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Ex:-5 विधुत-धारा का चुंबकीय प्रभाव

विधुत-धारा का चुंबकीय प्रभाव 

चुंबक शब्द की उत्पत्ति यूनान का एक द्वीप मैगनेशिया से हुआ | मैगनेशिया में एक विशेष प्रकार का पत्थर मैग्नेटाइट से चुम्बक की उत्पत्ति हुई | इस पत्थर में देखा गया की आकर्षण एवं विकर्षण का गुण मौजूद था |
*चुंबक(magnet) :-वैसा पत्थर जिसमे लोहा ,निकेल ,कोबाल्ट इत्यादि जैसे पदार्थो को आकर्षित एवं विकर्षित करने का गुण मौजूद हो ,वैसे पत्थर को चुंबक कहा जाता है |
*चुंबक के गुण :-
(i)आकर्षण का गुण(Quality of attraction) :-चुंबक में आकर्षण के गुण पाए जाते है ,ये लोहा ,निकेल ,कोबाल्ट इत्यादि जैसे पदार्थो को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है जिसके बारे में यूनानवासियों ने कहा |
(ii)विकर्षण का गुण(Quality of distraction) :-जब दो चुंबक के समान ध्रुवों को एक-दूसरे के नजदीक लाया जाता है तो दोनों के बीच विकर्षण या प्रतिकर्षण होता है ,जिसके बारे में यूनानवासियों ने बताया |
(iii)दिशात्मक गुण(Directional property) :-जब छड़ चुंबक को एक स्टैंड के सहारे लटकाया जाता है तो ये चुंबक हर स्थितियों में उत्तर -दक्षिण दिशा में आकर स्थिर हो जाते है | यह गुण दिशात्मक गुण कहलाता है |
*चुंबक का प्रकार
:-चुंबक के निम्नलिखित प्रकार है |
(i)प्राकृतिक चुंबक(Natural magnet) :-प्राकृति द्वारा प्राप्त मैग्नेटाइट नामक पत्थर को प्राकृतिक चुंबक कहा जाता है | जिसमे आकर्षण एवं विकर्षण का गुण बहुत कम पाया जाता है |
(ii)छड़ चुंबक(Rod magnet) :-वैसा चुंबक जो छड़ के अकार का हो जिसमे उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव आसानी से अनुभव किया जा सके ,उसे छड़ चुंबक कहते है | इसे स्थाई चुंबक के नाम से भी जाना जाता है | जिसका विशेष अध्ययन इस विषय में आगे करेंगे |
(iii)कृत्रिम चुंबक(Artificial magnet) :-प्राकृतिक चुंबक की सहायता से बनाए गए चुंबक को कृत्रिम चुंबक कहा जाता है | इसमें आकर्षण एवं विकर्षण का गुण ज्यादा पाया जाता है |
(iv)नाल चुंबक(Horseshoe magnet) :-वैसा चुंबक जो घोड़े के नाल की तरह होता है उसे नाल चुंबक कहा जाता है | इसमें भी दो ध्रुव होते है जिसे उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव कहा जाता है |

➤नाल चुंबक का दिशात्मक प्रयोग नहीं किया जाता है | जिसका उपयोग विभिन्न प्रकार के विधुतीय उपकरण ,विधुत मोटर ,विधुत जनित्र इत्यादि में प्रयोग किया जाता है |
*चुंबक क्षेत्र(Magnet field) :-चुम्बक के चारों ओर उपस्थित वैसा क्षेत्र जंहा पर आकर्षण एवं प्रतिकर्षण बल का अनुभव किया जा सकता है उस क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र कहा जाता है |
*चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ या चुंबकीय बल रेखाएँ :-यह ऐसा बन्द वक्र पथ है जो चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करता है उसे चुंबकीय बल रेखाएँ कहा जाता है |
*चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ का गुण :-
(i)यह बंद वक्र पथ बनाता है |
(ii)ये कभी-भी एक दूसरे को प्रतिच्छेदित नहीं करती है |
(iii)चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ चुंबक के अंदर दक्षिणी ध्रुव से उत्तरी ध्रुव की ओर एवं चुंबक के बाहर उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर होती है |

