New Post

3.मानव प्रजनन

 

*Mammalia का समान्य लक्षण :-

इसके जंतु के शरीर में Mammary Glands(दुग्ध ग्रंथियाँ) पायी जाती है। ये ग्रंथियाँ Male एवं Female दोनों शरीर में पाया जाता है,परन्तु Female में ये विकसित होता है। इसके जंतु के शरीर पर Hairs पाया जाता है। और इसके अतिरिक्त Nail ,Hoof ,Horn पाया जाता है। इसके जंतु का शरीर Head ,Neck ,Trunk तथा Tail में विभक्त रहता है।

इसके जंतु के शरीर में बाह्य कर्ण(External Ear) पाया जाता है। इसके जंतु के शरीर में डायाफ्राम पाया जाता है। इसके जंतु के शरीर में Heart पायी जाती है जो 4-Chambers में विभक्त रहता है।

इसके Blood में Haemoglobin पाया जाता है। जिसके कारण इसका रंग लाल होता है।

इसमें श्वसन की क्रिया फेफड़ा के द्वारा होती है।

इसमें उत्सर्जन की क्रिया Kidney(वृक्क) के द्वारा होती है।

इसमें तंत्रिका तंत्र काफी विकसित होते है। जिसका मुख्य केंद्र BRAIN(मष्तिष्क) होता है।

इसके जंतु Unisexual (एकलिंगी) होते है।

इसके जंतु Oviparous(अण्डज),Viviparous(जरायुज),तथा Ovoviviparous होते है।

इसके जंतु सर्वाहारी होते है।

मनुष्य में Sexual Dimorphism (द्विरूपता) पाया जाता है ,इसमें Male तथा Female में लैंगिक विभिन्नता पायी जाती है। मनुष्य में Sexual Reproduction पाया जाता है।

*नर प्रजनन तंत्र(Male Reproductive System)

मनुष्य Unisexual प्राणी है,इसमें नर प्रजनन अलग शरीर में पाया जाता है।

इसके प्रजनन अंग Primary Sex Organ(प्राथमिक लैंगिक अंग),Secondary Sex Organ(सहायक लैंगिक अंग) में बंटा रहता है।

Primary Sex Organ में Testis को रखा गया है। इसमें मुख्यतः gamete का निर्माण होता है।

Secondary Sex Organ में Testis को छोड़कर बाकी अंगो को रखा गया है इसमें मुख्यतः Penis(शिशन),Seminal Vesicle(शुक्राशय),Ejaculatoryduct (स्खलन नली),अधिवृषण आदि को रखा गया है।

नर में निम्नलिखित प्रजनन अंग पाया जाता है :-

i. Testis(वृषण)

ii. Vasdeferens(शुक्रवाहक)

iii. Epididymis(अधिवृषण)

iv. Seminal Vesicle(शुक्राशय)

v. Ejaculatoryduct (स्खलन वाहिनी)

vi. Scrotum (वृषण कोष)

vii. Urethra (मूत्र मार्ग)

viii. Penis (शिशन)

ix. Prostate Gland (प्रॉस्टेट ग्रंथि)

x. Balbourethral Gland (ब्लबोयुरेथ्रल ग्रंथि)

 

i. Testis(वृषण)

यह प्राथमिक प्रजनन अंग है। मनुष्य में एक जोड़ा वृषण पाया जाता है।

यह Oval Shaped(अंडाकार) होता है। यह शरीर के उदर गुहा के बाहर एक थैली में स्थित रहता है ,जिसे Scrotum (वृषण कोष) कहा जाता है।

इसमें वृषण की लम्बाई 4-5cm तथा चौड़ाई 2-3cm होती है।

वृषण के एक इकाई को Seminiferous Tubules (शुक्रजनन नलिका) कहा जाता है।

Seminiferous Tubules,Oval Shaped होता है। इसमें Germenial Epithelium पाया जाता है।

Seminiferous Tubules आपस में संयोजी उत्तक द्वारा जुड़ा रहता है।

संयोजी उत्तक आपस में मिलकर गुच्छे का निर्माण कर लेता है जिसे Intersisitial Cell(अंतर कोशिका) का निर्माण कर लेता है।

ये अन्तः स्रावी ग्रंथि का कार्य करता है। इसके द्वारा Male Sex Harmon ANdrogen तथा Testosterone का स्राव करता है। 

Germenial Epithelium के बीच में Sertoli Cells पाया जाता है जो शुक्रणओं को पोषण प्रदान करता है।

