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 Class 10th civics notes in hindi

लोकतंत्र में प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष

लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ऐसी आदर्श व्यवस्था है जिसके अंतर्गत समाज में रहनेवाले विभिन्न व्यक्ति के पारस्परिक हितों में टकराव चलता रहता है।

*जनसंघर्ष या आंदोलन :-कभी-कभी लोग बिना संगठन बनाए ही अपनी माँगों के लिए एकजुट होने का निर्णय करते है,ऐसे समूहों को जनसंघर्ष या आंदोलन कहा जाता है।

पुरे विश्व में लोकतंत्र का विकास प्रतिस्पर्धा और जनसंघर्ष के चलते हुआ है।

जब सत्ताधारियों और सत्ता में हिस्सेदारी चाहनेवालों के बीच संघर्ष होता है तब वह लोकतंत्र की निर्णायक घड़ी कहलाती है।

लोकतांत्रिक संघर्ष का समाधान जनता की व्यापक लामबंदी के सहारे संभव है।

लोकतांत्रिक देशों में जन-संघर्ष और प्रतिस्पर्धा का आधार राजनीतिक संगठन होते है।

लोकतंत्र को मजबूत बनाने एवं उसे और सुदृढ़ करने में जनसंघर्षों की अहम् भूमिका होती है।

15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश दासता से मुक्त होकर भारत ने 26 जनवरी 1950 को अपने गणतांत्रिक संविधान को अंगीकार किया तब से वह लोकतंत्र की आधारशिला दिनों-दिनों सुदृढ़ कर रहा है।

लोकतंत्र जनसंघर्षों के द्वारा विकसित होता है।

जनसंघर्ष से राजनीतिक संगठनों आदि का विकास होता है।

ये राजनितिक संगठन जन भागीदारी के द्वारा जन समस्याओं को सुलझाने में सहायक होते है।

ये राजनितिक संगठन राजनीतिक दल ,दबाब समूह और आंदोलनकारी समूह के रूप में जाने जाते है।

*बिहार का छात्र आंदोलन :-

बिहार के महान धरती पुत्र जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में जो छात्र आंदोलन किया गया ,इसके निम्नलिखित कारण है जो इस प्रकार है :-

1. कांग्रेस तथा इंदिरा गाँधी के शासन काल में व्यापत भ्रष्टाचार

2. बढ़ती हुई महंगाई

3. भुखमरी एवं बेरोजगारी

4. तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की प्रशासनिक व्यवस्था की कमजोरी

जयप्रकाश नारायण की 'संपूर्ण क्रांतिका उदेश्य भारत में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करना था।

जयप्रकाश नारायण ने 1975 में दिल्ली में आयोजित संसद मार्च का नेतृत्व किया।

12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक निर्णय देकर इंदिरा गाँधी के निर्वाचन  अवैधानिक करार दिया। इस निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया की कानूनन इंदिरा गाँधी सांसद नहीं रही।

जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा गाँधी से इस्तीफा की माँग करते हुए राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह की घोषणा की।

इंदिरा गाँधी ने इस आंदोलन को अपने विरुद्ध एक षड्यंत्र मानते हुए 25 जून 1975 को आपातकाल की उद्द्घोषणा करते हुए जयप्रकाश नारायण सहित प्रायः सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में दाल दिया।

18 महीने के आपातकाल के बाद जनवरी 1977 में निर्वाचन की घोषणा होते ही सभी राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों से रिहा कर दिया गया।

1977 के चुनाव के मौके पर विपक्षी दलों ने जनता पार्टी नाम से जिस राजनीतिक दल का गठन किया था ,उसे लोकसभा में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त हुई।

1977 में लोकसभा के लिए हुए निर्वाचनों में जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिली थी। इंदिरा गाँधी स्वयं रायबरेली और उनके पुत्र संजय गाँधी अमेठी से चुनाव में पराजित हो गये।

*चिपको आंदोलन

चिपको आंदोलन का मुख्य उद्देश्य कृषि उपकरण बनाने हेतु अंगु के कुछ वृक्षों की प्राप्ति की प्रार्थना पर सरकार द्वारा ध्यान नहीं देना,उल्टे उसे व्यावसायिक कार्य हेतु नीलाम कर देना। इस कारण किसानों के इस आंदोलन का प्रारंभ उत्तराखंड के कुछ गाँवों से हुआ था जो बाद में पुरे राज्य में फ़ैल गया और किसी भी पेड़ को काटने से रोका जाने लगा।