ओर्स्टेड का प्रयोग

⇨ओर्स्टेड का जन्म 1777 ई० को एवं मृत्यु 1851ई० में हुआ | इन्होंने चुंबकीय क्षेत्र से सबंधित 1820 ई० में एक प्रयोग किये | इनके अनुसार ,
                                     जब किसी चालक तार से विधुत धारा प्रवाहित होती है तो उसके इर्ध -गिर्ध (चारों ओर )
एक क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिसे इन्होंने चुंबकीय क्षेत्र कहा |

इस प्रयोग को करने के लिए ओर्स्टेड ने 1820 ई० को एक विधुत परिपथ तैयार किया ,उस विधुत परिपथ में एक तांबे की छड़ को लम्बत व्यवस्थित किया और उस छड़ के समांतर एक चुंबकीय सुई को स्टैंड के सहारे व्यवस्थित किया और जब इस परिपथ में लगे कुंजी को दबाया तो परिपथ से धारा प्रवाहित होने लगी | इसके समांतर लगी हुई चुंबकीय सुई विक्षेपित होने लगा और जब धारा के प्रवाह को बन्द किया जाता है तो चुंबकीय सुई अपनी प्रारंभिक स्थिति में आ जाता है |

मैक्सवेल का दक्षिण हस्त नियम

⇨मैक्सवेल के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार मैक्सवेल ने अपने दाहिने हाथ के मुट्ठी में चालक तार को इस प्रकार पकड़ा की अंगुठा विधुत धारा की दिशा को प्रदर्शित करता है तो बाकि शेष अंगुलियाँ चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करेगी |

*परिनालिका(Solenoid) :-जब किसी अचालक खोखले वेलन के ऊपर चालक तार की कुंडली लपेट दी जाती है तो ,उसे परिनालिका कहा जाता है |
परिनालिका से प्रवाहित विधुत धारा के कारण उत्त्पन चुंबकीय क्षेत्र |
*विधुत चुंबक(Electro magnet) :-परिनालिका के अंदर नर्म लोहे का छड़ रख कर जब विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है तो ये नर्म लोहे का छड़ चुंबकित हो जाता है ,इस प्रकार से बने चुम्बक को विधुत चुम्बक कहा जाता है |

➤विधुत चुंबक का उपयोग लाउडस्पीकर ,टेलीफोन ,किरान इत्यादि में उओयोग किया जाता है |
➤विधुत चुंबक की शक्ति परिनालिका में चालक तार के फेरों की संख्या पर निर्भर करता है |
➤विधुत चुंबक को अस्थाई चुंबक के नाम से भी जाना जाता है | क्योकि जब परिनालिका से विधुत धारा प्रवाहित करना बंद कर दिया जाता है तो नर्म लोहे की छड़ में आकर्षण विकर्षण का गुण समाप्त हो जाता है |
➤विधुत चुंबक में आकर्षण और विकर्षण बल काफी मजबूत  होता है |
*स्थायी चुंबक :-जब परिनालिका के अंदर इस्पात की छड़ डाल कर विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है तो इस इस्पात की छड़ में आकर्षण विकर्षण का गुण स्थायी हो जाता है ,यही कारण इसे छड़ चुंबक या स्थायी चुंबक कहते है |
➤स्थायी चुंबक की शक्ति निश्चित होती है |
➤इसका आकर्षण विकर्षण बल मजबूत होता है |
➤इसे छड़ चुंबक के नाम से भी जाना जाता है |
*चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल :-
 ⇨

इस प्रयोग को करने के लिए सबसे पहले एक अचालक स्टैंड पर एल्युमीनियम के मोटी तार को क्षैतिज दो चालक तार की सहायता से लटकाया जाता है | इन दोनों चालक तार को बैटरी (E) से जोड़ दिया जाता है | इसमें एक स्विच लगी होती है |
                  जब कुंजी को दबाया जाता है तो इस परिपथ से धारा प्रवाहित होने लगती है और एल्युमीनियम की मोटी तार विक्षेपित होने लगती है | और जब धारा की दिशों को बदला जाता है तो विक्षेपित होने की दिशा भी बदल जाती है | जब धारा के प्रवाह को रोका जाता है तो विक्षेपित होना बंद हो जाता है |
 अतः चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक तार से विधुत धारा गुजरता है तो उस चालक पर एक बल कार्य करता है|

फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम

⇨फ्लेमिंग का पूरा नाम सर जॉन एप्रोन्स फ्लेमिंग था ,जिनका जन्म 1849 ई० को एवं मृत्यु 1945 ई० को हुआ | इन्होने एक नियम दिया जो इस प्रकार है |
                                       इनके अनुसार फ्लेमिंग ने अपने वायां हाथ की तीन अंगुलियाँ तर्जनी ,मध्यमा एवं अंगुष्ठा को समकोणिक इस प्रकार फैलाया की तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को ,मध्यमा विधुत धारा की दिशा को प्रदर्शित करती है तो अंगुष्ठा उस धारावाही चालक पर लगने वाले बल की दिशा के बारे में बतायेगा |
*चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाले बल के कारण
(i)लॉरेंज बल :-जब किसी धारावाही चालक तार को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो धारावाही चालक तार में गतिशील इलेक्ट्रॉन पर एक बल कार्य करता है जिसे लॉरेंज बल कहा जाता है |
➤जब दो विधुत धारावाही चालक तार को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है और उन दोनों चालक तार से एक ही दिशा में विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है तो उन दोनों चालक तार के बीच आकर्षण होता है और जब दोनों चालक तार के विपरीत दिशा से विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है तो दोनों चालक तार के बीच विकर्षण होता है|
*चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है :-
(i)चुंबकीय क्षेत्र के सामर्थ पर
     F  ∝ B....................(i)
(ii)विधुत धारा के प्रबल पर
    F ∝ I.......................(ii)
(iii)चालक तार की लम्बाई पर
    F ∝ l.......................(iii)
समी० (i),(ii) तथा (iii) से
F ∝ BIl
F = K.BIl     (∵K=1)
[ F=BIl ]
अर्थात,
           F=BIl
B =चुंबकीय क्षेत्र
I =विधुत धारा
l =चालक तार की ल०
*चुंबकीय फ्लॉस्क(Magnetic flask) :-किसी सतह के लम्बत गुजरने वाली चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या को चुंबकीय फ्लॉस्क कहा जाता है |
इसका S.I मात्रक वेवर होता है |
*चुंबकीय प्रेरण(magnetic induction) :-परवर्तित चुंबकीय क्षेत्र के कारण किसी कुंडली में विधुत धारा उत्पन्न होने की घटना को चुंबकीय प्रेरण कहा जाता है |
*प्रायोगिक सत्यापन :-

इस प्रयोग को करने के लिए सबसे पहले एक लकड़ी का खोखला बेलन लिया जाता है,उसके ऊपर तार की कुंडली लपेट जाती है |
                             इस कुंडली को एक गैल्वेनोमीटर से जोड़ दिया जाता है |
 जब इस कुंडली के समीप एक छड़ चुंबक को लाया जाता है और जब चुंबक को आगे-पीछे खिसखाया जाता है तो देखा जाता है की गैल्वेनोमीटर में लगे हुए चुंबकीय सुई विच्छेपित होने लगता है |
            अतः इससे स्पष्ट होता है की प्रवर्तित चुंबकीय क्षेत्र के कारण किसी कुंडली में विधुत धारा उत्पन्न होती है |

फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम

⇒फ्लेमिंग ने अपने दाहिने हाथ के तीन अंगुलियाँ तर्जनी ,मध्यमा और अंगुष्ठा को समकोणिक इस प्रकार फैलाया की तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करता है | अंगुष्ठा चालक की गति के दिशा के बारे में बताता है तो मध्यमा उस चालक से प्रेरित विधुत धारा के दिशा के बारे में बताएगी

दिष्ट धारा और प्रत्यावर्ती धारा
*दिष्ट धारा(Direct current) :-वैसा विधुत धारा जिसका परिमाण अचर या परिवर्तित हो एवं दिशा एक  समान हो उसे दिष्ट धारा कहा जाता है |
   जिसे प्रायः DC द्वारा सूचित किया जाता है |
➤दिष्ट धारा की आवृति (0) शून्य होती है |
*प्रत्यावर्ती धारा(Alternating current) :-वैसा विधुत धारा जिसका परिमाण एवं दिशा निश्चित समयांतराल पर बदलता रहता है ,उसे प्रत्यावर्ती धारा कहा जाता है |
➤जिसे प्रायः AC से सूचित किया जाता है |
➤इसकी आवृति 50Hz होती है |
➤यह प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करने वाले यंत्र विधुत जनित्र ,विधुत मोटर इत्यादि होते है |
*प्रत्यावर्ती धारा से हानी :-
(i)इसका झटका काफी घातक होता है |
(ii)प्रत्यावर्ती धारा से विधुत लेपन नहीं किया जाता है |
(iii)इसे संचायक सेल में एकत्रित नहीं किया जा सकता है |
(iv)इसका उपयोग विधुत चुम्बक बनाने में नहीं किया जा सकता है |
*प्रत्यावर्ती धारा से लाभ :-
(i)प्रतायवर्ती धारा के विधुत वाहक बल को घटाकर छः वोल्ट की वत्ति तक जलाया जा सकता है |
(ii)प्रत्यावर्ती धारा को विधुत वाहक बल को बढाकर काफी दूर तक ले जाया जा सकता है |
(iii)प्रत्यावर्ती धारा के विधुत वाहक बल को ट्रांसफार्मर की सहायता से बढ़ाया -घटाया जा सकता है |

