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Ex:-4 विधुत धारा


विधुत धारा 

:⇒विधुत का खोज करने वाले थेल्स नामक वैज्ञानिक थे जो पुर्तगाल के मिलेट्स नामक एक नगर का व्यापारिक थे | जो 2500 ई० पूर्व (पहले) विधुत का खोज किया | 
*आवेश(Charge):-किसी चालक पदार्थ का वह गुण जो विधुत बल आरोपित करता है या आरोपित करने की प्रवृति रखता है,उसे आवेश कहा जाता है | 
                    जिसका खोज बेंजामिन फ्रैंकलिन के द्वारा किया गया |  
आवेश को q द्वारा सूचित किया जाता है | आवेश का S.I मात्रक कुलॉम /कुलाम्ब  होता है जिसे प्रायः c द्वारा सूचित किया जाता है | 
*आवेश दो प्रकार के होते है | 
(i)धन आवेश  
(ii)ऋणआवेश   
*आवेश के गुण :-
(i)दो समान आवेशों में विकर्षण या प्रतिकर्षण होता है | 
(ii)दो असमान आवेशों में आकर्षण होता है | 
*आवेशों का स्थनांतरण(Transfer of charge) 
➤इलेक्ट्रान का स्थनांतरण धनावेश से ऋणात्मक की ओर होता है | 
➤जिस वस्तु में इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोट्रॉन की संख्या से अधिक होता है ,वह वस्तु ऋणावेशित होता है | 
➤जिस वस्तु में प्रोट्रॉन की संख्या इलेक्ट्रॉन की संख्या से अधिक हो तो वह वस्तु धनावेशित होता है | 
➤जिस में इलेक्ट्रॉन की संख्या प्रोट्रॉन की संख्या के बराबर होता है वह वस्तु उदासीन होता है | 

कुलॉम का नियम  

 ➠कुलॉम के नियम का खोज करने वाले फ्रांसीसी वैज्ञानिक चार्ल्स अगस्टिन डी कूलम्ब थे ,जो वेस्टइंडीज में अपना जीवन फौजी इंजीनियर  संभाला और वे पूर्ण 1776 ई0 को पेरिस लौटे और उन्होंने एक कमरा ख़रीद कर दो आवेशों के बीच लगने वाले बल के परिणाम को निकालने  के लिए उन्होंने ऐंठन तुला प्रयोग  किया और 1785ई0 को इन्होने कूलम्ब के नियम अर्थात इसे इन्होने व्युत्क्रम वर्ग नियम कहा | 
                                 इस नियम का प्रतिपादन कुलॉमके पहले प्रिस्टले तथा कैबेडिश ने ही कर चुके थे | लेकिन उसमे इन्होने इन दोनों आवेशों के बिच लगने वाले के परिमाण के बारे में नहीं बताया | 
 ➤चार्ल्स अगस्टिन डी कूलम्ब का जन्म 1736 ई० में हुआ और इनकी मृत्यू 1806 ई० में हुआ | 
  ब्रह्माण्ड में स्थित दो आवेशों की बीच लगने वाला बल दोनों आवेशों के परिमाण के गुणनफल का सीधा समानुपाती एवं दोनों आवेशों के बीच की दुरी के वर्ग का व्युत्क्रमानुपाती होती है | 

