रोजगार एवं सेवाएँ
⇒सेवा क्षेत्र में रोजगार का महत्व काफी अधिक है। विश्व के प्रत्येक देश के सरकार का प्रथम प्रयास यह होता है है की वहाँ के उपलब्ध मानव संसाधन को उनकी दक्षता के आधार पर काम उपलब्ध कराया जा सके।
*बेरोजगार :- ऐसे लोग जो काम करने के लायक होते है और जिन्हे उचित पारिश्रमिक पर काम नहीं मिलता है ,उन्हें बेरोजगार कहा जाता है।
*रोजगार एवं सेवाएँ
:- "रोजगार एवं सेवाएँ " का अभिप्राय यहाँ पर इन बातों से है जब व्यक्ति अपने परिश्रम एवं शिक्षा के आधार पर जीवकोपार्जन के लिए धन एकत्रित करता है।
रोजगार एवं सेवाएँ एक दूसरे के पूरक है।
आर्थिक विकास का क्षेत्र
:-रोजगार एवं सेवाएँ आर्थिक क्रियाओं के विकास और विस्तार से उपलब्ध होती है।
⇒आर्थिक विकास के मुख्य रूप से तीन क्षेत्र है :-
(i)कृषि क्षेत्र(Agriculture Sector) :-भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि क्षेत्र पर कुल जनसंख्या का लगभग 67 % बोझ है।
➤कृषि क्षेत्र में छिपी हुई बेरोजगारी एवं अन्य बेरोजगारी पाए जाने लगे है।
(ii)उद्योग क्षेत्र(Industrial Sector):-रोजगार का दूसरा क्षेत्र 'उद्योग क्षेत्र 'है। देश की औद्योगिक विकास की गति में तेजी आने के द्वारा ही औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार की वृद्धि होती है।
(iii)सेवा क्षेत्र(Service Sector):-सेवा क्षेत्र रोजगार का एक व्यापक क्षेत्र है जिसके अंतर्गत आये दिन मानव संसाधन के लिए व्यापक पैमाने पर रोजगार उपलब्ध होने लगे है। आर्थिक उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के कारण सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिलती है।
➤वर्तमान समय में सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 50 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है।
विश्व के विकसित देशो की तुलना में अर्धविकसित और विकाशशील देशों में गरीब बेरोजगारों की संख्या अत्यधिक है।
सेवा क्षेत्र का सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों ही स्तर पर इसक व्यापक प्रभाव पड़ा है जिससे काफी लोग लभंतित हुए है और हो रहे है।
➤भारत के मानवीय संसाधन विश्व के "सर्वश्रेष्ठ मानवीय संसाधनों "में आते है।
⇒सेवा क्षेत्र को सामान्यतः दो भागो में विभक्त किया जाता है :-
1.सरकारी सेवा
2.गैर सरकारी सेवा
1.सरकारी सेवा :-जब देश व राज्य की सरकार लोगों को काम के बदले मासिक वेतन देती है और इनसे विभिन्न क्षेत्रों म काम लेती है तो इसे सरकारी सेवा कहा जाता है।
सरकारी सेवा के कुछ उदाहरण :-सैन्य सेवा ,रेल सेवा ,वायुयान सेवा ,स्वास्थ्य सेवा ,वित्त सेवा ,शिक्षा सेवा ,बस सेवा ,कृषि सेवा ,अभियंत्रण सेवा ,बैंकिंग सेवा एवं अन्य सरकारी सेवाएं।
2.गैर सरकारी सेवा :-जब सरकार अपने द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों को गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से लोगों तक पहुँचाने का काम करती है।
या ,लोग स्वयं अपने प्रयास से ऐसी सेवाओं के सृजन से लाभाविंत होते है तो उसे गैर सरकारी सेवा कहा जाता है।