Testis में नर युग्मक शुक्राणु(Sperm) का निर्माण होता है।

Sperm के निर्माण क्रिया को Spermatogenesis (शुक्रजनन) कहा जाता है।

Sperm के परिपक्व होने की क्रिया Spermeiogenesis कहा जाता है।

Note:-हाथी एवं ब्लूव्हले के शरीर में वृषण उदर में ही स्थित रहता है।

ii. Vasdeferens(शुक्रवाहक)

ये अधिवृषण के पिछले भाग से एक कुण्डलित नलिका के रूप में निकलती है ,जिसे Vasdeferens कहा जाता है।

यह Seminal Vesicle(शुक्राशय) से मिलकर Ejaculatoryduct (स्खलन नलिका) का निर्माण करती है।

iii. Epididymis(अधिवृषण)

इसका निर्माण Vasdeferens के पतले,लम्बे कुण्डलित नलिका से होती होती है।

ये संयोजी उत्तक से जुड़ा रहता है। ये वृषण से शुक्रवाहिनी में शुक्राणु को पहुंचाता है। इसमें गति के कारण शुक्राणु आगे की ओर बढ़ता है।

शुक्राणु परिपक्क्व इसी स्थान पर होते है। साथ ही साथ उनका पोषण भी मिलता है

iv. Seminal Vesicle(शुक्राशय)

ये मूत्राशय के पिछे स्थित होता है यह शुक्रियद्रव्य (Seminial Fluid) का निर्माण करता है जो वीर्य (Semin) के निर्माण में मदद करता है।

इसमें Fructose Sugar पाया जाता है जो शुक्राणु को ऊर्जा प्रदान करता है।

v. Ejaculatoryduct (स्खलन वाहिनी)

शुक्रवाहिनी एक फँदा का निर्माण कर शुक्राशय की छोटी नलिका से जुड़ जाती है।

दोनों नलिकाओं के जुड़ने के स्थान को स्खलन वाहिनी कहा जाता है।

यह मूत्र मार्ग में खुलती है।

vii. Urethra (मूत्र मार्ग)

यह एक पेशीय नली है यह मूत्राशय से निकलकर Urinogenital Canal का निर्माण करता है।

इसके द्वारा Urine(मूत्र),Semen(वीर्य) स्राव एवं अन्य स्राव बाहर निकलते है।

यह Penis के द्वारा Urinogenital Aperture(मूत्र जनन छिद्र) के द्वारा बाहर खुलता है।

vi. Scrotum (वृषण कोष)

मनुष्य में एक जोड़ा वृषण पाया जाता है। यह एक थैलीनुमा रचना में स्थित रहता है जिसे Scrotum कहा जाता है।

वृषण कोष के अंदर एक पट्टी पाया जाता है। जो वृषण कोष को दो भागों में विभक्त कर देता है। अंदर वाले भाग को Inguinal Canal कहा जाता है।

viii. Penis (शिशन)

यह एक बेलनाकार,मांसल एवं लम्बी रचना है। इसके शीर्ष भाग खुला हुआ रहता है जिसे Glans Penis (शिशन मुण्ड) कहा जाता है।

इसके ऊपर त्वचा एवं रक्त कोशिकाओं का जाल पाया जाता है। ये समान्य अवस्था में छोटा रहता है,परन्तु प्रजनन क्रिया के दौरान कठोर एवं लम्बी हो जाती  है जिसके कारण ये Female Vagina (मादा योनि) में प्रवेश करने योग्य हो जाता है।

इसके सहायता से Semen मादा योनि में स्थान्तरित कर दिया जाता है।

ix. Prostate Gland (प्रॉस्टेट ग्रंथि)

ये ग्रंथि मूत्रमार्ग के आधार पर स्थित होता है।

ये कई पिंडो में बंटा रहता है।

इसके प्रत्येक पिंड से पतली नली निकलती है जो मूत्रमार्ग में खुलती है।

इसके द्वारा एक द्रव्य का स्राव होता है जिसमें Phosphatase ,Protealytic enzyme आदि मौजूद रहता है।

यह Semen का 25% भाग का निर्माण करता है।

x. Balbourethral Gland या Cowper's Gland

ये ग्रंथि Prostate gland के ठीक पीछे स्थित होता है इसके द्वारा चीप-चिपे पदार्थ का स्राव होता है।

यह क्षारीय होता है। ये शुक्राणुओं को गति प्रदान करने में मदद करता है। जो शुक्राणु को अंडवाहिनी तक पहुँचने में मदद करती है।


*Semen (वीर्य)

Seminal Vesicle(शुक्राशय) के द्वारा स्रावित म्यूकस,Prostate gland एवं Cowper's Gland का स्राव के साथ शुक्राणुओं के उपस्थिती वाले गाढ़े पदार्थ को Semen कहा जाता है।

