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Ex:-4 हमारी वित्तीय संस्थाएँ

हमारी वित्तीय संस्थाएँ 

⇒हमारे रोजमर्रा के जीवन में जो साख अथवा ऋण की आवश्यकता होती है ,उसकी पूर्ति राज्य के वित्तीय संस्थानों के द्वारा संपन्न होती है। 
➤वित्तीय संस्थाएँ या तो सरकार द्वारा स्थापित एवं संचालित होती है अथवा लोगों के सहयोग एवं सहभागिता के माध्यम से भी स्थापित एवं संचालित होती है। 
➤बिहार में बिस्कोमान(BISCOMAUN) जैसी सहकारिता के संदर्भ में ऐसी संस्था है जो खासकर कृषि क्षेत्र में साख या ऋण की उपलब्धि कराती है।

*वित्तीय संस्थाएँ(Financial Institutions) 
:-वित्तीय संस्थाएँ मौद्रिक क्षेत्र में देश अथवा राज्य की ऐसी संस्थाओं को कहते है ,जो लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु साख एवं मुद्रा संबंधी कार्यो का संपादन करती है। 
 या, हमारे देश की वे संस्थाएँ जो आर्थिक विकास के लिए उधम एवं व्यवसाय की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ऐसी संस्थाओं को वित्तीय संस्थाएँ कहते है। 
➤ये संस्थाएँ समाज के आर्थिक विकास के लिए उनकी आवश्यकता के अनुरूप अल्पकालीन ,मध्यकालीन ,और दीर्घकालीन साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान करती है। 
➤वित्तीय संस्थाएँ राज्य संपोषित होती है और देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ,के दिशा निर्देश के अंतर्गत एक निश्चित मापदंड पर काम करती है। 
*सरकारी वित्तीय संस्थाएँ (Government Financial Institutions)
:-सरकार द्वारा स्थापित वित्तीय संस्थाएँ को सरकारी वित्तीय संस्थाएँ कहते है। 
जैसे :-स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ,पंजाब नेशनल बैंक ,इलाहाबाद बैंक इत्यादि 
*अर्ध-सरकारी वित्तीय संस्थाएँ (Semi-Government Financial Institutions)
:-ऐसी वित्तीय संस्थाएँ जो सरकार के केंद्रीय बैंक के निर्देशन में उनके द्वारा स्थापित मापदंडो पर समाज के लोगों की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती है,उसे अर्ध-सरकारी वित्तीय संस्थाएँ कहते है। 
जैसे :-क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक आदि 
*सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएँ (Micro Financial Institutions)
:-छोटे पैमाने पर गरीब जरुरतमंद लोगों को स्वयं सेवी संस्था के माध्यम से कम ब्याज पर साख अथवा ऋण की व्यवस्था करने वाली संस्था को सूक्ष्म वित्तीय संस्थाएँ कहते है। 
➠ वित्तीय संस्थाएँ मुख्यतः दो प्रकार की होती है। 
(1)राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ (National Financial Institutions)
(2)राज्य स्तरीय  वित्तीय संस्थाएँ (State -level Financial Institutions)

राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ (National Financial Institutions)

⇨ऐसी वित्तीय संस्थाएँ जो देश के लिए वित्तीय और साख नीतियों का निर्धारण एवं निर्देशन करती है तथा राष्ट्रीय स्तर पर वित्त प्रबंधन के कार्यो का संपादन करती है उसे राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ कहते है। 
➠इनके दो महत्वपूर्ण अंग होते है :-
(i)भारतीय मुद्रा बाजार (Indian Money Market) 
(ii)भारतीय पूँजी बाजार (Indian Capital Market)