*आवेश की उत्त्पति का कारण :-
➠आवेश की उत्त्पति का कारण इलेक्ट्रॉन का स्थांतरण है |
➠जिस स्रोत से आवेशों का प्रवाह ऋण से धन की ओर होता है उसे इलेक्ट्रॉनिक धारा कहा जाता है | एवं जिस स्रोत आवेश का प्रभाव धन से ऋण की ओर होता है उस प्रकार के विधुत धारा को कन्वेंशनल धारा कहा जाता है|
*विधुत धारा :-किसी चालक तार से विभवांतर के अधीन आवेशों के सतत प्रवाह को विधुत  धारा कहते है |
         इसे प्रायः 'I' द्वारा सूचित किया जाता है |
➠यदि किसी चालक तार से t समय में Q आवेश का प्रवाह हो तो उससे वाहन वाली धारा
                 I = Q / T
 ➤विधुत धारा का S.I मात्रक एम्पियर होता है ,जिसे प्रायः 'A' द्वारा सूचित किया जाता है |
*एक एम्पियर :-किसी चालक तार से 1 sec में एक कुलॉम आवेश के प्रवाह को एक एम्पियर कहा जाता है |
             अर्थात,1 एम्पियर =1 कुलॉम /1 सेकेंड 
Q. यदि किसी चालक तार से 3 सेकेण्ड में 3 एम्पियर की विधुत धारा प्रवाहित होती है तो उस चालक से प्रवाहित होने वाली कुल आवेश के मानों की गणना करे|
हल :- Q=?
           t=3 sec  ,I=3A
          I=Q/t
          Q=3*3=9
          Q=9c ans.
*विधुत विभव(Electrical potential) :-इकाई धन आवेश को अनंत से विद्युतीय क्षेत्र के एक बिंदु तक लाने में किये गए कार्य की मात्रा को विधुतीय विभव कहा जाता है |
➤इसका S.I मात्रक वोल्ट होता है |
➤यह एक अदिश राशि है |
➤पृथ्वी का विभव शून्य होता है |
*विधुतीय क्षेत्र(Electric field) :-आवेश के चारो ओर उपस्थित वैसा प्रभाव जिसके कारण अन्य आवेश पर बल कार्य करता है ,विधुतीय क्षेत्र कहलाता है |
➤धन आवेश में विधुत क्षेत्र बहार की ओर एवं ऋण आवेश में विधुत क्षेत्र अन्दर की ओर होता है |
*विभवांतर(Potential difference) :-इकाई धनआवेश की विधुतीय क्षेत्र के एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किये गए कार्य की मात्रा को विभवांतर कहा जाता है |
➤इसका S.I मात्रक volt होता है \
*एक वोल्ट :-किसी चालक तार में एक कुलॉम आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किये गये कार्य की मात्रा एक जुल हो तो उसे एक वोल्ट कहा जाता है
   अर्थात, V=W/q
            1volt=1Joule/1colomb
*एमिटर :-ऐसा विधुतीय यंत्र जो किसी विधुतीय परिपथ में विधुत धारा को मापता है उसे एमिटर कहते है |
➤यह कम प्रतिरोध वाला विधुतीय यंत्र है |
➤यह किसी विधुतीय परिपथ में श्रेणी क्रम में जोड़ा जाता है |

*वाल्टमीटर :-यह एक विधुतीय यंत्र है जो किसी विधुतीय परिपथ में विभवांतर को मापने का कार्य करता है |
➤यह विधुतीय परिपथ में समानांतर क्रम में जोड़ा जाता है | इसका प्रतिरोध उच्च होता है |

*विधुत परिपथ(Electric circuit) :-ऐसी व्यवस्था जिससे विधुत धारा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक होता है ,उसे विधुत परिपथ कहा जाता है |
*विधुत परिपथ दो प्रकार का है |
(i)खुला परिपथ(open circuit) :-ऐसा विधुत परिपथ जिससे विधुत धारा का प्रवाह नहीं होता है उसे खुला विधुत परिपथ कहा जाता है |
(ii)बंद विधुत परिपथ(Closed circuit) :-वैसा विधुत परिपथ जिससे  किसी विधुत धारा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक असानी से हो ,उस प्रकार की व्यवस्था को बंद विधुत परिपथ कहा जाता है |
*प्रतिरोध(Resistance) :-किसी चालक पदार्थ का वह गुण जो चालक में प्रवाहित होने वाली विधुत धारा के मान का विरोध करता है,उसे प्रतिरोध कहते है |
   जिसे प्रायः 'R'द्वारा सूचित किया जाता है |
इसका S.I मात्रक ओम (Ω)होता है | जिसे ग्रीक अक्षर में ओमेगा द्वारा सूचित किया जाता  है |
 अर्थात ,R =V /I
*प्रतिरोध निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है |
(i)चालक तार की लम्बाई :-प्रतिरोध ,चालक तार की लम्बाई के सीधा समानुपाती होता है |
       अर्थात ,चालक तार की लम्बाई बढ़ने पर प्रतिरोध का मान बढ़ता है |
                            R ∝ l ----------------(i)
(ii)अनुप्रस्थ परीच्छेद के क्षेत्रफल :-चालक तार की अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल बढ़ने पर प्रतिरोध का मान घटता है |
  अर्थात,R  ∝ 1 /A....................(ii)
 (iii)चालक तार की प्रकृति पर :-उच्च कोटि के चालक तार का प्रतिरोध निम्न होता है |
➤सबसे निम्न कोटि का चालक तार लोहा है एवं सबसे उच्च कोटि का चालक तार चाँदी है |
(iv)चालक तार के तापमान पर :-किसी चालक तार का तापमान बढ़ने पर प्रतिरोध का मान बढ़ता है |
  अर्थात,R  ∝ T.................(iii)
          समी० (i),(ii) और (iii) से
                     जहाँ ρ(रो)विशिष्ट प्रतिरोध है |
*विशिष्ट प्रतिरोध(Specific resistance):-इकाई लम्बाई वाले चालक तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल के प्रतिरोध को विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है |
   या,इकाई लम्बाई चालक तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद के क्षेत्रफल एवं चालक तार के प्रतिरोध के गुणनफल को विशिष्ट प्रतिरोध कहा जाता है |
➤जिसे प्रायः p(रो)द्वारा सूचित किया जाता है |
➤इसका S.I मात्रक Ωm होता है |
*विशिष्ट चालकता(Specific conductivity) :-विशिष्ट प्रतिरोध के व्यत्क्रम को विशिष्ट चालकता कहा जाता है
  अर्थात, P/1=R.A/l
             1/P=l/R.A
➤इसका S.I मात्रक Ω-1-m-1 होता है |