Semen में 300 मिलियन शुक्राणु पाए जाते है।

*मादा प्रजनन तंत्र (Female Reproductive System)

मादा में निम्न प्रकार का प्रजनन अंग पायी जाती है :-

i. Ovary (अण्डाशय)

ii. Oviduct Or Fallopian Tube (अंडवाहिनी या फ्लोपियन नलिका)

iii. Uterus (गर्भाशय)

iv. Vagina (योनि)

v. External Genitalia (बाह्य जननांग)

vi. Mammary Glands (दुग्ध ग्रंथियाँ)

 

i. Ovary (अण्डाशय)

यह प्राथमिक लैंगिक प्रजनन अंग है। ये मादा के शरीर में वृक्क के थोड़ा सा नीचे इसके दोनों तरफ पाया जाता है।

यह एक जोड़ी पाई जाती है। यह Oval Shaped(अंडाकार) होता है।

ये 2-4cm लम्बी होती है। इसकी चौड़ाई 1.5cm लगभग होती है। इसमें Female Gamete(मादा युग्मक) Ovum या Egg(अंडाणु) का निर्माण होता है।

ii. Oviduct Or Fallopian Tube (अंडवाहिनी या फ्लोपियन नलिका)

प्रत्येक अण्डाशय में एक लम्बी कुंडलित नलिका पाई जाती है जिसे अंडवाहिनी या फ्लोपियन नलिका कहा जाता है।

ये नलिका 10-12cm लम्बी होती है। ये उदर गुहा के पीछे तक फैली रहती है तथा अंडाणु को अंडाशय से गर्भाशय तक पहुँचाने में मदद करता है। 

मनुष्य में निषेचन की क्रिया अंडवाहिनी या फ्लोपियन नलिका में होती है।

इसके अग्र भाग अंगुली के सदृश्य रचना का निर्माण करता है जिसे Fimbrae कहा जाता है।

ये पीछे की ओर Ceep के समान रचना का निर्माण करती है। जो अंडाणु को पकड़ने में मदद करता है।

iii. Uterus (गर्भाशय)

यह एक थैली नुमा रचना है। इसे बच्चेदानी के नाम से भी जाना जाता है।

ये 7.5cm लम्बा तथा 5cm चौड़ा होता है।

ये मूत्राशय तथा मलाशय के मध्य में पाया जाता है। ये पीछे की ओर संकीर्ण होकर Vagina(योनि) का निर्माण करता है।

मनुष्य में केवल एक ही गर्भाशय पायी जाती है।

गर्भा अवस्था के दौरान इसकी आकृति भिन्न-भिन्न अवश्थायों में भिन्न होता है।

iv. Vagina (योनि)

यह मादा प्रजनन अंग है,यह मादा मैथुन कक्ष होता है।

यह मूत्राशय एवं मलाशय के मध्य स्थित होता है और यह 7.5cm लम्बी होती है।

इसका निचला शिरा बाहर की ओर खुलता है जिसे Vaginal Orifice(योनि छिद्र) कहा जाता है।

इसमें एक पतली झिल्ली पाई जाती है जिसे Hymen (हाइमन) कहा जाता है। यह झिल्ली प्रायः युवा अवस्था (Puberty Stage),यौवनस्था के समय खेलने-कूदने के दरम्यान नष्ट हो जाता है।

Note:-Vagina में Lactobacili नामक जीवाणु पाया जाता है जो संक्रमण से बचाता है।

v. External Genitalia (बाह्य जननांग)

इसमें Labia Major(दीर्घ भगोष्ठ),Labia Minor(लघु भगोष्ठ),Clitoris(भगशिशन) आदि पाया जाता है।

 Labia Major:-यह मांसल भाग है,यह दो कपाटों के रूप में पाया जाता है। इसके अंदर Clitoris पाया जाता है।

Labia Minor:-यह Labia Majorके अंदर का भाग होता है ,इसमें मादा जननांग खुलते है।

Clitoris:-यह बटन के सदृश्य होती है। यह मूत्र मार्ग के समीप पायी जाती है। यह मादा में प्रजनन क्रिया के दौरान उत्तेजना पैदा करता है।

Perineum:-यह Anus तथा जननांग के मध्य का भाग होता है।

vi. Mammary Glands (दुग्ध ग्रंथियाँ)

मनुष्य में एक जोड़ी दुग्ध ग्रंथियाँ पाई जाती है। ये ग्रंथि स्त्रियों में सक्रिय होती है परन्तु पुरषों में निष्क्रिय अवस्था में पाया जाता है।

ये ग्रंथि वक्ष में स्थित होता है। इसका निर्माण स्वेद ग्रंथि के रूपांतरण से होती है।