गैर सरकारी सेवा के कुछ उदाहरण :-बैंकिंग सेवा ,स्वास्थ्य सेवा ,दूरसंचार सेवा ,यातायात सेवा ,स्वरोजगार सेवा एवं अन्य गैर सरकारी सेवाएँ।
सेवा क्षेत्र का हम जितना ही विस्तार करेंगे रोजगार का अवसर उतना ही बढ़ेगा।
⇒जब वस्तु की गुणवत्ता में वृद्धि की जाती है तो इससे, उसे ऊँची कीमत पर बेचा जा सकता है। उत्पाद में गुणवत्ता के इस वृद्धि को Value Added कहते है।
राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के द्वारा रोजगार सृजन करने के लिए अनेकों कार्यक्रम चलाए जा रहे है जिसका कार्यान्वयन राज्य सरकार के द्वारा भी किया जा रहा है।
➤देश में सरकार द्वारा रोजगार हेतु निम्न प्रकार की योजनाएँ चलायी जा रही है।
जैसे की :-
●काम के बदले अनाज -14 नवंबर 2004
●राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम -1980
●ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण का कार्यक्रम -1979
●ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम -1983
●समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम -20 अक्टूबर 1980
●जवाहर रोजगार योजना -1989
●स्वयं सहायता समूह
●नरेगा इत्यादि।
इन सेवाओं के माध्यम से देश के बेरोजगारी की समस्या को दूर करने की कोशिश की जा रही है। इन योजनाओं से देश के करीब 62 प्रतिशत लोगों रोजगार मुहैया कराया जा रहा है।
➤ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए नरेगा विश्व की सबसे बड़ी योजना मानी जाती है।
➤पहले बढ़ती हुई जनसंख्या देश के लिए अभिशाप मणि जाती थी आज वहीं दक्षता और ज्ञान की वृद्धि के कारण अब जनसंख्या को मानव पूंजी के रूप स्वीकार किया जाने लगा है।
➤अर्थशास्त्र में जनसंख्या संबंधी विश्लेषण के बदले हुए परिवेश में मानवीय पूंजी कहा जाने लगा है।
➤भारत को विश्व का 'अग्रणी युवा देश' कहा जाता है।
*बाह्य स्रोती(Out Sourcing):-जब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या अन्य कंपनियाँ संबंधित नियमित सेवाएँ स्वयं अपनी कंपनियों की बजाय किसी बाहरी या विदेशी स्रोत या संस्था या समूह से प्राप्त करती है तो उसे बाह्य स्रोती कहा जाता है।
आउट सोर्सिंग के मामले में भी भारत एक महत्वपूर्ण गंतव्य (Destination) बन गया है।
देश व राज्य की प्रगति मूलतः कृषि ,उद्योग एवं व्यापार पर निर्भर करती है और इनकी प्रगति आधारभूत सरंचना अथवा बुनियादी सुविधाओं पर निर्भर करती है।
जिस देश अथवा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएँ अधिक होगी वहाँ औद्योगिक उत्पादन और रोजगार की वृद्धि होती है। उत्पादन और रोजगार के द्वारा ही सेवा क्षेत्र का विस्तार होता है।
वित्त (Finance):-बैंकिंग क्षेत्र ,बीमा क्षेत्र ,अन्य सरकारी वित्तीय क्षेत्र।
ऊर्जा (Energy):-कोयला ,विधुत ,तेल ,पेट्रोलियम ,गैस ,गैर पारपंरिक ऊर्जा एवं अन्य।
यातायात (Transport):-रेलवे ,सड़के ,वायुयान ,जलयान
संचार (Communication):-डाक ,तार ,टेलीफोन ,मिडिया एवं अन्य।
शिक्षा (Education):-माध्यमिक शिक्षा ,प्रारंभिक शिक्षा ,उच्चतर माध्यमिक शिक्षा एवं अन्य।
स्वास्थ्य (Health):-अस्पताल ,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ,नर्सिंग होम एवं अन्य।