प्रतिरोध का संयोजन (Resistance combination) 

⇒प्रतिरोध का संयोजन दो प्रकार से होता है | 
(i)श्रेणी क्रम संयोजन(Series order combination) :-प्रतिरोध का ऐसा संयोजन जिसके प्रत्येक प्रतिरोध में विधुत धारा का मान एक समान हो एवं विभवांतर का मान अलग-अलग हो उस प्रकार के संयोजन को श्रेणी क्रम संयोजन कहा जाता है | 
(ii)समान्तर क्रम संयोजन(Parallel order combination) :-प्रतिरोध का ऐसा संयोजन जिसके प्रत्येक प्रतिरोध में विभवांतर का मान समान हो एवं विधुत धारा का मान अलग - अलग हो उस प्रकार के संयोजन को प्रतिरोध का समान्तर क्रम संयोजन कहा जाता है | 

ओम का नियम (ohm's law)

ओम के नियम के अनुसार नियत ताप किसी चालक तार में प्रवाहित होने वाली विधुत धारा उस चालक तार में उत्त्पन्न विभवांतर के सीधे समानुपाती होती है ,जिसे ओम का नियम कहा जाता है | 
अर्थात,
➤ओम का पूरा नाम जार्ज साइमन ओम है | 
➤ओम का जन्म 1787ई० में हुआ तथा मृत्यु 1854ई० में हो गई | 
➤जॉर्ज साइमन ओम जर्मनी के रहने वाले थे | 
➤ओम ने सन 1827 में यह नियम प्रतिपादित किया था | 
➤ओम जर्मन भौतिकविद एवं तकनीकी विश्वविधालय के प्रोफेसर थे | 
*प्रयोग द्वारा ओम के नियम का सत्यापन :-
बनावट :-इस प्रयोग को करने के लिए सबसे एक विधुत परिपथ तैयार किया जाता है | इस परिपथ को तैयार करने के लिए सबसे पहले बैटरी एवं परिवर्तन शील प्रतिरोध ,एमिटर ,वोल्ट मीटर प्रतिरोध एवं दाव कुंजी  इत्यादि को चित्रा अनुसार सजा दिया जाता है | 
क्रिया :-अब कुंजी को दबाया जाता है तो परिपथ से धारा प्रवाहित होने लगती है | 
                                   जब परिपथ में विधुत धारा का मान बढ़ाया जाता है तो विभवांतर का मान बढ़ता है इस परिपथ में एमिटर पर विधुत धारा एवं वोल्ट मीटर पर विभवांतर का मान पारदर्शित होता है | 
                                    जब विधुत धारा का मान दुगुना किया जाता है तो विभवांतर का मान भी दुगुना हो जाता है एवं विधुत धारा का मान आधा किया जाता है तो विभवांतर का मान भी आधा हो जाता है | विधुत धारा के मान को बढ़ाने घटाने के लिए परिवर्तनशील प्रतिरोध में लगा स्लाइड को आगे -पीछे खिसखाया जाता है | 
निष्कर्ष :-नियत ताप पर किसी चालक तार से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा उस चालक में उत्त्पन्न विभवांतर का सीधा समानुपाती होता है | 
*प्रतिरोध का श्रेणी क्रम संयोजन में अनेक प्रतिरोधों का समतुल्य प्रतिरोध प्राप्त करना | 
⇒  ओम के नियम से :-
*समान्तर क्रम संयोजन में अनेक प्रतिरोधों का समतुल्य प्रतिरोध :-
⇒  ओम के नियम से :-