यह वक्ष के उभार के रूप में पायी जाती है।

इसके अग्र भाग को Nipple कहा जाता है।

इसमें ग्रंथि उत्तक ,वसा उत्तक आदि पाया जाता है। इसमें 15 से 20 की संख्या में संयोजी उत्तक पालियों में पाई जाती है।

Prolactin Harmon के स्राव से दुग्ध का उत्पादन होता है। Milk में fat ,केसिन प्रोटीन ,Lactose ,खनिज लवण एवं विटामिन आदि पाया जाता है।

बच्चे के जन्म के बाद प्रथम बार दुग्ध का स्राव होता है जिसे Colostrum कहा जाता है।

इसमें प्रचुर मात्रा में Antibody पायी जाती है,जो रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है।

*Bertholin Gland

यह ग्रंथि मादा के योनि में पाई जाती है। इस ग्रंथि के द्वारा प्रजनन के समय स्राव निकलता है जो मादा के योनि को चिकना कर देती है।

ये एक जोड़ी होती है,ये मैथुन क्रिया में मदद करता है। ये नर के Cupper gland के समान होता है।

* Perinial Gland

ये एक जोड़ी पायी जाती है,ये ग्रंथि Bertholin Gland के पीछे पाई जाती है।

ये ग्रंथि प्रजनन क्रिया के दौरान उत्तेजना पैदा करती है।

*Rectal Gland

ये ग्रंथि Rectum में पायी जाती है। इससे एक विशेष प्रकार के गंध निकलती है। जो विपरीत लिंगो को अपनी ओर आकर्षित करने में मदद करती है।

*युग्मकजनन (Gametogenesis)

नर एवं मादा मनुष्य में युग्मक बनने की क्रिया युग्मकजनन कहलाता है।

युग्मक दो प्रकार का होता है :-

i. Male Gamete (नर युग्मक)

ii. Female Gamete (मादा युग्मक)

Male Gamete,Sperm बनने की क्रिया Spermatogenesis (शुक्राणु जनन) कहलाता है।

Female Gamete,Ovum बनने की क्रिया Oogenesis कहलाता है।

*Spermatogenesis:-ये क्रिया Male के Testis में होता है। जब ये Male यौवनवस्था प्राप्त कर लेता है तो ये क्रिया प्रारंभ हो जाती है। पुरषों में क्रिया जीवन प्रायंत्र चलती है।

ये क्रिया काफी जटिल होती है जो तीन चरणों में पूर्ण होता है :-

i. Multiple Phase (बहुगुणन अवस्था)

ii. Growth Phase (वृद्धि अवस्था)

iii. Maturation Phase (परिपक्व अवस्था)

i. Multiple Phase (बहुगुणन अवस्था)

सर्वप्रथम Testis(वृषण) के जनन कोशिका में समसूत्री विभाजन प्रारंभ होती है,जिसके फलस्वरूप बहुत से कोशिकाओं का निर्माण होता है।

प्रत्येक बंटे हुए कोशिका को Spermatogonia कहा जाता है। इसमें गुणसूत्र द्विगुणित(2n =46) अवस्था में पायी जाती है।

ii. Growth Phase (वृद्धि अवस्था)

इस अवस्था में बंटे हुए Spermatogonia पोषण प्राप्त कर आकार में वृद्धि कर लेता है जिसे Primary Spermatocyte कहा जाता है। इस अवस्था में गुणसूत्र द्विगुणित(2n =46) होता है।

इस अवस्था में विभाजन की क्रिया नहीं होती है।

iii. Maturation Phase (परिपक्व अवस्था)

इस अवस्था में Primary Spermatocyte में प्रथम अर्धसूत्री विभाजन होती है। जिसके फलस्वरूप दो Secondary Spermatocyte का निर्माण हो जाता है। 

Secondary Spermatocyte में गुणसूत्र अगुणित अवस्था (n =23) में पाया जाता है। इसके बाद द्वितीय अर्धसूत्री विभाजन होती है ,जिसके फलस्वरूप Secondary Spermatocyteविभाजित कर दो-दो Spermatid का निर्माण कर लेते है।

इस प्रकार एक शुक्राणु जनन में 4-Spermatid या Spermatozoa का निर्माण कर लेता है। जिसमें गुणसूत्र अगुणित अवस्था में (n =23) पाया जाता है।

Spermatid से Sperm बनने की क्रिया Spermeiogenesis कहलाता है।

*Sperm (शुक्राणु)

यह एक पतला एवं लम्बा रचना होता है। यह 0.05mm आकार का होता है।

यह Motile(गतिशील) होता है ,इसे मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है :-

i. Head (सिर)

ii. Middle Piece (मध्य भाग)

iii. Tail (पूंछ)

i. Head (सिर)