(i)भारतीय मुद्रा बाजार (Indian Money Market) 
:-ऐसे मौद्रिक बाजार जहाँ उद्योग एवं व्यवसाय के क्षेत्र के लिए अल्पकालीन एवं मध्यकालीन वित्तीय व्यवस्था एवं प्रबंधन किया है उसे भारतीय मुद्रा बाजार कहते है। 
➤भारतीय मुद्रा बाजार को संगठित और असंगठित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। 
संगठित क्षेत्र :-वाणिज्य बैंक ,निजी क्षेत्र ,सार्वजानिक क्षेत्र एवं विदेशी बैंक शामिल की जाती है। 
असंगठित क्षेत्र :-देशी बैंकर जिनमें गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनिया शामिल की जाती है। 
➠संगठित बैंकिंग प्रणाली निम्नलिखित तीन प्रकार की बैंकिंग व्यवस्था के रूप में कार्यरत है :-
(1)केंद्रीय बैंक(Central Bank) :-भारत में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया देश की केंद्रीय बैंक है।यह देश  शीर्ष बैंकिंग संस्था के रूप में बैंकिंग ,वित्तीय ,और आर्थिक क्रियाओं का दिशा-निर्देश एवं संचालन में सहयोग देती है। 
(2)वाणिज्य बैंक(Commercial Bank) :-देश में अनेक वाणिज्य बैंको के द्वारा बैंकिंग एवं वित्तीय क्रियाओं का संचालन होता है। अधिकतर वाणिज्य बैंक सरकार के सीधे नियंत्रण में काम करती है,जिसे राष्ट्रीयकृत वाणिज्य बैंक कहते है। 
➤जिस बैंक के  नाम के अंत में Ltd जुड़ा होता है ,वे निजी क्षेत्र की बैंक होती है। 
(3)सहकारी बैंक(Co-Operative Bank) :-आपसी सहयोग और सदभावना के आधार पर जो वित्तीय संस्थाएँ कार्यरत है उसे सहकारी बैंक कहते है। 
➤ये बैंक राज्य सरकारों के द्वारा संचालित होती है। 

(ii)भारतीय पूँजी बाजार (Indian Capital Market)
:-भारतीय पूँजी बाजार मुख्यतः दीर्घकालीन पूँजी उपलब्ध कराती है। दीर्घकालीन पूँजी की माँग बड़े-बड़े उद्योग एवं सार्वजनिक निर्माण कार्यो के लिए होता है।
➥भारतीय पूंजी बाजार इन्हीं चार वित्तीय संस्थानों पर आधारित है ,जिसके चलते सार्वजनिक विकास जैसे -अस्पताल ,विधुत उत्पादन ,सड़क ,रेलवे ,आदि उद्योग संचालित किये जाते है।
➤वित्तीय संस्थाएँ किसी भी देश का मेरुदंड(Back Bone) मन जाता है। 
➤भारत की वित्तीय राजधानी (Financial Capital) मुंबई है। 
➤मुंबई के जिस जगह पर पूँजी बाजार का प्रधान क्षेत्र है उसे दलाल स्ट्रीट कहा जाता है। 

राज्य स्तरीय  वित्तीय संस्थाएँ (State -level Financial Institutions)

*बिहार के संदर्भ में 
⇒बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है।जहाँ 87% जनसँख्या गाँवों में निवास करती है तथा करीब 75 % लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि एवं उससे संबंधित लघु-कुटीर उद्योग से जुड़े हुए है। 
⇒ यहाँ के अधिकांश किसान छोटे या सीमांत किसान की श्रेणी में आते है। 
➠राज्य में मुख्यतः दो प्रकार की वित्तीय संस्थाएँ कार्यरत है :-
(1)गैर-संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ
(2)संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ
गैर-संस्थागत वित्तीय संस्थाएँ(Non-Institutional Financial Institutions)
➨महाजन आज भी गाँवों में ऋण प्रदान करने वाला लोकप्रिय साधन माना जाता है क्योकि महाजनों से कर्ज लेना सरल एवं सहज है। 
➨महाजन व सेठ-साहुकार ग्रामीणों को उत्पादन एवं उपयोग संबंधी सभी कार्यो के लिए ऋण उपलब्ध कराते है,और व्यक्ति से अमानत स्वरुप उनके जमीन ,जेवर तथा अन्य कीमती सामानो को गिरवी रखते है।
➨अमानत के बदले ऋण लिए गए ब्याज की दर सरकारी ब्याज दर से काफी ज्यादा होती है।
➨ग्रामीणों को सहज ऋण सुविधा गावँ के अन्य किसानों ,रिस्तेदारों इत्यादि से ब्याज अथवा बिना ब्याज का भी प्राप्त होता है।

