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Ex:-2 कृषि (Agriculture)

 आज हम इस नोट्स(Notes) में Class 10th  के भूगोल(Geography) विषय का Chapter 2 कृषि के बारे में जानेंगे और इस Notes में कमजोर से कमजोर बच्चो को ध्यान में रख कर बनाया गया है साथ ही साथ बहुत ही सरल भाषा का उपयोग किया गया है। इस Class10 notes में सभी Topic को शामिल किया गया   जिससे की बच्चे अपने किताब के सभी प्रश्नों को आसानी से हल कर सके। Agriculture in hindi |Class 10th Social Science |Class 10th geography |Class 10th geography chapter 2|NCERT Notes Class 10 in hindi |Bihar Board Notes in hindi |Bihar Board social science in hindi |Class 10 pdf notes |Class10th geography chapter 2 notes in hindi |Career Crafters| class10 sst notes in hindi | class10 social  science ncert book pdf | class10 social science solution | class 10 social science important questions |Class10th notes in hindi |

कृषि

भारत कृषि की दृष्टि से एक संपन्न राष्ट्र है। यहाँ विविध प्रकार की उपजाऊ मिट्टी पायी जाती है। भारत की कृषि सपंदा को यह प्रकृति का अनूठा उपहार है।

*शुष्क कृषि (Dry Agriculture):-वर्षा की सहायता से विकसित कृषि प्रणाली को शुष्क कृषि कहते है।

*भारत में कृषि का महत्व कई कारणों से है :-

i.यह देश के आर्थिक जीवन का प्राण है,भारत में लगभग 2/3 लोगों की जीविका कृषि पर आधारित है।

ii.यहाँ की विशाल जनसँख्या के लिए भोजन कृषि से ही प्राप्त होता है।

iii.कई फसलों में भारत को विश्व में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

iv.चाय, गन्ना ,मोटे अनाज एवं कुछ तिलहनों के उत्पादन में भारत विश्व में अग्रणी है।

v.राष्ट्रीय आय में भारतीय कृषि का मुख्य योगदान है ,देश की 24% आय कृषि से प्राप्त होती है।

कृषि का मुख्य उद्देश्य भोजन प्रदान करना ,उद्योग को कच्चा माल उपलब्ध कराना तथा कृषि उपजों के निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त करना है।

*भारत में कृषि भूमि उपयोग :-कृषि पर आश्रित लोगों के लिए भूमि अत्यंत ही महत्वपूर्ण संसाधन है ,क्योकि आज पूरी तरह भूमि पर निर्भर है। फसल के उत्पादन में भूमि की गुणवत्ता का भी व्यापक महत्व है।

कृषि योग्य भूमि में चार तरह की भूमि सम्मलित की जाती है :-

1.शुद्ध बोया गया क्षेत्र

2.चालू परती भूमि

3.अन्य परती

4.कृषि योग्य व्यर्थ भूमि

*शस्य गहनता :-एक ही वर्ष में एक ही भूमि में एक से अधिक फसलों को उगा कर कुल उत्पादन में वृद्धि करना शस्य गहनता कहलाता है।

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शस्य गहनता को प्रभावित करने वाले कारक :-

i.सिंचाई

ii.उर्वरक

iii.उन्नत बीज

iv.यंत्रीकरण

v.कीटनाशक

vi.कृषि उत्पादों का उचित मूल्य

*वर्षा पोषित कृषि :-जब फसल केवल वर्षा द्वारा प्राप्त नमी के आधार पर पैदा की जाती है तब इसे वर्षा पोषित कृषि कहते है।

 यह कृषि दो प्रकार की होती है :-

1.शुष्क भूमि कृषि :-75 cm से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में होने वाले कृषि को शुष्क भूमि कृषि कहते है।

2.आर्द्र भूमि कृषि :-75 cm से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में होने वाले कृषि को आर्द्र भूमि कृषि कहते है।

Note:-भारतीय कृषि कुल 38.67% भूमि पर वर्षाधीन कृषि होती है। वर्षाधीन फसल के निम्न उदाहरण है :-दाल ,तिलहन ,मोटे अनाज ,कपास