यह शुक्राणु का अग्र भाग होता है,इसे अग्र भाग को Acrosome कहा जाता है।

यह फूली हुई रचना के रूप में पायी जाती है। इसमें एक केन्द्रक पाई जाती है ,जिसमें अनुवांशिक पदार्थ मौजूद रहता है।

ii. Middle Piece (मध्य भाग)

यह सिर एवं पूंछ के बिच का भाग होता है,इसमें एक या दो Centriole उपस्थित होते है।

इसमें Mitochondria उपस्थित रहता है जो ऊर्जा प्रदान करने में मदद करता है।

iii. Tail (पूंछ)

यह पश्य भाग होता है ,इसमें Axial Filament(अक्षीय सूत्र) पाया जाता है। यह शुक्राणु को तैरने में मदद करता है।

इसका जीवन काल 48-72 घंटे तक होता है।

यह 24 घंटे तक अधिक सक्रिय होता है।

Note:-मैथुन क्रिया के समय स्खलित वीर्य में 20-30 करोड़ शुक्राणु उपस्थित होते है।

*Oogenesis (अण्डजनन)

Female(मादा) के Ovary में Ovum का निर्माण होता है,उस क्रिया को Oogenesis कहा जाता है।

Ovum को Female gamete कहा जाता है। इसका निर्माण क्रिया तीन चरणों में पूर्ण होती है।

i. Multiple Phase

ii. Growth Phase

iii. Maturation Phase

i. Multiple Phase

इस अवस्था में जनन कोशिकाएँ विभाजित कर बहुत से छोटे-छोटे कोशिकाओं का निर्माण कर लेता है। प्रत्येक बंटे हुए कोशिकाओं को Oogonia कहा जाता है।

प्रत्येक Oogonia में गुणसूत्रों की संख्या (2n=46) होता है।

ii. Growth Phase

इस अवस्था में बंटे हुए Oogonia पोषण प्राप्त कर आकार में वृद्धि कर लेता है ,जिसे Primary Oocyte कहा जाता है।

इस अवस्था में विभाजन की क्रिया रुक जाती है।

iii. Maturation Phase

इस अवस्था में Primary Oocyte में प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। जिसके फलस्वरूप दो आसमान कोशिकाएँ निर्मित होती है। इसमें बड़े वाले कोशिका को Secondary Oocyte एवं छोटी कोशिका को Polar body कहा जाता है।

इसमें गुणसूत्रों की संख्या (n=23) पायी जाती है। Secondary Oocyte में अगर शुक्राणु के अग्र भाग इसके दिवार से स्पर्श करते है तो इसमें पुनः द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है ,जिसके फलस्वरूप एक Ovum तथा 3-Polar body का निर्माण होता है।

Polar Body में निषेचन करने की क्षमता नहीं पाई जाती है। इस प्रकार एक Oogenesis क्रिया के दौरान एक ही Ovum का निर्माण होता है।

*अण्डाशय का अनुप्रस्थ काट

अण्डाशय संयोजी उत्तक का एक पतले झिल्ली से ढका हुआ होता है। इसमें जनन इपीथैलियम पाया जाता है जो विभाजित कर Oogonia का निर्माण करती है।

इसके चारों तरफ Primary Egg Follicle(प्राथमिक अंड पुटक) से घिरा रहता है। इसे वृद्धि कर Oocyte और अंत में Ovum का निर्माण होता है।

Mature Egg Follicle या Graafian Follicle के कोशिकाओं में तेजी से विभाजन होता है। जिसके कारण एक गुहा का निर्माण होता है। जिसे Follicular Cavity(ग्राफी गुहा) कहते है।

ये Cavity द्रव्य से भरा होता है,जिससे पोषण प्रदान किया जाता है। 

Primary Oocyte के चारों तरफ Follicular Cells का एक आवरण पाया जाता है ,जिसे Corona Radiata कहते है।

इसके बाहर Vitelline Membrane पाया जाता है। Corona Radiata तथा Vitelline Membrane के बीच में एक झिल्ली पाई जाती है,जिसे Zona Radiata(पारभासी स्तर) कहते है।

परिपक्क्व पुटक जैसे ही Ovary के सतह पर पहुँचता है,वैसे ही फट जाता है और Oocyte स्वतंत्र हो जाता है।

Follicle की गुहा रक्त के थका से भर जाता है और ये थका एक विशेष प्रकार की रचना का निर्माण करता है,जिसे Corpus Luteum कहते है।