संस्थागत वित्तीय स्रोत(Sources of Institutional Financ)
1)सहकारी बैंक(Co-Operative Bank):-हमारे राज्य में सहकारी बैंक द्वारा उपलब्ध सहकारी साख व्यवस्था त्रिस्तरीय है -
(i)गाँवो में प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ
(ii)जिला स्तर पर केन्द्रीय सहकारी बैंक
(iii)राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक
➤बिहार राज्य में 25 केन्द्रीय सहकारी बैंक जिला स्तर पर तथा राज्य स्तर पर एक बिहार राज्य सहकारी बैंक कार्यरत है।
2)प्राथमिक सहकारी समितियाँ (Primary Co-Operative Societies) :-इसकी स्थापना कृषि क्षेत्र की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए की गयी है। एक गॉंव अथवा क्षेत्र के कोई भी कम से कम दस व्यक्ति मिलकर एक प्राथमिक साख समिति का निर्माण कर सकते है,ये समितियाँ प्राथमिक कृषि साख समितियाँ भी कहलाती है।
➤यह उत्पादक कार्यो के लिए अल्पकालीन (एक वर्ष)ऋण देती है,लेकिन विशेष परिस्थिति में इनकी अवधि तीन वर्ष तक के लिए बढ़ाई जा सकती है।
➤दसवीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार बिहार में 6842 प्राथमिक सहकारी कृषि साख समितियाँ कार्यरत है।
3)भूमि विकास बैंक(Land Development Bank) :-राज्य में किसानों को दीर्घकालीन ऋण प्रदान करने के लिए भूमि बंधक बैंक खोला गया था ,जिसे अब भूमि विकास बैंक कहा जाता है।
➤यह किसानों के भूमि को बंधक रखकर कृषि में स्थायी सुधार एवं विकास के लिए दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है।
➤प्राथमिक इकाई को सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक कहते है।
4)व्यावसायिक बैंक(Commercial Bank) :-देश में बैंको पर सामाजिक नियंत्रण की निति तथा राष्ट्रीयकरण के बाद व्यावसायिक बैंक अधिक मात्रा में किसानो को ऋण प्रदान करने लगे।
➤व्यावसायिक बैंक का राष्ट्रीयकरण 1969 में हुआ था।
5)क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक(Regional Rural Bank) :-सीमांत एवं छोटे किसानो ,कारीगरों तथा अन्य कमजोर वर्ग के जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक देश में 20 अक्टूबर 1975 ई० को स्थापित किया गया।
➤भारत में अभी 196 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक कार्यरत है।
NABARD :-राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक
6)नाबार्ड(NABARD) :-NABARD देश में कृषि तथा ग्रामीण विकास के लिए पुनर्वित(Refinancing)प्रदान करने वाली शिखर की संस्था है।
➤यह कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए सरकारी संस्थाओं ,व्यावसायिक बैंको तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को वित्त की सुविधा प्रदान करता है ,जो पुनः किसानों को यह सुविधा प्रदान करते है।
*व्यावसायिक बैंक का कार्य (Function Of Commercial Bank)
⇒हमारे देश में व्यावसायिक बैंक की प्रधानता है ,और ये अर्थव्यवस्था के बहुत महत्वपूर्ण अंग है।
(1)जमा राशि को स्वीकार करना(Accepting Deposits)
(2)ऋण प्रदान करना(Providing Loans)
(3)सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य(General Utility Functions)
(4)एजेंसी संबंधी कार्य(Agency Functions)