*विधुत के अधार पर पदार्थ के प्रकार 
⇒ (i)चालक (Conductor)
    (ii)अचालक (Non-Conductor)
   (iii)अर्धचालक (Semi-Conductor)
  (iv)अतिचालक (Super-Conductor)
(i)चालक:-वैसा पदार्थ जिससे विधुत धारा  प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक असानी से हो उसे चालक कहा जाता है |
   या,वैसा पदार्थ जिसकी विशिष्ट चालकता काफी अधिक होता है उसे चालक कहते है |
 (ii)अचालक:-वैसा पदार्थ जिसकी विशिष्ट चालकता काफी कम होता है ,उसे अचालक कहा जाता है |
   या,वैसा पदार्थ जिससे विधुत धारा का प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक  नहीं होता है,उसे अचालक कहते है |
(iii)अर्धचालक :-वैसा पदार्थ जिसका गुण चालक और अचालक के बिच में होता है उसे अर्धचालक कहते है |
जैसे :-सिलिकॉन ,जर्मेनियम ,आर्सेनिक
(iv)अतिचालक :-वैसा पदार्थ जिससे विधुत धारा का प्रवाह अति निम्न ताप पर बिना किसी प्रतिरोध के हो उसे अतिचालक कहा जाता है |
*विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव :-
⇒जब किसी चालक तार से विधुत धारा प्रवाहित होता है तो चालक तार गर्म हो जाता है और गर्म होकर उष्मा का उत्सर्जन  लगता है जिसे विधुत धारा का उष्मीय प्रभाव कहते है |
                                   जब चालक में इलेक्ट्रॉन विभवांतर के अधीन प्रवाहित होता है तो चालक के परमाणु से ये इलेक्ट्रॉन बार-बार टकराते है और टकर के कारण ऊष्मा का उत्सर्जन होता है | यही ऊष्मा विधुत धरा का उष्मीय प्रभाव कहलाता है |
                                 ऊर्जा संरक्षण सिद्धांत के अनुसार हम जानते है की ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है | बल्कि ऊर्जा का रूपांतरण होता है |

*जुल का उष्मीय नियम :-
⇒जुल के उष्मीय नियम के अनुसार जब किसी चालक तार से विधुत धारा प्रवाहित होता है तो चालक तार गर्म होकर ऊष्मा प्रदान करते है ,जिसे जुल नमक वैज्ञानिक ने बताया | इनके अनुसार चालक में प्रवाहित होने वाली विधुत धारा का वर्ग उस चालक में उत्पन्न ऊष्मा के सीधे समानुपाती होता है |
अर्थात,Q ∝ I2 …………………….(i)
    प्रतिरोध का सीधा समानुपाती
अर्थात,Q ∝ R .....................................(ii)
उस चालक से प्रवाहित होने वाली विधुत धारा के लगे समय का सीधा समानुपाती होता है
अर्थात,Q ∝ t......................................(iii)
समी० (i),(ii)और (iii) से ,
Q ∝  I2Rt
Q=k.I2Rt
Q= I2Rt (∵ k = नियतांक =1)

*Q=I2Rt प्राप्त करना :-
:-

*विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव का व्यवहारिक अनुप्रयोग :-

विधुत बल्ब या दीप्त लैंप (Electric Bulb)


सिद्धांत :-विधुत बल्ब विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है ,जिसे आत्मदीप्त लैंप भी कहा जाता है |
बनाबट :-विधुत बल्ब काँच क बना होता है | जिसके अंदर निष्क्रिय गैस भरी होती है ,इसके अंदर टंगस्टन का एक फिलामेन्ट लगा होता है | जिसका गलनांक 3000 ํ С से भी अधिक होता है | इसका संपर्क बल्ब के बाहर लगे चालक टर्मिनल से होता है | यह चालक टर्मिनल का सम्पर्क विधुत परिपथ से होता है |
क्रियाविधि :-जब परिपथ में लगे स्वीच को दबाया जाता है तो उस परिपथ से धारा प्रवाहित होते हुए विधुत बल्ब में प्रवेश करता है | विधुत बल्ब में लगा फिलामेंट गर्म होकर ऊष्मा प्रदान करता है | यह ऊष्मा प्रकाशीय ऊर्जा में बदल जाता है |
निष्कर्ष :-अतः विधुत बल्ब विधुत धारा के उष्मीय सिद्धांत पर कार्य करता है |