अंडाणु के निषेचन नहीं होने पर ये नष्ट हो जाती है और सिर्फ धब्बे के रूप में शेष रह जाता है ,जिसे Corpus Albicanx कहा जाता है।

*मासिक धर्म या रजोधर्म (Menstrual Cycle)

Female जब यौवनावस्था प्राप्त कर लेती है,तब महीने के 28 वे या 29 वे दिन उसके प्रजनन अंग(योनि) से Blood ,Mucous आदि का स्राव होता है जिसे Menstrual Cycle कहा जाता है। यह क्रिया 11 या 12 वर्षों में प्रारंभ हो जाती है उसके बाद एक निश्चित समय पर यह क्रिया बंद हो जाती है।

Female के जीवन में प्रथम बार Menstrual Cycle प्रारंभ होता है ,उसे Menarche(रजोदर्शन) कहा जाता है।

Female जब 45-50 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेती है तो उसमें Menstrual Cycle बंद हो जाता है ,जिसे Menopause(रजोनिवृति) कहा जाता है।

मादा के शरीर में Astrogene/Oestrogen Harmone का स्राव होता है जो द्वितीय लैंगिक परिपक्वता में मदद करती है।

Menstrual Cycle प्रायः मनुष्य ,बन्दर ,कपि आदि प्राणियों में होता है।

यह क्रिया 28 दिनों तक चलती है और जिसमें विभिन्न प्रकार के हार्मोनल परिवर्तन पाए जाते है।

*Menstrual Phase(आर्तव चक्र प्रावस्था)

यह अवस्था 1-5 दिन तक चलता है इस अवस्था में रक्त एवं Mucous प्रजनन अंग के द्वारा शरीर के बाहर निकलता है,ऋतुस्राव चक्र या रजोधर्म कहा जाता है।

*past Menstrual Phase(पश्च आर्तव चक्र प्रावस्था)

यह अवस्था 6-13 दिन तक चलता है। इस अवस्था में Graafian Follicle में वृद्धि होती है। इसे Astrogene Harmone का स्राव होता है। इसके स्राव से Graffian Follicle में परिवर्तन होते है।

*Ovulatory Phase (अण्डोत्सर्ग प्रावस्था)

इस अवस्था में परिपक्क्व Graffian Follicle फट जाते है और Ovary से अंडवाहिनी में पहुँच जाती है। इस क्रिया को Ovulation कहा जाता है। यह क्रिया 14 वे दिन होती है।

*Past Ovulatory Phase (पश्च अण्डोत्सर्ग प्रावस्था)

ये अवस्था 15-28 दिन तक चलती है इस अवस्था में टूटे हुए Follicle के कोशिकाओं में वृद्धि होता। इससे Corpus Luteum का निर्माण होता है। अंत में Ovum के निषेचन न होने पर ये टूट जाते है और रक्त एवं Mucous शरीर से बाहर निकलते है और अगले चक्र में प्रवेश करता है।

*Estrous Cycle या Heat Cycle (मद चक्र)

मनुष्य,बन्दर,कपी आदि स्तनधारियों को छोड़कर अन्य स्तनधारियों में मादा जनन तंत्र में चक्रीय परिवर्तन होते है जिसे Estrous Cycle कहा जाता है।

इस अवस्था में शरीर के प्रजनन अंगों के द्वारा Blood का स्राव नहीं होता है।

*निषेचन (Fertilization)

नर युग्मक शुक्राणु एवं मादा युग्मक अंडाणु के मिलने की क्रिया निषेचन कहलाता है।

मनुष्य में निषेचन की क्रिया अंडवाहिनी में होती में होती है। मनुष्य के शरीर में (2n=46) गुणसूत्र पाया जाता है।

इसमें एक जोड़ा Sex Chromosome(लिंग गुणसूत्र) पाया जाता है।

XX-गुणसूत्र को Female(मादा) एवं XY गुणसूत्र को Male से निरूपित किया जाता है।

मनुष्य के शरीर में (2n=46) गुणसूत्र पाया जाता है। इसमें केवल 1 जोड़ा Sex Chromosome पाया जाता है ,शेष गुणसूत्र लिंग निर्धारण में भाग नहीं लेते है उसे Autosome कहा जाता है।

Male का Y-Chromosome Female के X-Chromosome से संयोग करता है तो XY-Zygote का निर्माण करता है। जिससे Male Child का विकास होता है।

Male का X-Chromosome Female के X-Chromosome से संयोग करता है,जिसके फलस्वरूप 'XX' Female Zygote का निर्माण होता है। इससे Female Child का विकास होता है।

इस प्रकार निषेचन क्रिया के समय ही ये निर्धारित हो जाता है की आने वाले शिशु Male है या Female .