*शुष्क भूमि की विशेषताएँ:-

i.वर्षा जल को संरक्षित करने की विधियों का प्रयोग किया जाता है,ताकि शुष्क समय में उसका उपयोग किया जा सके।

ii.जरूरत से अधिक जल को भूमिगत जल के पुनःभरण के लिए संरक्षित रखा जाता है।

iii.शुष्कता के कारण मिट्टी की ऊपरी परत का वायु द्वारा कटाव होता है।

iv.शुष्कता के कारण यहाँ की मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा बहुत कम होती है।

v.शुष्क भूमि कृषि सामान्यतः गरीब किसान करते है,जिनके पास उन्नत कृषि करने के लिए पूंजी एवं आवश्यक साधन का अभाव रहता है।

vi.कृषि के द्वारा यहाँ आय कम प्राप्त होती है।

गरीब किसानों के उत्थान के लिए सरकार ने कई योजनाएँ बनाई है :-

i.शीघ्र तैयार होने वाली फसलों का बीज तैयार किया जा रहा है।

ii.कृषि की नई तकनीक का विकास।

iii.जल संग्रहण की तकनीकों का प्रचार प्रसार।

iv.कुटीर उद्योग एवं लघु उद्योगों को विकसित किया जा रहा है।

v.पशुपालन के कृषि के पूरक अंग के रूप में विकसित किया जा रहा है।


*कृषि के प्रकार

1.प्रारंभिक जीविका कृषि :-यह कृषि अति प्राचीन काल से की जाने वाली कृषि का तरीका है ,इसमें परंपरागत तरीके से भूमि पर खेती की जाती है। और कखेती के औजार भी काफी परंपरागत होते है।

जैसे :-कुदाल ,खुरपी ,लकड़ी का हल

इससे जमीन की जुताई गहराई से नहीं हो पाती है।

इसमें जैसे-तैसे बीज बो दिया जाता है जिसके कारण उपज कम होती है।

देश के विभिन्न भागों में इस कृषि को विभिन्न नामों से जाना जाता है।

जैसे :-उत्तरपूर्वी राज्य -असम ,मेघालय ,मिजोरम ,नागालैंड में इसे "झूम" मणिपुर में "पामलू" तथा छत्तीसगढ़ के बक्सर जिले तथा अंडमान निकोबार द्वीप समूह में इसे "दीपा" कहा जाता है।

2.गहन जीविका कृषि :-यह कृषि देश के अधिकांश हिस्से में की जाती है ,जहाँ पर जनसँख्या का दबाब अधिक है वहाँ इस प्रकार की कृषि की जाती है। इसमें श्रम की अधिकता होती है साथ ही साथ परंपरागत कृषि कौशल का भी इसमें भरपूर उपयोग किया जाता है।

इस कृषि में प्रधानतः धान की खेती होती है।

इसमें किसानों के पास व्यापार के लिए बहुत कम उत्पादन रहता है ,इसीलिए इसे जीविका निर्वाहक कृषि कहते है।

3.व्यापारिक /वाणिज्यिक कृषि :-इसमें फसलें व्यापार के लिए उपजाई जाती है। इस कृषि में अधिक पूंजी ,आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। जिसमे किसान अपनी लगाई गई पूंजी से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते है।

आधुनिक कृषि तकनीक में अधिक पैदावार वाले बीज ,रासायनिक खाद ,सिंचाई ,रासायनिक कीटनाशक आदि का उपयोग किया जाता है।

इस कृषि को भारत में हरित क्रांति के फलस्वरूप व्यापक रूप से पंजाब एवं हरियाणा में अपनाया गया है।

इसमें मुख्य रूप से गेंहूँ की खेती की जाती है।

रोपण कृषि भी एक प्रकार की व्यापारिक कृषि है।

भारत में रोपण फसलें चाय ,कॉफी ,रबड़ ,केला,गन्ना आदि है।

*फसल प्रारूप

यहाँ ऋतू संबंधित तीन प्रकार के फसल समूह को हम उपजाते है।

1.रबी फसल :-रबी फसल को जाड़े के महीने में अक्टूबर से दिसंबर में मध्य बोया जाता है और ग्रीष्म ऋतू में अप्रैल से जून के मध्य काटा जाता है।

जैसे :-गेंहूँ ,चना ,मटर ,मसूर ,जौ ,सरसों आदि

रबी फसलों के खेती में देश के उत्तर पश्चिमी राज्य पंजाब ,हरियाणा ,उत्तर प्रदेश इसके विशेष राज्य हैं।

2.खरीफ फसल :-खरीफ फसल वर्षा ऋतू में बोई जाती है और सितंबर-अक्टूबर में काट ली जाती है।