(1)जमा राशि को स्वीकार करना(Accepting Deposits):-व्यावसायिक बैंको का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य अपने ग्राहकों से जमा के रूप में मुद्रा प्राप्त करना है। 
⇒व्यावसायिक बैंक प्रायः चार प्रकार स जमा राशि स्वीकार करते है :-
(i)स्थायी जमा(Fixed Deposits):-स्थायी जमा खाते में रुपया एक निश्चित अवधि जैसे एक वर्ष या इससे अधिक के लिए भी जमा किया जाता है,लेकिन निश्चित अवधि के अंदर साधरणतया यह रकम नहीं निकली जा सकती है।
    इस प्रकार के जमा को सावधि जमा(Time Deposits)भी कहा जाता है।
(ii)चालू जमा(Current Deposits):-चालू जमा खाते में रुपया जमा करने वाले अपनी इच्छानुसार रुपया जमा करता है अथवा निकाल सकता है।
     इसे माँग जमा(Demand Deposits) भी कहते है।
(iii)संचयी जमा(Saving Deposit) :-इस प्रकार के खाते में रुपया जमा करनेवाला जब चाहे रुपया जमा कर सकता है ,लेकिन रुपया निकालने का अधिकार सिमित रहता है ,वह भी एक निश्चित रकम से अधिक नहीं।
(iv)आवर्ती जमा(Recurring Deposits) :-इस प्रकार के खाते में व्यवसायिक बैंक साधारणतः अपने ग्राहकों से प्रतिमाह एक निश्चित रकम जमा के रूप में एक निश्चित अवधि जैसे 60 माह या 72 माह के लिए ग्रहण करता है और इसके बाद एक निश्चित रकम भी देता है।

(2)ऋण प्रदान करना(Providing Loans) :-व्यावसायिक बैंक का दूसरा मुख्य कार्य लोगों को ऋण प्रदान करना है।
⇒व्यावसायिक बैंक निम्न प्रकार से ऋण प्रदान करते है।
(i)अभियाचित एवं अल्पकालीन ऋण(Loans at call and short notice) :-इस प्रकार का ऋण अति अल्पकाल यानि एक दिन से लेकर एक सप्ताह तक के लिए या माँगने पर वापस करने के लिए दिया जाता है।
(ii)नकद साख(Cash credit) :-बैंक अपने ग्राहकों को ऋण पत्र ,व्यापारिक माल तथा अन्य स्वीकृत प्रतिभूतियों के आधार पर ऋण देते है।
(iii)अधिविकर्ष(Overdraft) :-जब कभी भी कोई व्यावसायिक बैंक अपने ग्राहकों को उसके खाते में जमा रकम से अधिक रकम निकालने की सुविधा देता है तो उसे अधिविकर्ष की सुविधा कहते है।
(iv)विनिमय बिलों को भुनाना(Discounting of Bill of Exchange) :-व्यावसायिक बैंक विनिमय बिलों को भुनाकर भी ग्राहकों को ऋण प्रदान करता है।
      इस प्रकार के ऋण में बैंक बिलों में से कुछ कटौती करके बाकी राशि का भुगतान ऋणी को कर देता है।
(v)ऋण अथवा अग्रिम(Loans and Advances) :-जब ऋण एक पूर्व निश्चित अवधि के लिए दिया जाता है तो उसे ऋण अथवा अग्रिम कहते है।