नागरिक सेवाएँ (Civil Services):-सामाजिक चेतना ,सफाई एवं अन्य।
➤ग्रामीण भारत में विश्व के उच्च तकनीकी उन्नति के बाबजूद भी आधारभूत सरंचनाओं की सुविधाओं का एकदम आभाव है। आर्थिक दृष्टिकोण से अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों में तो बहुत कम बुनियादी सुविधाओं का विकास हो पाया है।
श्रमिकों की कुशलता ,शिक्षण ,प्रशिक्षण ,स्वास्थय इत्यादि बढ़ाकर देश की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
➤शिक्षा एवं स्वास्थ्य से प्रत्यक्ष मानव पूंजी निर्माण होता है।
➤भौतिक पूंजी दृश्य होती है जबकि मानवीय पूंजी अदृश्य।
➤मानव पूंजी निर्माण के लिए इनके प्रमुख घटक भोजन ,वस्त्र ,आवास ,शिक्षा एवं स्वास्थ्य हैं।
⭐सेवा क्षेत्र क्र विकास के लिए सर्वप्रथम शिक्षा को मजबूत बनाना होगा।
➤मानव पूंजी का खास अभिप्राय एक देश में एक निश्चित समय सीमा पर कुशलता ,क्षमता सुविज्ञता ,शिक्षा तथा ज्ञान के भण्डार से है।
➤अच्छी मानव पूंजी ,वैज्ञानिक ,इंजीनियर ,डॉक्टर ,कुशल प्रशासक ,समाज सेवी ,मनोवैज्ञानिक ,शिक्षक एवं शिक्षाविद इत्यादि मानव पूंजी का उत्पादन करती है।
➤भारत वर्ष को आज इस क्षेत्र में खास कर सुचना तकनीकी(Information Technology)में विश्व का अव्वल देश में गिनती की जा रही है।
(iii)सेवा क्षेत्र(Service Sector):-सेवा क्षेत्र रोजगार का एक व्यापक क्षेत्र है जिसके अंतर्गत आये दिन मानव संसाधन के लिए व्यापक पैमाने पर रोजगार उपलब्ध होने लगे है। आर्थिक उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के कारण सेवा क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति देखने को मिलती है।
➤वर्तमान समय में सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 50 प्रतिशत से भी ज्यादा हो गया है।
सेवा क्षेत्र की भूमिका
⇒सेवा क्षेत्र के विकास से अधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध होते है। सेवा क्षेत्र के विकास के लिए मनुष्य को शिक्षित करना नितांत आवश्यक है। जिस देश या राज्य की मानव पूंजी जितना ही कुशल होता है उस देश या राज्य का आर्थिक विकास उतना ही तीव्र गति से होता है।विश्व के विकसित देशो की तुलना में अर्धविकसित और विकाशशील देशों में गरीब बेरोजगारों की संख्या अत्यधिक है।
सेवा क्षेत्र का सरकारी एवं गैर सरकारी दोनों ही स्तर पर इसक व्यापक प्रभाव पड़ा है जिससे काफी लोग लभंतित हुए है और हो रहे है।
➤भारत के मानवीय संसाधन विश्व के "सर्वश्रेष्ठ मानवीय संसाधनों "में आते है।
⇒सेवा क्षेत्र को सामान्यतः दो भागो में विभक्त किया जाता है :-
1.सरकारी सेवा
2.गैर सरकारी सेवा
1.सरकारी सेवा :-जब देश व राज्य की सरकार लोगों को काम के बदले मासिक वेतन देती है और इनसे विभिन्न क्षेत्रों म काम लेती है तो इसे सरकारी सेवा कहा जाता है।
सरकारी सेवा के कुछ उदाहरण :-सैन्य सेवा ,रेल सेवा ,वायुयान सेवा ,स्वास्थ्य सेवा ,वित्त सेवा ,शिक्षा सेवा ,बस सेवा ,कृषि सेवा ,अभियंत्रण सेवा ,बैंकिंग सेवा एवं अन्य सरकारी सेवाएं।
2.गैर सरकारी सेवा :-जब सरकार अपने द्वारा संचालित विभिन्न कार्यक्रमों को गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से लोगों तक पहुँचाने का काम करती है।