जैसे :-बाजरा ,मकई ,सोयाबीन ,कपास ,जुट आदि

भारत में जहाँ अधिक वर्षा होती है वहाँ धान की तीन फसलें उपजाई जाती है -औस ,अमन और बोरो

3.जायद /गरमा फसल :-खरीफ और रबी फसल के बीच ग्रीष्म ऋतू में जो फसल लगाई जाती है उसे जायद फसल कहते है।

जैसे :-धान ,मकई ,खीरा ,सब्जियाँ,ककड़ी ,तरबूज

Note:-100 cm से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल जबकि 100 cm से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेंहूँ प्रमुख फसल है।

*मुख्य फसलें :-भारत में विभिन्न फसलें उपजाई जाती है ,इनमे प्रमुख धान ,गेँहू ,मकई ,दलहन ,तिलहन ,पेय फसल ,रेशे की फसल उपजाई जाती है।

चावल

चावल भारत का सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। यहाँ की अधिकतर जनसंख्या का प्रमुख भोजन चावल है। भारत विश्व का लगभग 22% चावल उत्पादन करता है। 

चावल के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ :-

i.इसकी खेती के लिए 24C  से 27C तापमान की जरुरत होती है।

ii.125 से 200 cm वर्षा की आवश्यकता होती है।

iii.दोमट मिट्टी तथा अत्यंत उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के साथ-साथ सस्ते पर्याप्त कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है।

iv.भूमि समतल होना आवश्यक है। कहीं-कहीं पहाड़ी ढलानों पर भी इसकी खेती सीढ़ीदार ढाल बनाकर की जाती है।

उत्पादन तथा वितरण :-

भारत में चावल की खेती अधिकांश जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र में तथा डेल्टाई एवं तटीय भागों में की जाती है। यह देश के विस्तृत भागों में उपजाया जाता है। पश्चिम बंगाल ,बिहार ,उत्तर प्रदेश ,आंध्रप्रदेश ,उड़ीसा ,छत्तीसगढ़ ,असम ,केरल ,तमिलनाडु आदि राज्यों में मुख्य रूप से चावल का उत्पादन होता है।

पश्चिम बंगाल भारत का सबसे बड़ा चावल उत्पादक राज्य है।

गेहूँ

गेहूँ भारत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भारत विश्व का दूसरा बड़ा उत्पादक है जो विश्व का लगभग 10% गेहूँ उत्पादन करता है।

गेहूँ  के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ :-

i.यह जाड़े की ऋतु में उगाया जाता है।

ii.इसे उगाने के लिए समान रूप से 50-75 cm वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।

iii.100 cm से अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में इसकी खेती नहीं की जा सकती।

iv.सिंचाई की सहायता से गेहूँ 20 cm  वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है।

उत्पादन तथा वितरण :-

भारत में कुल गेहूँ उत्पादन का 2/3 हिस्सा पंजाब ,हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्राप्त किया जाता है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक राज्य है जहाँ भारत का लगभग 1/3 गेहूँ पैदा किया जाता है। मध्यप्रदेश के मालवा के पठार तथा महाराष्ट्र में भी गेहूँ की कृषि बड़े क्षेत्र पर की जाती है।

*हरित क्रांति :-आधुनिक एवं वैज्ञानिक तकनीकों के द्वारा कृषि की उपज में क्रांतिकरी परिवर्तन हुआ है ,इसे ही हरित क्रांति कहते है। भारतीय हरित क्रांति का जनक डॉ० एम० एस० स्वामीनाथन को कहा जाता है।

1960-70 के दशक में हरित क्रांति हुई,जिसमे गेहूँ के पैदावार में अप्रत्याशिक वृद्धि हुई। इस क्रांति के अंतर्गत संकर किस्म का उन्नत बीज ,रासायनिक खाद ,सिंचाई ,कीटनाशक आदि का प्रयोग कर खाद्य उत्पादन में वृद्धि की गई है तथा खाद्य सुरक्षा में यह मील का पत्थर साबित हुई है।


चाय

चाय रोपण कृषि की फसल है। इसमें एक बार बागान लगाने के बाद कई वर्षों तक इससे उत्पादन किया जाता है। यह सदाबहार झाड़ी होती है ,जिसकी पतियों को सूखा कर चाय बनाई जाती है। इसमें थीन नामक एक पदार्थ होता है जिसके कारण इसे पिने से ताजगी महसूस होती है।