मनुष्य में आंतरिक निषेचन की क्रिया होती है।

निषेचन की क्रिया अंडवाहिनी में होती है। निषेचन क्रिया के फलस्वरूप Zygote  निर्माण होता है।

Zygote में Chromosome की संख्या 46 होती है। Zygote में समसूत्री विभाजन के द्वारा विखंडन की क्रिया होती है। जिसके फलस्वरूप 2-4 कोशिका ,4-8Cell ,8-16 cell ,16-32 cell के समूह का निर्माण करता है।

Cell के समूह को भ्रूण कहा जाता है।

*भ्रूण का विकास(Embryonic Development)

निषेचन के बाद Zygote में समसूत्री विभाजन के द्वारा विखंडन की क्रिया प्रारंभ हो जाती है।

निषेचन के लगभग 8 घंटे बाद Embryo का निर्माण हो जाता है। Embryo गर्भाशय में एक निश्चित समय में एक नवजात शिशु का निर्माण करता है।

निषेचन से बच्चे का जन्म के बिच के समय अवधि गर्भकाल कहलाता है। इसमें निम्न अवस्थाएँ पाये जाते है।

i. Cleavage or Segmentation

ii. Morula

iii. Implantation

i. Cleavage or Segmentation

निषेचन के फलस्वरूप Zygote में काफी तेजी से समसूत्री विभाजन होता है ,जिसे Cleavage कहा जाता है।

Zygote में प्रायः अनुद्धैर्य ,अनुप्रस्थ विभाजन प्रारंभ होता है। जिसके फलस्वरूप दो कोशिका,चार कोशिका ,आठ कोशिका,सोलह कोशिका का निर्माण हो जाता है।

प्रत्येक बंटे हुए कोशिका को Blastomere(कोरकखंड) कहा जाता है।

इस क्रिया के दौरान DNA का संश्लेषण होता है। ये क्रिया अंडवाहिनी में होती है तथा इस अवस्था को Morula अवस्था कहा जाता है।

ii. Morula

इस अवस्था में दो प्रकार के cell का निर्माण होता है। छोटे-छोटे cell को Micromere एवं बड़े वाले को Megamere कहा जाता है।

Micromere से Trophoblast का निर्माण होता है।

इससे Placenta का निर्माण होता है। Megamere embryo proper का निर्माण  होता है।

Morula धीरे-धीरे गर्भाशय की ओर खिसकने लगता है,साथ ही साथ उसमें विभाजन क्रिया जारी रहती है।

Morula गर्भाशय में एक द्रव्य में तैरने लगता है।

Embryo गेंद के समान रचना का निर्माण कर लेता है जिसे Blastula कहा जाता है।

इसके अंदर एक गुहा का निर्माण हो जाता है,जिसे Blastocoel कहा जाता है।

iii. Implantation

Blastocyst के गर्भाशय के दिवार में जुड़ने की क्रिया Implantation कहलाता है।

Blastocyst गर्भाशय के endometrium में धस जाता है तथा इससे पोषण अवशोषित करने लगता है।

Blastocyst के Trophoblast के बाहर Chorian का निर्माण होने लगता है। इसके साथ ही गर्भाशय के दिवार के बीच Placenta का निर्माण हो जाता है।

Blastula के कोशिकाएँ आपस में सजने लगता है,जिसे Gastrulation कहते है।

इस अवस्था में 3-जनन स्तर का निर्माण होता है। जिसे क्रमशः बाह्य स्तर,मध्य स्तर एवं अन्तः स्तर कहा जाता है।

 

*गर्भ जाँच(Pregnancy Test)

मादा के गर्भ धारण करने के लगभग दो सप्ताह के बाद उसके Urine में H.C.G Harmone का निर्माण होता है।

इस Harmaone का Urine में उपस्थित होना गर्भ का लक्षण होता है।

*Parturation or Child birth (प्रसव)

मादा के गर्भाशय में निषेचन में बच्चे का जन्म के समय तक की अवधि को गर्भकाल कहा जाता है।

गर्भकाल के पश्चात मादा गर्भाशय से एक पूर्ण विकसित शिशु को शरीर से बाहर निकलने की क्रिया प्रसव कहलाता है।

मनुष्य में औसत गर्भकाल 40 सप्ताह या 270-280 दिन या 9 महीना का होता है।

इस क्रिया के दौरान रिलैक्सी हार्मोन का स्राव होता है ,जो बच्चे के जन्म के समय ये असानी से बाहर आ जाता है।

*Lactation (दुग्ध स्राव)