(3)सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य(General Utility Functions) :-इसके अतिरिक्त व्यवसायिक बैंक अन्य बहुत से कार्यो को भी संपन्न करते है जिन्हें सामान्य उपयोगिता संबंधी कार्य कहा जाता है।
जैसे :-
(i)यात्री चेक एवं साख प्रमाण पत्र जारी करना(Traveller's Cheque and to issue letters of credit)
:-ये अपने ग्राहकों के लिए साख पत्र एवं यात्री चेक भी जारी करते है ,जिसकी सहायता से व्यापारी विदेशों से भी सुगमतापूर्वक माल उधार खरीदते है।
(ii)लॉकर की सुविधा(Locker Facilities)
:-बैंक अपने ग्राहकों को लॉकर्स की सुविधा भी प्रदान करता है ,जिनमें लोग अपने सोने -चाँदी के जेवर तथा अन्य आवश्यक कागज पत्र सुरक्षित रख सकते है।
(iii)ATM एवं क्रेडिट कार्ड सुविधा(ATM and Credit Card Facilities)
 :-बैंक अपने खाता धारकों को 24 घंटे धन निकालने की सुविधा के रूप में ATM सेवा दे रहे है।
(iv)व्यापारिक सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रीकरण(Collecting Business Informations and Statistics)
:-बैंक आर्थिक स्थिति से परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों पर सलाह देते है।
(5)एजेंसी संबंधी कार्य(Agency Functions) :-वर्त्तमान समय में व्यावसायिक बैंक ग्राहकों की एजेंसी के रूप में सेवा करते है।

*सहकारिता और राज्य के विकास में भूमिका
*सहकारिता(Co-operation)
सहकारिता का अर्थ  :- एक साथ मिल -जुलकर कार्य करना
⇒सहकारिता वह संगठन है जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति स्वेच्छापूर्वक मिल -जुलकर समान स्तर पर आर्थिक हितों की वृद्धि करते है।
              या, सहकारिता उस आर्थिक व्यवस्था को कहते है जिसमें मनुष्य किसी आर्थिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल -जुलकर कार्य करते है।
             विश्व में निर्बल एवं निर्धन वर्ग के उत्थान के लिए सहकारिता का प्रचार तथा प्रसार प्रारंभ हुआ।
*मूलभूत-तत्व
⇒इसके मुख्यतः तीन आधारभूत सिद्धांत है।
1.यहाँ संगठन की सदस्यता स्वैच्छिक होती है।
2.इसका प्रबंध व संचालन जनतंत्रात्मक आधार पर होता है।
3.इसके आर्थिक उदेश्यों में नैतिक और सामाजिक तत्व भी शामिल रहते है।
*भारत में सहकारिता का विकास
⇒किसानों को सस्ती दर पर ऋण उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सकारी समितियों की स्थापना पर जोर दिया जाने लगा ,इसके लिए सर्वप्रथम 1904 ई० में "सहकारिता साख समिति विधान "पारित हुआ। जिसके अनुसार गाँव या नगर में कोई भी दस व्यक्ति मिलकर सहकारी साख समिति की स्थापना कर सकते है।
⇒सहकारी बैंक हमारे देश में तीन स्तर पर काम करते है।
(i)प्राथमिक सहकारी समितियाँ
(ii)राज्य सहकारी बैंक
(iii)केन्द्रीय सहकारी बैंक
➤इसकी प्रगति की समीक्षा एवं इसके भावी विकास की रुपरेखा निर्धारित करने के उद्देश्य से 1914 ई० में मैक्लेगन समिति नियुक्त की गई।
➤1919 ई०  राजनितिक सुधारों के अनुसार सहकारिता प्रांतीय सरकारों का हस्तांतरित विषय बन गई।
➤1935 ई० में रिजर्व बैंक ऑफ़ इण्डिया की स्थापना हुई।
*स्वयं-सहायता समूह(Self-Help Group)
⇒स्वयं-सहायता समूहवास्तव में ग्रामीण क्षेत्र में 15 -20 व्यक्तियों(महिलाओं) का एक अनौपचारिक समूह होता है जो अपनी बचत तथा बैंकों से लघु ऋण लेकर अपने सदस्यों के पारिवारिक जरूरतों को पूरा करते है।
*सूक्ष्मवित्त योजना :-सूक्ष्मवित्त योजना के द्वारा गाँव ,कस्बा और जिला में गरीब परिवारों को स्वयं सहयता समूह से जोड़कर ऋण मुहैया कराया जाता है। इससे छोटे पैमाने पर साख अथवा ऋण की सुविधा प्रदान होती है।

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