चिपको आंदोलन में महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई।

*दलित पैंथर्स

दलित पैंथर्स एक सामाजिक संगठन था। जिसका स्थापना 1972 में महाराष्ट्र के दलित युवाओं के द्वारा किया गया था। महाराष्ट्र में दलितों के साथ भेद-भाव तथा छुया-छूत व्यवहार का भावना रखा जाता था। छोटी-मोटी जातिगत प्रतिष्ठा को लेकर इनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था। इसी दुर्व्यवहार एवं अत्याचार से लड़ने के लिए महाराष्ट्र के दलित युवाओं ने एक सामाजिक संगठन के रूप में दलित पैंथर्स का गठन किया गया था।

*भारतीय किसान यूनियन

भारतीय किसान यूनियन,किसानों के हित में आवाज उठाने वाली एक समाजिक संगठन था। इसके नेता महेंद्र सिंह टिकैत थे।

भारतीय किसान यूनियन की मुख्य मांगे निम्नलिखित थी:-

i. गन्ने तथा गेंहू की उचित मूल्य की माँग।

ii. किसानों के लिए पेंशन का व्यवस्था करना।

iii. बिजली की दर की कम करना।

iv. किसानों का कर्ज माफ़ करना।

v. कृषि उत्पादों को एक राज्य से दूसरे राज्य लाने या ले जाने पर लगी पाबंदी को हटाने की मांग।

*ताड़ी-विरोधी आंदोलन

ताड़ी विरोधी आंदोलन आंध्र प्रदेश की महिलाओं द्वारा चलाया गया। ग्रामीण महिलाएं पुरषों द्वारा ताड़ी सेवन को रोककर घर में खुशहाली लाना चाहती थी। पुरुष जो कमाते थे,वे सारी कमाई ताड़ी पर खर्च कर देते थे। कभी-कभी वे नशे के कारण काम पर भी नहीं जाया करते थे। इससे घरों की हालत बिगड़ने लगी। बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ाघर में खाने के लिए लालें पड़ने लगे। तब महिलाओं ने ताड़ी और शराब का विरोध करना प्रारंभ किया। यह आंदोलन धीरे-धीरे पुरे प्रदेश में फ़ैल गया।  

*नर्मदा बचाओ आंदोलन

नर्मदा बचाओ आंदोलन का उदेश्य था की थोड़े से लोगों के लाभ के लिए बहुतों को न उजाड़ा जाये। बाद में,आंदोलन ने बड़े बांधों के निर्माण का खुल्लम-खुल्ला विरोध शुरू कर दिया। 2003 में स्वीकृत राष्ट्रीय पुर्नवास नीति नर्मदा बचाओ जैसे आंदोलन की ही उपलब्धि थी। नर्मदा बचाओ आंदोलन मेधा पाटेकर के नेतृत्व में हुआ।

*सुचना के अधिकार का आंदोलन

वर्षों के संघर्ष के बाद जून 2005 में भारत में सुचना के अधिकार कानून लागु किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी दस्तवेजों को सार्वजनिक करना था। यह कानून लागु होने से आम जनता को अधिकार प्राप्त हुआ। वे कोई सुचना प्राप्त कर सकते है।

              अतः हम कह सकते है की सुचना का अधिकार कानून लोकतंत्र का रखवाला है।

1996 में सुचना के अधिकार को लेकर दिल्ली में राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया।

सुचना के अधिकार की शुरुआत 1990 में राजस्थान के एक अति पिछड़े क्षेत्र भीम तहसील में सर्वप्रथम उठायी गई।

*नेपाल में लोकतांत्रिक आंदोलन :-नेपाल के लोकतांत्रिक आंदोलन का उद्देश्य राजा को अपने आदेशों को वापस लेने के लिए विवश करना था,ये वे आदेश थे जिनके द्वारा राजा ने वहाँ के लोकतंत्र को समाप्त कर दिया था।

23 अप्रैल 2006 के दिन नेपाल में आंदोलनकारियों की संख्या करीब 5 लाख पहुँच गयी थी ,और 24 अप्रैल 2006 को राजा ज्ञानेंद्र ने सर्वदलीय सरकार और एक नयी संविधान सभा के गठन की बात स्वीकार कर ली।

*सप्तदलीय गठबंधन :-नेपाल में लोकतंत्र की स्थापना के लिए वहाँ की संसद के सभी बड़े राजनीतिक दलों ने एक गठबंधन बनाया जिसे सप्तदलीय गठबंधन के नाम से जानते है।