या ,लोग स्वयं अपने प्रयास से ऐसी सेवाओं के सृजन से लाभाविंत होते है तो उसे गैर सरकारी सेवा कहा जाता है।
गैर सरकारी सेवा के कुछ उदाहरण :-बैंकिंग सेवा ,स्वास्थ्य सेवा ,दूरसंचार सेवा ,यातायात सेवा ,स्वरोजगार सेवा एवं अन्य गैर सरकारी सेवाएँ।
सेवा क्षेत्र का महत्व
⇒सेवा क्षेत्र का महत्व रोजगार प्राप्ति में काफी है ,सेवा एवं रोजगार एक दूसरे के पूरक है।सेवा क्षेत्र का हम जितना ही विस्तार करेंगे रोजगार का अवसर उतना ही बढ़ेगा।
⇒जब वस्तु की गुणवत्ता में वृद्धि की जाती है तो इससे, उसे ऊँची कीमत पर बेचा जा सकता है। उत्पाद में गुणवत्ता के इस वृद्धि को Value Added कहते है।
रोजगार सृजन के रूप में सेवाओं की भूमिका
⇒सेवा का क्षेत्र सरकारी हो या गैर सरकारी दोनों ही परिस्थितियों में रोजगार का सृजन होता है। बढ़ती हुई जनसंख्या कारण लोगों की आवश्कताएँ प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है ,इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विस्तार हो रहा। जिससे नये-नये कारखाने खोले जा रहे है।राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के द्वारा रोजगार सृजन करने के लिए अनेकों कार्यक्रम चलाए जा रहे है जिसका कार्यान्वयन राज्य सरकार के द्वारा भी किया जा रहा है।
➤देश में सरकार द्वारा रोजगार हेतु निम्न प्रकार की योजनाएँ चलायी जा रही है।
जैसे की :-
●काम के बदले अनाज -14 नवंबर 2004
●राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम -1980
●ग्रामीण युवा स्वरोजगार प्रशिक्षण का कार्यक्रम -1979
●ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम -1983
●समेकित ग्रामीण विकास कार्यक्रम -20 अक्टूबर 1980
●जवाहर रोजगार योजना -1989
●स्वयं सहायता समूह
●नरेगा इत्यादि।
इन सेवाओं के माध्यम से देश के बेरोजगारी की समस्या को दूर करने की कोशिश की जा रही है। इन योजनाओं से देश के करीब 62 प्रतिशत लोगों रोजगार मुहैया कराया जा रहा है।
➤ग्रामीण रोजगार के क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए नरेगा विश्व की सबसे बड़ी योजना मानी जाती है।
भारत-विश्व को सेवा प्रदाता के रूप में
⇒21वीं शताब्दी के विश्व के सेवा क्षेत्र में भारतीय श्रम पूंजी का अत्यधिक योगदान रहा है। जैसे की इंगलैंड के स्वास्थ्य और परिवहन सेवाओं में,सयुंक्त राज्य अमेरिका के अंतरिक्ष विज्ञान और सुचना प्रौद्योगिकी आदि में आज भी भारतीय श्रम-शक्ति के योगदान को सभी लोग स्वीकार करते है।➤पहले बढ़ती हुई जनसंख्या देश के लिए अभिशाप मणि जाती थी आज वहीं दक्षता और ज्ञान की वृद्धि के कारण अब जनसंख्या को मानव पूंजी के रूप स्वीकार किया जाने लगा है।
➤अर्थशास्त्र में जनसंख्या संबंधी विश्लेषण के बदले हुए परिवेश में मानवीय पूंजी कहा जाने लगा है।
➤भारत को विश्व का 'अग्रणी युवा देश' कहा जाता है।
*बाह्य स्रोती(Out Sourcing):-जब बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ या अन्य कंपनियाँ संबंधित नियमित सेवाएँ स्वयं अपनी कंपनियों की बजाय किसी बाहरी या विदेशी स्रोत या संस्था या समूह से प्राप्त करती है तो उसे बाह्य स्रोती कहा जाता है।