*विधुत बल्ब के अंदर  निष्क्रिय गैस भरी जाती है क्यों ?
⇒विधुत बल्ब के अंदर  निष्क्रिय गैस भरी जाती है क्योकि विधुत बल्ब के अंदर लगा फिलामेन्ट टंगस्टन धातु का होता है | वे ऑक्सीजन से प्रतिक्रिया कर के ऑक्सीकृत हो जाता है और ऑक्सीकृत होकर बल्ब के दीवारों पर गिर जाते है | इसके बचाव के लिए बल्ब के अंदर निष्क्रिय गैस भर दी जाती है |
*विधुत शक्ति(Electrical power) :-किसी विधुतीय उपकरण द्वारा एक सेकेण्ड में उपयुक्त ऊर्जा को विधुत शक्ति कहा जाता है | ➤जिसे प्रायः P द्वारा सूचित किया जाता है |
➤इसका S.I मात्रक वाट(watt)होता है |
 अर्थात,
*एक वाट :-प्रति सेकेण्ड एक जुल कार्य करने की दर को एक वाट कहा जाता है |
अर्थात,1 watt =1 joule /1 sec
*विधुत ऊर्जा(Electrical energy) :-विधुतीय कार्य करने की क्षमता को विधुत ऊर्जा कहते है |
➤जिसे प्रायः w द्वार सूचित किया जाता है |
➤इसका  S.I मात्रक joule होता है |
      अर्थात,w =VQ
*एक जुल :-जब किसी चालक तार में एक वोल्ट का विभवांतर आरोपित करने पर उसमे एक कुलॉम आवेश का प्रवाह हो तो उस चालक द्वारा किया गया कार्य एक जुल कहलाता है |
  अर्थात,
            1Joule =1volt  x 1 columb
➤विधुत ऊर्जा का व्यवसायिक मात्रक (kwh) किलो वाट घण्टा होता है |

विधुत हीटर (Electric Heater)

सिद्धांत :-विधुत हीटर विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है |
बनावट :-विधुत हीटर चिनी मिट्टी का  बक्राकार खांचे बने होते है जिसमे मिश्र धातु की चालक तार नाइक्रोम की कुंडली लगी होती है | जिसे एक धातु के बनी स्टैंड में इसे व्यवस्थित कर दिया जाता है | जिसका संपर्क बाहरी विधुत परिपथ से होता है |
क्रियाविधि :-जब विधुत परिपथ के स्विच को दबाया जाता है तो विधुत धारा विधुत हीटर के चालक टर्मिनल से होते हुए कुंडली में प्रवेश करता है और कुंडली (नाइक्रोम तार)गर्म होकर ऊष्मा का उत्सर्जन करते है | जिसका ऊष्मा निकलने लगता है ,जिसका उपयोग भोजन पकाने वाले चूल्हा  में किया जाता है |
*निष्कर्ष :-अतः नाइक्रोम की तार से जब विधुत धारा प्रवाहित होती है तो नाइक्रोम की तार गर्म होकर ऊष्मा का उत्सर्जन करते है | जो विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर आधारित है |
➤नाइक्रोम की तार का गलनांक काफी उच्च होता है | यह एक प्रकार की मिश्र धातु है,जो निकेल तथा क्रोमियम का मिश्र होता है |
 Ni (80%) + Cr (20%) = नाइक्रोम

विधुत इस्त्री(Electric Iron)

