यह चंबल नदी के किनारे है जिससे जल प्राप्त होता है। यह बिजली घर कनाडा के सहयोग
से बना है। इसका उत्पादन क्षमता 100
मेगावाट है।
3.कलपक्कम परमाणु विधुत गृह :-यह तमिलनाडु में स्थित परमाणु गृह ,स्वदेशी प्रयास से बना है। यहाँ 335 मेगावाट की दो रिएक्टर है।
4.नरौरा परमाणु विधुत गृह :-यह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के पास
स्थित है। यहाँ भी 235 मेगावाट के दो रिएक्टर है।
5.ककरापारा परमाणु विधुत गृह :-यह गुजरात राज्य में समुद्र के किनारे
स्थित इस परमाणु विधुत गृह में 1992 से
विधुत उत्पादन प्रारंभ हुआ है।
6.कैगा परमाणु विधुत गृह :-यह कर्नाटक राज्य के जगवार जिला में
स्थित है।
*गैर-पारम्परिक शक्ति के स्रोत
⇒हमलोग अधिक दिनों तक पारम्परिक शक्ति
के साधनो पर निर्भर नहीं रह सकते क्योंकि ये समाप्य संसाधन है।
➤ऊर्जा के गैर-पारम्परिक स्रोतों में
बायो गैस ,सौर ऊर्जा ,पवन ऊर्जा ,ज्वारीय एवं तरंग ऊर्जा ,भूतापीय ऊर्जा एवं जैव ऊर्जा
महत्वपूर्ण है।
➤गैर-पारम्परिक ऊर्जा के स्रोत प्रदूषण
मुक्त होते है।
*सौर ऊर्जा :-जब फोटोवोल्टाइक सेलों में विपाशित
सूर्य की किरणों को ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है ,तो सौर ऊर्जा का उत्पादन होता है।
➤यह कूलर्स ,प्रकाश आदि उपकरणों में अधिक उपयोग की
जाती है।
➤भारत के पश्चिमी भागों-गुजरात ,राजस्थान में सौर की अधिक संभावनाएं
है।
*पवन ऊर्जा :-पवन ऊर्जा पवन चक्कियों की सहायता से
प्राप्त की जाती है। पवन चक्की पवन की गति से चलती है और टरबाइन को चलाती है। इससे
गति ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
➤भारत विश्व का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा
उत्पादक देश है।
➤पवन ऊर्जा के लिए तमिलनाडु ,राजस्थान ,गुजरात ,महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विधमान है।
➤गुजरात के कच्छ में लाम्बा का पवन
ऊर्जा संयंत्र एशिया का सबसे बड़ा संयंत्र है।
➤दूसरा बड़ा संयंत्र तमिलनाडु के
तूतीकोरिन में स्थित है।
*ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा :-समुद्री ज्वार तथा तरंग में जल गतिशील
रहता है। अतः इसमें अपार ऊर्जा रहती है।
➤खम्भात की खाड़ी सबसे अनुकूल है जहाँ पर
7000 मेगावाट ऊर्जा प्राप्त किया जा सकता
है।
*भूतापीय ऊर्जा :-यह ऊर्जा पृथ्वी के उच्च ताप से
प्राप्त किया जाता है। जब भूगर्भ से मैग्मा निकलता है तो अपार ऊर्जा निमुर्क्त
होता है।
गीजर कूपों से निकलने वाले गर्म जल तथा
गर्म झरनों से भी शक्ति प्राप्त किया जा सकता है।
*बायो गैस एवं जैव ऊर्जा :-ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि अपशिष्ट ,पशुओं और मानव जनित अपशिष्ट के उपयोग
से घरेलु उपयोग हेतु बायो गैस उत्पन्न की जाती है।
➤पशुओं के गोबर से गैस तैयार करने वाले
संयंत्र को भारत में गोबर गैस प्लांट के नाम से जाना जाता है।
➤इससे किसानों को को ऊर्जा तथा उवर्रक
की प्राप्ति होती है।
➤जैविक पदार्थों से प्राप्त होने वाली
ऊर्जा को जैविक ऊर्जा कहते है।
*शक्ति संसाधनों का संरक्षण
⇨ऊर्जा संकट एक विश्व-व्यापी समस्या का
रूप ले चूका है ,इस समस्या के समाधान के लिए अनेक
प्रयास किये जा रहे है।
1.ऊर्जा के प्रयोग में मितव्ययीता
:-ऊर्जा संकट से बचने के लिए प्रथमतः ऊर्जा के उपयोग में मितव्ययीताबरती जाय। इसके
लिए तकनिकी विकास आवश्यक है।
जैसे
:-अनावश्यक बिजली का उपयोग रोक कर
2.ऊर्जा के नवीन क्षेत्रों की खोज
3.ऊर्जा के नवीन वैकल्पिक साधनों का
उपयोग
4.अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
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