आउट सोर्सिंग के मामले में भी भारत एक महत्वपूर्ण गंतव्य (Destination) बन गया है।
सेवा क्षेत्र की बुनियादी सुविधाएँ
⇒सेवा क्षेत्र के विकास के लिए देश एवं राज्य स्तर पर बुनियादी सुविधाएँ का होना नितांत आवश्यक है। ये सुविधाएँ विकास धारा के 'रीढ़ की हड्डी' के समान है।देश व राज्य की प्रगति मूलतः कृषि ,उद्योग एवं व्यापार पर निर्भर करती है और इनकी प्रगति आधारभूत सरंचना अथवा बुनियादी सुविधाओं पर निर्भर करती है।
जिस देश अथवा क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएँ अधिक होगी वहाँ औद्योगिक उत्पादन और रोजगार की वृद्धि होती है। उत्पादन और रोजगार के द्वारा ही सेवा क्षेत्र का विस्तार होता है।
आधारभूत ढाँचा(Basic Infrastructure)
⇒आर्थिक सरंचना के अंतर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है :-वित्त (Finance):-बैंकिंग क्षेत्र ,बीमा क्षेत्र ,अन्य सरकारी वित्तीय क्षेत्र।
ऊर्जा (Energy):-कोयला ,विधुत ,तेल ,पेट्रोलियम ,गैस ,गैर पारपंरिक ऊर्जा एवं अन्य।
यातायात (Transport):-रेलवे ,सड़के ,वायुयान ,जलयान
संचार (Communication):-डाक ,तार ,टेलीफोन ,मिडिया एवं अन्य।
शिक्षा (Education):-माध्यमिक शिक्षा ,प्रारंभिक शिक्षा ,उच्चतर माध्यमिक शिक्षा एवं अन्य।
स्वास्थ्य (Health):-अस्पताल ,प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ,नर्सिंग होम एवं अन्य।
नागरिक सेवाएँ (Civil Services):-सामाजिक चेतना ,सफाई एवं अन्य।
➤ग्रामीण भारत में विश्व के उच्च तकनीकी उन्नति के बाबजूद भी आधारभूत सरंचनाओं की सुविधाओं का एकदम आभाव है। आर्थिक दृष्टिकोण से अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों में तो बहुत कम बुनियादी सुविधाओं का विकास हो पाया है।
सेवा क्षेत्र में शिक्षा की भूमिका
:-सेवा क्षेत्र में शिक्षा का अहम भूमिका है।इसके लिए मानव विकास एवं मानव पूंजी निर्माण नितांत आवश्यक है ,मानव पूंजी भौतिक पूंजी से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।श्रमिकों की कुशलता ,शिक्षण ,प्रशिक्षण ,स्वास्थय इत्यादि बढ़ाकर देश की उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
➤शिक्षा एवं स्वास्थ्य से प्रत्यक्ष मानव पूंजी निर्माण होता है।
➤भौतिक पूंजी दृश्य होती है जबकि मानवीय पूंजी अदृश्य।
➤मानव पूंजी निर्माण के लिए इनके प्रमुख घटक भोजन ,वस्त्र ,आवास ,शिक्षा एवं स्वास्थ्य हैं।
⭐सेवा क्षेत्र क्र विकास के लिए सर्वप्रथम शिक्षा को मजबूत बनाना होगा।
➤मानव पूंजी का खास अभिप्राय एक देश में एक निश्चित समय सीमा पर कुशलता ,क्षमता सुविज्ञता ,शिक्षा तथा ज्ञान के भण्डार से है।
➤अच्छी मानव पूंजी ,वैज्ञानिक ,इंजीनियर ,डॉक्टर ,कुशल प्रशासक ,समाज सेवी ,मनोवैज्ञानिक ,शिक्षक एवं शिक्षाविद इत्यादि मानव पूंजी का उत्पादन करती है।
➤भारत वर्ष को आज इस क्षेत्र में खास कर सुचना तकनीकी(Information Technology)में विश्व का अव्वल देश में गिनती की जा रही है।
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