चाय के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ :-

i.चाय की खेती के लिए 25C से 30C तापमान की आवश्यकता होती है। यह छाया पसंद पौधा है।

अतः बीच-बीच में पेड़ लगाना आवश्यक होता है।

ii.वार्षिक वर्षा 200 cm से 250 cm चाय की खेती के लिए उपयुक्त है।

iii.ढलुवाँ जमीन आवश्यक है ताकि पानी का जमाव जड़ों के पास नहीं हो सके।

iv.पत्तियों के विकास के लिए आद्रता समान रूप से सालोंभर वितरित होनी चाहिए,सुबह का कुहासा एवं प्रतिदिन की वर्षा पतियों की वृद्धि के लिए अत्यंत सहायक है।

v.नदियों के द्वारा लायी गयी उपजाऊ मिट्टी चाय की खेती के लिए उपयुक्त है।

vi.सस्ती श्रम शक्ति की आवश्यकता होती है.पत्तियाँ हाथ से तोड़े जाते है और इसके लिए अत्यधिक श्रमिकों की जरुरत होती है।

उत्पादन तथा वितरण :-

भारत में उत्तर-पूर्वी राज्य ,नीलगिरि पर्वतीय क्षेत्र ,उत्तर पश्चिमी हिमालय क्षेत्र तथा दक्षिण भारत में केरल ,तामिलनाडु ,कर्नाटक आदि प्रमुख चाय उत्पादक क्षेत्र है।

यह भारत की एक महत्वपूर्ण पेय फसल है।

इस फसल के उत्पादन में भारत विश्व में दूसरा है तथा खपत में यह विश्व का सबसे बड़ा देश है।

*मोटे अनाज(Millets):-बाजरा ,ज्वार और रागी देश के प्रमुख मोटे अनाज है। इनमें प्रचुर मात्रा में कई पोषक तत्व पाए जाते है। जैसे रागी में प्रचुर मात्रा में लोहा ,कैल्सियम ,सूक्ष्म पोषक और भूसी मिलती है। 

*ज्वार :-भारत में चावल और गेहूँ के बाद ज्वार सबसे प्रमुख खाद्य फसल है। इसे उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ चावल और गेहूँ की खेती नहीं की जा सकती है। यह वर्षा पर निर्भर कृषि है। इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है।

*बाजरा :-निर्धन लोगों के लिए एवं पशुओं का यह प्रमुख आहार है। यह बलुआ और उथली काली मिट्टी पर अधिकाशंतः उगाया जाता है। बाजरा का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य गुजरात ,राजस्थान ,उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र है।

*रागी :-यह शुष्क प्रदेश की फसल है।यह लाल ,काली ,दोमट मिट्टी पर अच्छी तरह उगाया जाता है। कर्नाटक इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है।

*मकई :-यह एक महत्वपूर्ण मोटा अनाज है जो मनुष्य के भोजन एवं पशुओं के चारा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसमें ग्लूकोज तथा मंड होता है। यह एक खरीफ फसल है तथा इसे 75cm वर्षा की आवश्यकता होती है। कर्नाटक ,उत्तरप्रदेश ,बिहार ,मध्यप्रदेश जैसे राज्य मकई के मुख्य उत्पादक राज्य है।

*दालें :-भारत की अधिकांश जनसंख्या शाकाहारी है और हमारे भोजन में दाल प्रोटीन का स्रोत है।  चना ,मूँग ,मसूर ,मटर ,भारत की मुख्य दलहनी फसलें है। इसकी 90% तक खेती शुष्क कृषि तकनीक के अंतर्गत की जाती है।

दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए राष्ट्रिय दाल विकास कार्यक्रम भी 1986-1987 में शुरू किया गया।

अरहर को छोड़कर बाकी अन्य दालें वायु से नाइट्रोजन ले कर भूमि को उर्वर बनाती है।

*गन्ना :-यह बाँस की प्रजाति का एक पौधा है जिससे रस निकलता है और इससे गुड़ तथा चीनी तैयार किया जाता है।

भारत को गन्ना की जन्मभूमि कहा जाता है।

यह 21C से 27C तापमान और 75cm से 100cm वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है।

यह अनेक प्रकार की मिट्टी में उगाया जाता है।

*तिलहन :-भारत विश्व का सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है।देश के कुल कृषि भूमि के 12% पर कई प्रकार की तिलहन फसलें उपजाई जाती है।इनसे निकाले गए तेल हमारे भोजन का मुख्य अंग है।