*बोलबिया में जन-संघर्ष :-बोलबिया लैटिन अमेरिका का एक गरीब देश है ,जंहा लोगों ने पानी के कीमत में वृद्धि के कारण जन-संघर्ष किया।

*बांग्लादेश में लोकतंत्र के लिए संघर्ष :-1971 में बांग्लादेश के निर्माण के बाद उसने अपने देश का संविधान बनाकर अपने को धर्मनिरपेक्ष,लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित कर दिया।

1975 में शेख मुजिबुर्हरमान ने वहाँ के संविधान में संसोधन लाकर संसदीय शासन के स्थान पर अध्यक्षीय शासन-प्रणाली को मान्यता दिलायी तथा वहां अवामी लीग पार्टी को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दलों को समाप्त कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप,उनके विरुद्ध तनाव और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी।

*श्रीलंका में लोकतंत्र के लिए संघर्ष :-भारत के दक्षिण में स्थित श्रीलंका दक्षिण एशिया का एक प्रमुख राष्ट्र है। 1948 में इसकी स्वतंत्रता से लेकर अब तक वहाँ लोकतंत्र स्थापित है। लेकिन श्रीलंका एक गंभीर जातीय समस्या का शिकार बना हुआ है।

*राजनीतिक दल :-व्यक्तियों के संगठित समूह को दल कहा जाता है। और जब उस दल का उद्देश्य राजनीतिक क्रियाकलापों से सबंधित होता है तो उसे राजनीतिक दल कहा जाता है।

जैसे :-भाजपा ,कॉंग्रेस ,जदयू ,राजद

*राष्ट्रीय राजनीतिक दल :-वैसा राजनीतिक दल जिसका अस्तित्व पुरे देश में होता है। और जिसका निति एवं कार्यक्रम का निर्धारण राष्ट्रीय स्तर पर होता है वैसे राजनितिक दल को राष्ट्रीय राजनीतिक दल कहते है।

जैसे :-भाजपा ,कॉंग्रेस

राजनितिक दल का उद्देश्य सिर्फ 'सत्ता प्राप्त करनाया सत्ता को प्रभावित करनाहोता है। 

भारत में दलीय व्यवस्था की शुरुआत 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना से मनी जाती है।

विश्व में सर्वप्रथम राजनीतिक दलों की उत्पत्ति ब्रिटेन में हुई। जहां 1688 में हुए गौरवपूर्ण क्रांति के बाद व्हिग(Whig) और टोरी(Tory) नामक दो राजनीतिक दलों की नीवं पड़ी जो बाद में व्हिग उदारदल एवं टोरी अनुदार दल के नाम से जाना गया।

सयुंक्त राज्य अमेरिका में संविधान निर्माण के बाद राजनीतिक दलों की उत्पति हुई। 

*राजनीतिक दल का प्रमुख कार्य

लोकतंत्र शासन व्यवस्था में राजनीतिक दल का अहम् भूमिका होती है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित है :-

i. जनमत का निर्माण करना :-जनमत लोकतंत्र का आधारशिला है। सत्ता प्राप्ति के लिए जनमत को अपना करना चाहता है इसके लिए जन सभाएँ ,रेडियो ,टेलीविजन ,समचार पत्र ,आदि के द्वारा अपने पार्टी को प्रचार करता है।

ii. निति एवं कार्यक्रम तैयार करना :-प्रत्येक राजनीतिक दल अपने-अपने पार्टी के लिए निति एवं कार्यक्रम तैयार करते है इसे निति एवं कार्यक्रम के तहत जनता के बीच जाती है तथा जनता का समर्थन प्राप्त करना चाहती है।

iii. शासन का संचालन करना :-देश का शासन का संचालन करना राजनीतिक दल का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। सत्ता रूढ़ दल देश का शासन चलाते है वही विपक्षी दल सरकार के गलत नीतियों का विरोध करती है।

*लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की आवश्यकता क्यों ?

लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में राजनीतिक दल का अहम् भूमिका होती है। लोकतंत्र रूपी गाड़ी का राजनीतिक दल मशीन का काम करता है। दूसरे शब्दों में जो महत्व शरीर में फेफड़ा का है वही महत्व लोकतंत्र में राजनीतिक दल का है। इसी आधार पर राजनीतिक दल को लोकतंत्र का प्राण कहा जाता है।

                               लोकतंत्र में  राजनीतिक दल के द्वारा ही देश का शासन संचालित किया जाता है। जिस दल को जनता का स्पष्ट बहुमत मिलता है वह सत्ता रूढ़ दल कहलाता है। सत्ता रूढ़ दल ही देश में शासन चलाते है। वही विपक्षी दल सरकार के गलत नीतियों का विरोध करती है तथा सत्ता रूढ़ दल को तानाशाह होने से रोकती है। 