विधुत जनित्र(Electric generator)

➠यह एक ऐसा यंत्र है जो यांत्रिक ऊर्जा को विधुत ऊर्जा में परावर्तित करता है |
बनाबट :-विधुत जनित्र में एक नाल चुंबक होता है ,उस नाल चुंबक के मध्य भाग एक आर्मेचर लगा होता है |
                            जब नर्म लोहे की छड़ पर चालक तार की कुंडली लपेट दी जाती है तो ऐसी व्यवस्था को आर्मेचर कहा जाता है | आर्मेचर का अग्र शिरा नाल के मध्य में होता है | एवं उसके पिछला शिरा दो खंडित बल्य से जुड़े होते है | ये खंडित बल्य पीतल के  होते है | इस खंडित बल्य के ऊपर कार्बन ब्रश B1 तथा B2 स्पर्श करते है | इस दोनों कार्बन ब्रश से एक विधुत बल्य को बाहरी विधुत परिपथ से जोड़ दिया जाता है |
क्रियाविधि :-जब आर्मेचर को घुमाया जाता है तो AB भाग CD की ओर ,CD भाग AB  पंहुच जाता है जिसे विधुत धारा A  से B की ओर एवं C से D की ओर प्रवाहित होता है |
                                                            फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम से इस चालक की गति के जो खंडित बल्य से होते हुए कार्बन ब्रश से स्पर्श करता है इसके साथ जुड़े हुए बल्ब जलने लगता है |
➤जब विधुत जनित्र में धारा का मान प्रत्येक अर्ध चक्र में महत्तम से शून्य एवं शून्य से महत्तम होता है तो ये प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करते है इसलिए इसे प्रत्यावर्ती धारा डायनेमो कहा जाता है |

विधुत मोटर(Electric motor) 

➠यह एक ऐसी यक्ति है जो विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परवर्तित करता है | इसी के सिद्धांत पर विधुत रेफ्रिजरेटर ,पंखा इत्यादि कार्य करता है |
सिद्धांत :-यह फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के सिद्धांत पर आधारित है |
बनाबट :-इसमें एक नाल चुंबक होता है | जिसे क्षेत्र चुंबक कहते है | इस नाल चुंबक के मध्य भाग में एक आर्मेचर लगा होता है | जिसके पिछले शिरे दो खंडित बल्य R1 और R2 से जुड़े रहते है | इन दोनों बल्य के ऊपर कार्बन ब्रश लगे होते है | जिसमें कार्बन ब्रश B1 निम्न विभव पर एक कार्बन ब्रश B2 उच्च विभव पर होता है | ये दोनों कार्बन ब्रश को बाहरी विधुत परिपथ से जोड़ दिया जाता है |
क्रियाविधि :-जब परिपथ के कुंजी को दबाया जाता है तो धारा कार्बन ब्रश से होते हुए आर्मेचर में प्रवेश करता है | जिसके कारण AB तथा CD चुंबकीय क्षेत्र के लम्बत दिशा में होता है |
                                         फ्लेमिंग के वामहस्त नियम के अनुसार इससे बल की दिशा में विधुत धारा प्रवाहित होती है | इसमें धारा का मान समान तथा इसकी दिशा प्रत्येक क्षण बदलता रहता है | यही कारण से आर्मेचर घूमने लगता है और यदि आर्मेचर के छोर पर ब्लेड लगा दिया जाये तो ये विधुत मोटर विधुत पंखा बन जाता है | 

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