गर्भा अवस्था  दौरान estrogen,progestoestron harmone  स्राव होता है।

इसके स्राव से दुग्ध ग्रंथियों में वृद्धि होती है। प्रसव के बाद Prolactin का स्राव होता है। जो दुग्ध ग्रंथियों से Milk का स्राव करता है।

प्रसव के बाद प्रथम बार दूध का स्राव होता है ,जिसे Colstrum कहा जाता है। इसमें प्रचुर मात्रा में Antibody पाया जाता ही जो बच्चे में रोग प्रतिरोध क्षमता का विकाश करता है।

*जुड़वाँ (Twins)

सामान्य अवस्था में मनुष्य के गर्भाशय में केवल एक ही बच्चे का विकास होता है,परन्तु कभी-कभी एक ही गर्भाशय में दो बच्चे का विकास होता है जिसे जुड़वाँ कहा जाता है।

ये निम्न प्रकार के होते है :-

i. समान्य (Dizygotic)

ii. अभिन्न (Monozygotic)

i. समान्य (Dizygotic)

जब मादा के शरीर में अंडाशय से दो अंडाणु बाहर निकलते है एवं दो अलग-अलग शुक्राणु के द्वारा निषेचन की क्रिया करते है और दो Zygote का निर्माण कर लेता है,जिसे Dizygotic कहा जाता है।

इस अवस्था में एक Male या दूसरा Female बच्चे का विकास होता है।

ii. अभिन्न (Monozygotic)

जब एक ही Zygote किसी कारण से विभाजित कर दो Zygote का निर्माण कर लेता है। इससे उत्पन्न बच्चे दोनों आपस में समान होते है।

*तीन जनन स्तर(Three Germinal Layer's)

1. Ectoderm(बाह्य स्तर)

2. Mesoderm (मध्यस्तर)

3. Endoderm(अन्तः स्तर)

 

1. Ectoderm(बाह्य स्तर)

i. इसके द्वारा बाह्य त्वचा तथा इससे उत्पन बाल ,नाख़ून आदि का निर्माण होता है।

ii. इसके द्वारा तंत्रिका तंत्र का निर्माण होता है।

iii. इसके द्वारा अन्तः कर्ण का निर्माण होता है।

iv. इसके द्वारा दाँत का Enamel का निर्माण होता है।

v. इसके द्वारा लार ग्रंथि ,अश्रु ग्रंथि का निर्माण होता है।

2. Mesoderm (मध्यस्तर)

i. इसके द्वारा अन्तः त्वचा का निर्माण होता है।

ii. इसके द्वारा मांसपेशियाँ संयोजी उत्तक का निर्माण होता है।

iii. इसके द्वारा वृक्क का निर्माण होता है।

iv. इसके द्वारा ह्रदय ,रक्त वाहिनियाँ आदि का निर्माण होता है।

v. इसके द्वारा दाँत का Dentine स्तर का निर्माण होता है।

3. Endoderm(अन्तः स्तर)

i. इसके द्वारा यकृत ,अग्नाशय आदि का निर्माण होता है।

ii. इसके द्वारा अमाशय ग्रंथि का निर्माण होता है।

iii. इसके द्वारा मूत्राशय के आंतरिक भाग का निर्माण होता है।

iv. इसके द्वारा Germcells का निर्माण होता है।

v. इसके द्वारा स्वाश नली ,फेफड़ा आदि का निर्माण होता है।

*Copper-T क्या है ?

महिलाओं को अनचाहे गर्भ  मुक्ति देने के लिए Copper-T का इस्तेमाल किया जाता है। गर्भनिरोध के उपकरणों में Copper-T को भी शामिल किया जाता है।

गर्भनिरोधक के इस विकल्प को मुख्यतः पहले माँ बन चुकी  महिलाओं के लिए उपयोगी बताया जाता है।

Copper-T एक छोटा सा उपकरण होता है,जो कॉपर और प्लास्टिक से बना होता है। इस उपकरण को महिलाओं के गर्भाशय में लगाया जाता है। जिसकी मदद से महिलाएँ गर्भधारण नहीं कर पाती है। लेकिन जब भी महिलाओं को गर्भधारण की जरुरत महसूस होती है ,तो वह Copper-T को आसानी से निकाल गर्भधारण कर सकती है।                                                                                                                       

*औसत गर्भकाल

प्राणी का नाम    गर्भकाल(दिनों में )

चूहा                            22

खरगोश                       30

बिल्ली                         65

कुत्ता                           65

बकरी                           150

भेड़                             150

गाय                           270-280

भैंस                              310

गदहा                           365

मनुष्य                         270-280

चिम्पैंजी                      250

जिराफ                       420

हाथी                           642

घोडा                            336

शेर                              180

सूअर                           113

बाघ                            109

भालू                           215


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