जैसे :-सरसों ,सोयाबीन ,सूरजमुखी ,नारियल ,मूंगफली आदि

*मूँगफली:-एक खरीफ फसल है। भारत विश्व में मूंगफली का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है।

भारत में कुल तिलहनो का आधा उत्पादन मूंगफली से ही प्राप्त  होता है।

गुजरात इसके उत्पादन में भारत में सर्वप्रथम है।

कॉफी

चाय की तरह कॉफी भी एक पेय पदार्थ है।यह एक प्रकार की झाड़ी पर लगे हुए फल के बीजों द्वारा प्राप्त किया जाता है।

भारत में लगभग सभी कॉफी दक्षिणी भारत में उगाया जाता है।

कर्नाटक भारत का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है ,यहाँ भारत का 70% कॉफी का उत्पादन किया जाता है।

कॉफी की तीन प्रमुख किस्में है :-

i.अरेबिका

ii.लिबेरिका

iii.रोबस्ता

*बागबानी फसल

:-जलवायु की विविधता के कारण भारत में अनेक किस्म की बागबानी फसलें भी उपजाई जाती है।

जैसे :-फल ,सब्जियाँ ,मसाले आदि

आम के उत्पादक में भारत विश्व में अग्रणी है,और साथ ही साथ अनगिनत किस्म के आमों का उत्पादन होता है।

बागबानी फसलों में काजू ,काली मिर्च एवं नारियल भी महत्वपूर्ण है।

भारत विश्व में काजू का सबसे बड़ा निर्यातक देश है।

*अखाद्य फसलें

*रबर :-भारत में रबर की बगानी कृषि 1880 में ट्रावनकोर और मालाबार में प्रारंभ हुआ ,पर व्यवसायिक उत्पादन 1902 में आरंभ हुआ था।

इसके उत्पादन के लिए अधिक तापमान और आद्रता की आवश्यकता होती है।

*रेशेदार फसलें

कपास ,जुट ,सन और प्राकृतिक रेशम भारत के चार प्रमुख फसलें है। जिनमे से तीन फसलें मिट्टी में उगायी जाती है और प्राकृतिक रेशम,रेशम के कीड़े के कोकून से प्राप्त होता है।

रेशम का कीड़ा शहतूत के पतों को खा कर बड़ा होता है।

*कपास :-कपास का मूल स्थान भारत को माना जाता है। कपास,सूती वस्र उद्योग के लिए कच्चा माल प्रदान करता है। यह एक खरीफ फसल है। कपास के पौधों को बढ़ने में तेज और चमकीली धूप सहायता देती है ,और इसे 210 दिन पाला रहित मौसम की आवश्यकता होती है। लावा निर्मित काली मिट्टी भारत में कपास उत्पादन  में बहुत उपयुक्त है।

गुजरात ,पंजाब ,हरियाणा ,महाराष्ट्र आदि राज्य कपास के मुख्य उत्पादक राज्य हैं।

*जूट :-जूट को सुनहरा रेशा(Golden Fibre) भी कहते है।

*प्रौद्योगिकीय और संस्थागत सुधार

भारत मर कृषि हजारों वर्षो से की जा रही है। लेकिन परपंरागत तरीके तथा संस्थागत व्यवस्था में समय के साथ परिवर्तन नहीं होने के कारण कृषि में काफी पिछड़ापन पाया जाता है। भारत में अधिकांश कृषि मॉनसून पर निर्भर करती है और सिंचाई के साधनों का बहुत सिमित विकास हुआ है। इसमें तकनीकी एवं संस्थागत सुधार लाने की अत्यंत आवश्यकता है ,क्योकि इसके बिना कृषि में सुधार लाना अत्यंत कठिन है।

1960-1970 के दशक में कृषि में सुधार के लिए एक विशेष पैकेज भी लायी गयी ,इसी पैकेज से गेँहु की कृषि में हरित क्रांति की शुरुआत हुई।

इसी दौरान स्वेत क्रांति भी लाई गई ,जिसके अंतर्गत दूध उत्पादन में वृद्धि हुई।

1980 के दशक में कृषि प्रदेश योजना (Agro-Climatic Planning) की शुरुआत हुई।

भारत में विश्व का सबसे अधिक पशुधन है ,यहाँ विश्व का 57% भैंस तथा विश्व का 14% गाय की जनसंख्या रहती है।

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