सिद्धांत :-यह विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव के सिद्धांत पर कार्य करता है |
बनावट :-विधुत इस्त्री में नाइक्रोम की एक पती को अभ्रक के दो पतियों के बीच लगाकर इसे एक धातु के प्लेट में कस दिया जाता है जिसका संपर्क चालक टर्मिनल से होता है |
क्रियाविधि :-जब चालक टर्मिनल से विधुत धारा प्रवाहित  जाता है तो नाइक्रोम की पती गर्म होकर अभ्रक की  पतियों  को गर्म करता है | ये अभ्रक की पती गर्म होकर धातु प्लेट को गर्म करता है जिसका उपयोग कपड़ो को इस्त्री(आयरन) करने में किया जाता है या कपड़ो के सिलबटों को दूर करने में |
निष्कर्ष :-अतः जब नाइक्रोम की पती से विधुत धारा प्रवाहित होती है तो नाइक्रोम की पती गर्म होकर ऊष्मा का उत्सर्जन करते है | जो विधुत धारा के उष्मीय प्रभाव पर आधारित है |
➤अभ्रक की पती विधुत का कुचालक एवं ऊष्मा का सुचालक होता है |
*विधुत फ्यूज (Electric Fuse)
⇒यह एक ऐसी युक्ती है जो किसी विधुतीय परिपथ में लघु पथन एवं अतिभारन से सुरक्षा प्रदान करता है |
➤विधुत फ्यूज का चालक तार का गलनांक काफी कम होता है | यह शीशा एवं टिन का या कॉपर एवं टिन  मिश्रण होता है | प्रबल धारा पहुंचते ही गाल जाता है |
➤घरेलू विधुत परिपथ में विधुत फ्यूज का आधार चिनी मिट्टी  है |
➤विधुतीय उपकरणों में यह किसी काँच की बेलनाकार नली में व्यवस्थित होती है |
*विधुत विकिरक (Electric Radiator)
:-चिनी मिट्टी का एक वेलन पर नाइक्रोम तार की कुंडली लपेट दी जाती है और इसे एक प्रवलिय कार दर्पण में व्यवस्थित कर दिया जाता है | और जब इससे विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है तो ये नाइक्रोम तार की कुंडली गर्म होकर ऊष्मा का उत्सर्जन करते है ,ये ऊष्मा आगे चलकर प्रकाशीय ऊर्जा में बदल जाता है इस पूरी व्यवस्था को विधुत विकिरक कहा जाता है |
*फ्यूज की क्षमता :-फ्यूज की क्षमता का तात्पर्य यह होता है की प्रबल धारा का मान पहुँचते ही विधुत फ्यूज गल जाता है | यह क्षमता विधुत फ्यूज का क्षमता कहलाता है |
*अतिभारन(Over Loading):-जब किसी विधुत परिपथ में एक ही समय में बहुत सारे उच्च शक्ति वाले विधुतीय उपकरणों को एक साथ जोड़ दिया जाता है और एक ही समय में जब इससे विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है तो विधुतीय परिपथ भंग हो जाते है | यह घटना अतिभारन कहलाता है |
➤उच्च शक्ति वाले विधुतीय उपकरण विधुत मोटर ,विधुत पंखा ,विधुत इस्त्री ,विधुत हीटर ,रेफरीजेरेटर इत्यादि उच्च शक्ति वाले विधुतीय उपकरण है |
*लघु पथन(Short Circuit):-जब किसी विधुतीय परिपथ में जीवित तार (गर्म तार० एवं उदासीन तार एक दूसरे के संपर्क में आ जाते है  विधुत परिपथ में धारा का मान बढ़ जाता है और प्रतिरोध का मान घाट जाता है और संपर्क में जुड़े हुए विधुतीय उपकरण जल कर नष्ट हो जाती है | यह घटना लघु पथन कहलाता है |
➤लघु पथन में चिंगारी नहीं उत्पन्न होते है |
➤विधुत ,ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है | जिसे विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों प्रकाश ऊर्जा ,यांत्रिक ऊर्जा इत्यादि के रूप में किया करते है |
➤थोड़ी सी लापरवाही या असावधानी के कारण बहुत बड़ी घटनाओं का सामना करना पड़ता है |
➤मानव शरीर का प्रतिरोध 30,000Ω होता है | जो मुख्यतः चर्म पर पाया जाता है | मानव शरीर भींग जाने के बाद इसका प्रतिरोध घटकर 200Ω  - 300Ω  के बीच हो जाता है |
*घरेलु विधुत परिपथ में खराबियाँ उत्पन्न होने के कारण :-
(i)तार का ढीला संयोजन
(ii)स्विच की खराबी
(iii)उपकरण की खराबी
(iv)लघु पथन एवं अतिभारन से चिंगारी का उत्पन्न होना |
*खतरे से बचने का उपाय :-
(i)संयोजित तार यदि खुला हो यो उस पर विधुत रोधी पदार्थ से ढक देना चाहिए |
(ii)किसी भी प्रकार के खतरा होने पर विधुत परिपथ में लगे स्विच को बंद कर देना चाहिए |
(iii)संयोजित तार का कसा होना चाहिए |   

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