*राजनीतिक दलों का राष्ट्रीय विकास में योगदान

किसी भी देश के राष्ट्रीय विकास में राजनीतिक दल का महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दरअसल राष्ट्रीय विकास के लिए जनता की जागरूक,समाज एवं राज्य में एकता होना आवश्यक है। ये सभी कार्य राजनीतिक दल के द्वारा ही किया जा सकता है। अतः हम कह सकते है की देश के राष्ट्रीय विकास में राजनीतिक दल सहायक होती है।

*राजनीतिक दलों के लिए प्रमुख चुनौतियाँ

राजनीतिक दल के प्रमुख चुनौतियाँ निम्नलिखित है :-

i. जातिवाद

ii. परिवारवाद

iii. राजनीतिक में काले धन एवं अपराधियों का बढ़ता प्रभाव

iv. अवसरवादी गठबंधन

v. राजनीतिक में युवाओं एवं महिलाओं की भागीदारी कम होना

vi. आंतरिक लोकतंत्र की कमी

*राजनीतिक दलों को प्रभावशाली बनाने के उपाय

राजनीतिक दलों को प्रभावशाली बनाने के निम्नलिखित उपाय है :-

i. न्यायपालिका के आदेश का पालन होना चाहिए।

ii. दल बदल कानून लागु होना चाहिए।

iii. राजनीतिक में महिलाओं और युवाओं को उचित भागीदारी होना चाहिए।

iv. राजनीतिक में धन बल का प्रयोग पर रोक लगनी चाहिए।

*परिवारवाद :-परिवारवाद की राजनीति लोकतंत्र को प्रभावित करता है। परंतु आये दिन सभी राजनीतिक पार्टीयाँ परिवारवाद को अपना रहे है। अपने परिवार तथा संगे-सबंधियों को चुनावी मैदान में उतार कर राजनीती लाभ पहुंचाना परिवारवाद कहलाता है।

*दल-बदल :-यदि कोई सांसद या विधायक उस दल से अपना सबंध विच्छेद करता है जिसके टिकट पर वह विधायक में निर्वाचित हुआ है और दूसरे दल में जाता है तो तो इसे दल-बदल कहा जाता है।

*दल-बदल कानून :-विधायकों और सांसदों के दल-बदल को रोकने के लिए संविधान में संशोधन कर कानून बनाया गया है,जिसे दल-बदल कानून कहा जाता है।

*राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय राजनितिक दलों की मान्यता कौन प्रदान करते है और इसके मापदंड क्या है ?

राष्ट्रीय राजनीतिक दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए राजनितिक दलों को लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में या अधिक राज्यों द्वारा कुल डाले गए वैध मतों का प्रतिशत प्राप्त करने के साथ किसी राज्य या राज्य से लोकसभा की कम से कम सीटों पर विजयी होना आवश्यक है या लोकसभा में कम से कम प्रतिशत सीटें अर्थात 11 सीटें जितना आवश्यक जो कम से कम तीन राज्यों से होनी चाहिए। इसी तरह राज्य स्तरीय राजनितिक दल की मान्यता प्राप्त करने के लिए उस दल को लोकसभा के चुनावों में डाले गए वैध मतों का कम से कम प्रतिशत मत प्राप्त करने के साथ-साथ राज्य विधानसभा की कम से कम प्रतिशत या सीटें जीतना आवश्यक है।

*भारत के प्रमुख राजनितिक दल

*भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस :-भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। कॉंग्रेस एक धर्म निरपेक्ष पार्टी है। यह विश्व के पुराने राजनितिक दलों में से एक है। इसने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से 1971 तक और 1980 से 1989 तक देश पर शासन किया।

2004 से सयुंक्त प्रगतिशील गठबंधन(UPA) बनाकर देश पर शासन कर रहा है।

*भारतीय जनता पार्टी :-1980 में भारतीय जनसंघ के स्थान पर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। भारतीय जनता पार्टी के प्रथम अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी को बनाया गया था।

भारतीय जनता पार्टी,राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(NDA) बनाकर 1998 में सत्ता में आई।

*भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी

*भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी

*बहुजन समाज पार्टी

*राष्ट्रवादी कॉंग्रेस पार्टी

*राष्ट्रीय जनता दल

*जनता दल यूनाइटेड

*लोक जनशक्ति पार्टी

*समाजवादी पार्टी

*झारखण्ड मुक्ति मोर्चा

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